अचला नागर प्रसिद्ध फ़िल्मों में कहानी, पटकथा व संवाद लेखिका हैं। उन्होने बागबान की पटकथा लिखी थी। नगीना, निकाह, निगाहें आदि उनकी बहु चर्चित फिल्में है। फिल्म निकाह के लिए 1983 में सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको अचला नागर की जीवनी – Achala Nagar Biography Hindi के बारे में बताएगे।
अचला नागर की जीवनी – Achala Nagar Biography Hindi
जन्म
अचला नागर का जन्म 2 दिसंबर 1939 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम अमृतलाल नागर है। उनकी माता का नाम प्रतिभा देवी था और उनका वास्तविक नाम सावित्री देवी उर्फ बिट्टो था। वे अपने माता पिता की चार संताने है उनके नाम – कुमुद नगर, शरद नगर, डॉ. अचला नागर और श्रीमती आरती पंड्या है।
शिक्षा
अचला नागर ने बी.एस-सी., एम.ए और पी-एच.डी. (हिन्दी साहित्य)की शिक्षा प्राप्त की।
करियर
डॉ. अचला नागर ने 1982 में प्रख्यात फ़िल्मकार बी.आर. चोपड़ा की निर्माण संस्था बी.आर. फ़िल्मस से जुड़ीं और उनके लिए एक सफल फ़िल्म ‘निकाह’ की पटकथा लिखी। यह फ़िल्म बहुत चर्चित हुई थी। जे. ओमप्रकाश निर्देशित फ़िल्म ‘आखिर क्यों’ को एक स्त्री की सशक्त अभिव्यक्ति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण फ़िल्म माना जाता है। इसमें स्मिता पाटिल की निभायी गयी भूमिका यादगार है और याद की जाती है।
लेखन शैली
डॉ. अचला नागर की पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। यह सचमुच रेखांकित करने वाली चीज़ है कि एक स्त्री-सर्जक मानवीय जीवन के समूचे परिदृश्य को जिस संवेदना की निगाह से देखती है, जिस गहराई से उसका आकलन करती है, उतनी नजदीकी पुरुष पटकथाकारों में शायद नहीं होती। डॉ. अचला नागर का ज़िक्र करते हुए ख़ासतौर पर उनकी एक सशक्त फ़िल्म ‘बागवान’ की बात करना बहुत उचित इसलिए लगता है कि इस फ़िल्म के माध्यम से ही अमिताभ बच्चन काफी अरसे और अन्तराल बाद किसी अच्छी भूमिका के लिए एकदम नोटिस किए गये थे। बागवान बिना किसी अतिरिक्त व्यावसायिक सावधानी या प्रचार के प्रदर्शित फ़िल्म थी जो परिवारों ने पसन्द की थी और सफल भी थी। बागवान बरसों याद रहने वाली फ़िल्म थी। बाद में डॉ. अचला नागर ने रवि चोपड़ा के लिए ‘बाबुल’ फ़िल्म की पटकथा भी लिखी थी, यद्यपि वह उतनी सफल नहीं हुई मगर उसका विषय आज के सन्दर्भ में काफ़ी साहसिक था। डॉ. अचला नागर की पटकथा की यह विशेषता है कि उसकी हिन्दी और भाषा-विन्यास बहुत मायने रखता है। कलाकार उसे परदे पर प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और वह रूटीन फ़िल्मों से अलग हटकर होती है। ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागन आदि उनकी अन्य चर्चित फ़िल्में हैं।
रचनाएँ
कहानी संग्रह
- नायक-खलनायक
- बोल मेरी मछली
संस्मरण
- बाबूजी बेटाजी एंड कंपनी
फ़िल्म पटकथा
- निकाह
- आखिर क्यों
- बागबान
- बाबुल
- ईश्वर
- मेरा पति सिर्फ मेरा है
- निगाहें
- नगीना
- सदा सुहागन
पुरस्कार
- फिल्म निकाह के लिए 1983 में सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।
- 2003 में हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा ‘साहित्य भूषण पुरस्कार
- हिन्दी उर्दू साहित्य एवार्ड कमेटी सम्मान
- 1987 में हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा यशपाल अनुशंसा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 2009 में हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी उत्तर प्रदेश द्वारा ‘साहित्य शिरोमणि सम्मान पुरस्कार से नवाजा गया।
- महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी द्वारा ‘सुब्रमण्यम भारती हिंन्दी सेतु विशिष्ट सेवा पुरस्कार 2010-2011
- फिल्म बाबुल के लिए उन्हे 20011 में दादा साहेब फाल्के अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया ।