आज इस आर्टिकल में हम आपको भगवान श्री कृष्ण की जीवनी -Bhagwan shri krishan Biography Hindi के बारे मे बताएगे।
भगवान श्री कृष्ण की जीवनी -Bhagwan Shri Krishan Biography Hindi
Bhagwan shri krishan को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का 8 वां अवतार
माना जाता है।
सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सबसे पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग
तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं।
श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर ‘युग पुरुष’ थे।
उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न ‘राजनीतिवेत्ता’ ही नही, एक महान् ‘कर्मयोगी’ और ‘दार्शनिक’ प्राप्त हुआ, जिसका ‘गीता’ ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक के रूप में है।
कृष्ण की प्रशंसा लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं, निश्चित रूप से ‘श्रीमद् भगवद्गीता’ से प्रभावित हैं। ‘गीता’ किसने और किस काल में कही या लिखी यह शोध का विषय है, लेकिन ‘गीता’ को कृष्ण से ही जोड़ा जाता है।
जन्म – भगवान श्री कृष्ण की जीवनी
भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी के दिन हुआ था।
उनके पिता का नाम यदुकुल वासुदेव था और उनकी माता का नाम देवकी था, लेकिन उनका पालन-पोषण नंदबाबा और यशोदा
ने किया था और इन्ही को इनका माता-पिता माना जाता है।
श्री कृष्ण का विवाह रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी से हुआ था।
इनकी संतानों का नाम प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, सांब थे।
उनके परिवार में उनके अलावा रोहिणी (विमाता), बलराम (भाई), सुभद्रा (बहन), गद (भाई) भी थे।
कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर बांसुरी बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है।
इस रूप में, आम तौर पर त्रिभन्ग मुद्रा में दूसरे के सामने एक पैर को दुसरे पैर पर डाले चित्रित है।
कभी-कभी वह गाय या बछड़ा के साथ होते है, जो चरवाहे गोविंदा के प्रतीक को दर्शाती है
ब्रज
ब्रज या शूरसेन जनपद के इतिहास में श्रीकृष्ण का समय बड़े महत्त्व का है।
इसी समय में प्रजातंत्र और नृपतंत्र के बीच कठोर संघर्ष हुए।
मगध राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ और भारत का वह महान् भीषण संग्राम हुआ, जिसे महाभारत युद्ध कहते हैं।
इन राजनीतिक हलचलों के अलावा इस काल का सांस्कृतिक महत्त्व भी है।
मथुरा नगरी इस महान् विभूति का जन्मस्थान होने के कारण धन्य हो गई।
मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ, वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही प्राप्त हुआ।श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान् स्रोत हुए है। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही, साथ ही कितने
ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए।
प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है।
उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटल पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है।
ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण को लोग कई नामों से पुकारते है- कान्हा, गोपाल, गिरधर, माधव, केशव, मधुसूदन, गिरधारी, रणछोड़, बंशीधर, नंदलाल, मुरलीधर आदि कई नामों से जाने जाते हैं।
कृष्ण जन्म का समय
वर्तमान ऐतिहासिक अनुसंधानों के आधार पर श्रीकृष्ण का जन्म लगभग ई. पू. 1500 माना जाता है।
ये सम्भवत: 100 वर्ष से कुछ ऊपर की आयु तक जीवित रहे।
अपने इस दीर्घ जीवन में उन्हें कई प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहना पड़ा।
उनका प्रारंभिक जीवन तो ब्रज में कटा और शेष द्वारका में व्यतीत हुआ।
बीच-बीच में उन्हें अन्य कई जनपदों में भी जाना पड़ा।
जो अनेक घटनाएं उनके समय में घटीं, उनकी विस्तृत चर्चा पुराणों तथा महाभारत में मिलती है।
वैदिक साहित्य में तो कृष्ण का उल्लेख बहुत कम मिलता है और उसमें उन्हें मानव-रूप में ही दिखाया गया है, न कि नारायण
या विष्णु के अवतार रूप में।
विष्णु के अवतार
सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले मुख्य देवता माने जाते हैं।जब-जब इस पृथ्वी पर असुर और राक्षसों के पापों का आतंक छाया होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं।
वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया।
इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार ‘श्रीराम’ और ‘श्रीकृष्ण’ के ही माने जाते हैं।
श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष थे, इसका स्पष्ट प्रमाण ‘छान्दोग्य उपनिषद’ के एक उल्लेख में मिलता है।
शिक्षा
“देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण ‘तृप्त’ अर्थात् पूर्ण पुरुष हो गए थे।”श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था और ‘गीता’ में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है।
संदीपन को भी भगवान कृष्ण का गुरु माना गया है और कृष्ण सोलह कला, चक्र चलाने में निपुण थे।
बाल्यकाल और युवावस्था
कृष्ण ने देवकी और उनके पति, चंद्रवंशी कबीले के वासुदेव के यहाँ जन्म लिया।
देवकी का भाई कंस नामक दुष्ट राजा था ।
पौराणिक उल्लेख के अनुसार देवकी की शादी में कंस को भविष्यबताने वालो ने बताया कि देवकी के पुत्र द्वारा उसका वध निश्चित है।कंस देवकी के सभी बच्चों को मारने की व्यवस्था करता है। जब कृष्ण जन्म लेते हैं, तो वासुदेव चुपके से शिशु कृष्ण को यमुना के पार ले जाते है और एक अन्य शिशु बालिका के साथ उनका आदान-प्रदान करता है।
जब कंस इस नवजात शिशु को मारने का प्रयास करता है तब शिशु बालिका हिंदू देवी दुर्गा के रूप में प्रकट होती है,और उसे चेतावनी देते हुए कि उनकी मृत्यु उसके राज्य में आ गई है,और अदृश्य हो जाती है।पुराणों में किंवदंतियों के अनुसार ,कृष्ण, नंद और उनकी पत्नी यशोदा के साथ आधुनिक काल के मथुरा के पास पलते बढ़ते है।
इन पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृष्ण के दो भाई-बहन भी रहते हैं,बलराम और सुभद्रा ।
कृष्ण के जन्म का दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
लीलाओं का संदेश
कृष्ण लीलाओं का जो विस्तृत वर्णन भागवत ग्रंथ में किया गया है, उसका उद्देश्य क्या केवल कृष्ण भक्तों की श्रद्धा बढ़ाना है या मनुष्य मात्र के लिए इसका कुछ संदेश है?तार्किक मन को विचित्र-सी लगने वाली इन घटनाओं के वर्णन का उद्देश्य क्या ऐसे मन को अतिमानवीय पराशक्ति की रहस्यमयता से विमूढ़वत बना देना है अथवा उसे उसके तार्किक स्तर पर ही कुछ गहरा संदेश देना है, इस पर विचार करना चाहिए।
श्रीकृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, इसका स्पष्ट प्रमाण ‘छान्दोग्य उपनिषद’ के एक उल्लेख में मिलता है।
वहाँ कहा गया है कि देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण ‘तृप्त’ अर्थात् पूर्ण पुरुष हो गए थे।
श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसी शिक्षा से अनुप्राणित था और ‘गीता’ में उसी शिक्षा का प्रतिपादन उनके ही माध्यम से किया गया है।किंतु इनके जन्म और बाल-जीवन का जो वर्णन प्राप्त है, वह मूलतः श्रीमद्भागवत का है और वह ऐतिहासिक कम, आध्यात्मिक अधिक है और यह बात ग्रंथ के आध्यात्मिक स्वरूप के अनुसार ही है।
ग्रंथ में चमत्कारी भौतिक वर्णनों के पर्दे के पीछे गहन आध्यात्मिक संकेत संजोए गए हैं।
वस्तुतः भागवत में सृष्टि की संपूर्ण विकास प्रक्रिया का और उस प्रक्रिया को गति देने वाली परमात्म शक्ति का दर्शन कराया गया है।ग्रंथ के पूर्वार्ध में सृष्टि के क्रमिक विकास का और उत्तरार्ध (दशम स्कंध) में श्रीकृष्ण की लीलाओं के द्वारा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का वर्णन प्रतीक शैली में किया गया है।
प्रदर्शन कला – भगवान श्री कृष्ण की जीवनी
भारतीय नृत्य और संगीत थिएटर प्राचीन ग्रंथो जैसे वेद और नाट्यशास्त्र ग्रंथों को अपना आधार मानते हैं।
हिंदू ग्रंथों में पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से प्रेरित कई नृत्यनाटिकाओ को और चलचित्रो को , जिसमें कृष्ण-संबंधित साहित्य जैसे हरिवंश और भागवत पुराण शामिल हैं , को अभिनीत किया गया है ।कृष्ण की कहानियों ने भारतीय थियेटर, संगीत, और नृत्य के इतिहास में विशेष रूप से रासलीला की परंपरा के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ये कृष्ण के बचपन, किशोरावस्था और वयस्कता के नाटकीय कार्य हैं।
एक आम दृश्य में कृष्ण को रासलीला में बांसुरी बजाते दिखाया जाता हैं,जो केवल कुछ गोपियों को सुनाई देती है, जो धर्मशास्त्रिक रूप से दिव्य वाणी का प्रतिनिधित्व करती है जिसे मात्र कुछ प्रबुद्ध प्राणियों द्वारा सुना जा सकता है।
कुछ पाठ की किंवदंतियों ने गीत गोविंद में प्रेम और त्याग जैसे माध्यमिक कला साहित्य को प्रेरित किया है।
भागवत पुराण जैसे कृष्ण-संबंधी साहित्य, प्रदर्शन के लिए इसके आध्यात्मिक महत्व को मानते हैं और उन्हें धार्मिक अनुष्ठान
के रूप में भी मानते हैं तथा रोज़ाना जीवन को आध्यात्मिक अर्थ के साथ जोड़ते हैं।
इस प्रकार एक अच्छा, ईमानदार और सुखी जीवन बिताने का रास्ता दिखाता हैं।
इसी तरह से , कृष्ण द्वारा प्रेरित प्रदर्शन का उद्देश्य विश्वासयोग्य अभिनेताओं और श्रोताओं के हृदय को शुद्ध करना है।
कृष्ण लीला के किसी भी हिस्से का गायन, नृत्य और प्रदर्शन, पाठ में धर्म को याद करने का एक कार्य है। यह सर्वोच्च भक्ति के रूप में है।किसी भी समय और किसी भी कला में कृष्ण को याद करने के लिए, उनकी शिक्षा पर देते हुए, उनकी सुन्दर और दिव्य पूजा की जाती है।विशेषकर कथक , ओडिसी , मणिपुरी ,कुचीपुड़ी और भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ उनके कृष्ण-संबंधी प्रदर्शनों के लिए जाने जाते हैं।
मृत्यु
भगवान कृष्ण की मृत्यु पैर में तीर लगने के कारण हुई थी।
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