आज इस आर्टिकल में हम आपको बाबा कांशीराम की जीवनी – baba kanshiram Biography in hindi के बारे में बताएगे।
बाबा कांशीराम की जीवनी – baba kanshiram Biography in hindi
baba kanshiram भारत के स्वतंत्रता सेनानी तथा क्रांतिकारी साहित्यकार थे।
उन्होंने काव्य से सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी।
उन्हें ‘पहाड़ी गांधी’ के नाम से भी जाना जाता है।
उन्होंने जनसाधारण की भाषा में चेतना का संदेश दिया।
जन्म – बाबा कांशीराम की जीवनी
बाबा कांशीराम का जन्म 11 जुलाई 1882 को हिमाचल प्रदेश में हुआ था।
उनके पिता का नाम लखनू राम और उनकी माता का नाम रेवती देवी था।
सात साल की उम्र में उनकी शादी सरस्वती देवी से कर दी गई।
लेकिन इसके बाद भी उन्होने शिक्षा नहीं छोड़ी और अपने गाँव से ही अपनी पूरी शिक्षा प्राप्त की।
जब वे 11 साल के थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया।
करियर
बाबा कांशीराम काम की तलाश में वे लाहौर चले गए। यहाँ पर उनकी मुलाक़ात लाला लाजपत राय, लाला हरदयाल, सरदार अजित सिंह और मौलवी बर्कतुल्ला जैसे क्रान्तिकारियों के साथ हुई।
बाबा कांशी राम की रचनाओं में जनजागरण की प्रमुख धाराओं के अलावा छुआछूत उन्मूलन, हरिजन प्रेम, धर्म के प्रति आस्था, विश्वबंधुत्व व मानव धर्म के दर्शन होते हैं। बाबा कांशी राम ने अंग्रेज शासकों के विरुद्ध विद्रोह के गीतों के साथ आम जनता के दुख दर्द को भी कविताओंके रूप में व्यक्त किया गया।
1919 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, उस समय कांशीराम अमृतसर में थे। यहां ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने की कसम खाने वाले कांशीराम को 5 मई 1920 को लाला लाजपत राय के साथ दो साल के लिए धर्मशाला जेल में डाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने कई कविताएं और कहानियां भी लिखीं।
उनकी सारी रचनाएं पहाड़ी भाषा में थीं। सजा खत्म होते ही कांगड़ा में अपने गांव पहुंचे और वहां पर उन्होंने घूम-घूम कर अपनी देशभक्ति की कविताओं से लोगों में जागृति लानी शुरू कर दी। पालमपुर में एक जनसभा हुई थी और उस वक्त तक कांशीराम को भाषायी जादू और प्रभाव इतना बढ़ चुका था कि उन्हें सुनने हजारों लोग इकट्ठा हो गए।
9 साल जेल
ये देख अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
इस तरह वो 11 बार जेल गए और अपने जीवन के 9 साल जेल में बिताए।
जेल के दौरान उन्होंने 1 उपन्यास, 508 कविताएं और 8 कहानियां लिखीं।
आज़ादी के दीवाने और पहाड़ी भाषा की उन्नति के प्रति अनुराग रखने के कारण कांशी राम अपनी मातृभाषा में लगातार लिखते रहे। उनकी प्रसिद्ध कविता है- ‘अंग्रेज सरकार दा टिघा पर ध्याड़ा’।
इसके लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें दोबारा फिर से गिरफ्तार कर लिया था मगर राजद्रोह का मामला जब साबित नहीं हुआ तो रिहा कर दिया गया। अपनी क्रांतिकारी कविताओं के चलते उन्हें 1930 से 1942 के बीच 9 बार जेल जाना पड़ा।
मृत्यु – बाबा कांशीराम की जीवनी
बाबा कांशीराम की 15 अक्टूबर 1943 को मृत्यु हो गई थी।
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