बाबा साहब आपटे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पहले प्रचारक और अखिल भारतीय प्रमुख प्रचारक थे। वे एक मौलिक चिन्तक एवं विचारक थे। बाबा साहेब आपटे संस्कृत, मराठी, हिंदी एवं इतिहास के विद्वान्, भारतीय-संस्कृति के मनीषी, भारतीय जीवन-मूल्यों, आदर्शों एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं के बाबा साहेब जीवन्त प्रतीक थे। वे भारत के गौरवशाली इतिहास के प्रसार के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहे। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको बाबा साहब आपटे की जीवनी – Babasaheb Apte Biography Hindi के बारे में बताएगे ।
बाबा साहब आपटे की जीवनी – Babasaheb Apte Biography Hindi
जन्म
बाबा साहब आपटे का जन्म 28 अगस्त 1903 को महाराष्ट्र के यवतमाल में हुआ था। उनका पूरा नाम श्री उमाकान्त केशव आपटे था। बचपन से ही उनमें असीम देशभक्ति भरी हुई थी, लेकिन उनका शरीर कुछ दुर्बल था।
शिक्षा
1920 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वाचन में उनकी विशेष रुचि थी। धर्म और संस्कृति तथा देश का गौरवशाली अतीत उनके अध्ययन तथा चिंतन के प्रमुख विषय थे।
योगदान
- दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे धामणगांव (वर्धा) में एक विद्यालय में अध्यापक बने। वे छात्रों को विद्यालय की पढ़ाई के साथ-साथ गौरवशाली इतिहास, देशभक्तों के प्रेरक चरित्र, स्वातंत्र योद्धाओं का तेजस्वी बलिदान के जैसी कथाएं भी सुनाते थे। फ्लस्वरूप बाबा साहब विद्यार्थियों में प्रिय लेकिन विद्यालय के संचालकों में अप्रिय हुए। एक बार उन्होंने विद्यालय में लोकमान्य तिलक की स्मृति में एक कार्यक्रम किया। उसके लिए व्यवस्थापकों ने उनसे घोर नाराजगी जताई। जिसके कारण श्री आपटे ने तत्काल नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
- सितम्बर, 1924 में बाबा साहब नागपुर आ गए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। 1927 ई. में वह प्रथम संघशिक्षा वर्ग में बौद्धिक विभाग के प्रमुख रहे।
- 1930 में सत्याग्रह आन्दोलन में संघ-संस्थापक डा॰ केशवराव बळिराम हेडगेवार की अनुपस्थिति में उन्होने संघ-शाखाओं में सुचारू रूप से चलाने का दायित्व भली-भाँति पूरा किया।
- 1931 में वह संघ के पहले प्रचारक होकर निकले। अगले दो वर्ष तक नागपुर और विदर्भ में प्रवास के बाद अन्य प्रांतों में भी जाने लगे। गाँव-गाँव पैदल घूमकर उन्होंने संघ-कार्य का विस्तार किया।
- इसी दौरान उद्यम मुद्रणालय, देव मुद्रणालय और आईडियल डेमोक्रेटिक कम्पनी के टाइपिस्ट रहे और ‘उद्यम’ (मासिक) में पत्र भी लिखने लगे।
- 1932 में उन्होने सभी नौकरियों से त्यागपत्र दे दिया और संघ के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो गये।
- 1937-1940 तक उन्होने सम्पूर्ण भारत में प्रवास किया। अगस्त, 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान बिहार का दौरा किया।
रचना
33 श्लोकों वाले ‘भारतभक्तिस्तोत्र’ की रचना की।
चीन के क्रांतिकारी-इतिहास का गहन अध्ययन करके आधुनिक चीन के राष्ट्रपिता डा॰ सनयात सेन पर भी एक पुस्तक लिखी। उनकी मृत्यु के बाद उन्हीं के नाम से बनी हुई बाबासाहब आपटे समिति ने इतिहास पुर्न लेखन का व्यापक कार्य हाथ में लेकर बाबासाहब आपटे को सही अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित की है।
वे वेद, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि भारतीय-इतिहास के गम्भीर अध्येता थे। उनकी मान्यता थी कि जब तक हम अपने स्वत्व को नहीं समझेंगे, तब तक इतिहास-बोध और राष्ट्र-बोध से वंचित रहेंगा। उनका यह भी मानना था कि जब तक विदेशियों द्वारा विकृत इतिहास का समूलोच्छेद करके सही इतिहास का लेखन शुरू नहीं होता, तब तक राष्ट्रीय अस्मिता को हमेशा ख़तरा बना रहेगा। इसलिए उनकी तीव्र अभिलाषा थी कि आदिकाल से लेकर वर्तमान तक का देश का सच्चा इतिहास लिखा जाए जिससे भारत की गौरवशाली परम्परा और जीवन का वास्तविक परिचय हो सके और जो सही तथ्य विलुप्त हो चुके है उन्हे खोजा जाएँ। इसलिए उन्होने संघ-कार्य के लिए देश के अपने लगभग 42-वर्षीय सतत और विस्तृत प्रवास में विदेशियों द्वारा विकृत किए गए भारतीय-इतिहास को शुद्धकर उसका पुनर्लेखन करने के लिए इतिहास के अनेक विद्वानों को प्रेरित किया। इसके अलावा वे संस्कृत के पण्डितों से भी सम्पर्क करके उनसे विचार-विमर्शकर निवेदन करते थे कि संस्कृत को आमजन की बोलचाल की भाषा बनाने के लिए व्याकरण पर अधिक बल न देते हुए संस्कृत सिखाने के लिए एक नयी और सरल पद्धति का निर्माण करना चाहिये।
कृतियाँ
बाबा साहेब आपटे ने अनेक पुस्तकों की रचना की, जिसमें प्रमुख हैं-
- अपनी प्रार्थना (1973)
- महाराष्ट्राचा स्मृतिकार (मराठी, 1997)
- ‘आमच्या राष्ट्रजीवनाची परंपरा : दशावतार कथेंतील राष्ट्रीयत्वाच्या परंपरेचा सुसूत्र इतिहास’ (मराठी में ; हिंदी में ‘हमारे राष्ट्रजीवन की परम्परा)
- परमपूजनीय डाक्टर हेडगेवार : संक्षिप्त चरित्र व विचारदर्शन
- डॉ॰ हेडगेवार
- पंजाब केसरी दे.भ. लाला लाजपतराय
मृत्यु
26 जुलाई 1972 ई. को बाबा साहेब आपटे का निधन हो गया।