चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी – Chandrabali Pandey Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी – Chandrabali Pandey Biography Hindi के बारे में बताएगे।

चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी – Chandrabali Pandey Biography Hindi

चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी
चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी

 

(English – Chandrabali Pandey) चन्द्रबली पाण्डेय हिन्दी साहित्यकार
तथा विद्वान थे।

भाषा और साहित्य के उन्नयन, संवर्धन और संरक्षण के लिए समर्पित थे।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम चन्द्रबली पाण्डेय
पूरा नाम चन्द्रबली पाण्डेय
जन्म 25 अप्रैल 1904
जन्म स्थान आज़मगढ़ ज़िला, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू

जन्म – चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी

Chandrabali Pandey का जन्म 25 अप्रैल 1904 में आजमगढ़ ज़िला, उत्तर प्रदेश के नसीरुद्दीनपुर नामक गाँव में हुआ था।

उनके पिता गाँव में किसान थे और खेतीबाड़ी किया करते थे।

पाण्डेय जी ने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की थी।

शिक्षा

Chandrabali Pandey ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त की थी।

‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ से उन्होंने हिन्दी विषय से एम.ए. उत्तीर्ण किया था।

वे उर्दू, फ़ारसी और अरबी के विद्वान् थे। हिन्दी के साथ अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी तथा प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता चन्द्रबली पाण्डेय के सम्बन्ध में भाषा शास्त्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी की यह उक्ति सटीक है कि- “पाण्डेय जी के एक-एक पैंफलेट भी डॉक्टरेट के लिए पर्याप्त हैं।”

चन्द्रबली पाण्डेय द्वारा रचित छोटे-बड़े कुल ग्रन्थों की संख्या लगभग 34 है।

विश्वविद्यालय की परिधि से बाहर रहकर हिन्दी में शोध कार्य करने वालों में उनका प्रमुख स्थान है।

नागरीप्रचारिणी सभा

उनकी साहित्यनिष्ठा और प्रगाढ़ पांडित्य देखकर हिंदी साहित्य सम्मेलन ने एक बार इन्हें अपना सभापति चुना था। काशी नागरीप्रचारिणी सभा के भी ये सभापति रहे। सभा से प्रकाशित होनेवाली ‘हिंदी’ नामक पत्रिका के ये संपादक थे। सभा से जो शिष्टमंडल दक्षिण भारत में हिंदीप्रचार के लिए गया था, पांडेय जी उसके प्रमुख सदस्य थे। 1984 में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का जो विशेषाधिवेशन हैदराबाद में हुआ था, जो उसके सभापति थे।

उस समय कतिपय राजनीतिज्ञ हिंदी के स्थान पर ‘हिंदुस्तानी’ नाम से एक नई भाषा को प्रतिष्ठित करने का अथक प्रयास कर रहे थे, जो प्रकारांतर से उर्दू थी। उसके विरोध में पांडेय जी ने अपनी दृढ़ता, अटूट लगन, निर्भीकता और प्रगाढ़ पांडित्य से राजनीतिज्ञों की कूटबुद्धि को हतप्रभ कर दिया था।

पांडेय जी को साहित्य विषयक शोधकार्य में विशेष रस मिलता था।

उनके छोटे से छोटे निबंध में भी उनकी शोधदृष्टि स्पष्टत: देखी जा सकती है।

रचनाएँ – चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी

उर्दू का रहस्य तसव्वुफ़ अथवा सूफ़ीमत भाषा का प्रश्न
राष्ट्रभाषा पर विचार कालिदास केशवदास
तुलसीदास हिन्दी कवि चर्चा शूद्रक
हिन्दी गद्य का निर्माण

हिंदी के अप्रीतम योद्धा

हिंदी के अप्रीतम योद्धा ने हिंदी-विरोधियों से उस समय लोहा लिया, जब हिंदी का सघर्ष उर्दू और हिंदुस्तानी से था।

भाषा का प्रश्न राष्ट्रभाषा का प्रश्न था।

भाषा विवाद ने इस प्रश्न को जटिल बनाकर उलझा दिया था।

उर्दू भक्त हिंदी को ‘हिंदुई’ बताकर ‘उर्दू’ को हिंदुस्तानी बताकर देश में उर्दू का जाल फैला रहे थे। उर्दू समर्थकों की हिंदी-विरोधी नीतियों ने ऐसा वातावरण बुन दिया था, जिसमें अन्य भाषा-भाषी हिंदी को सशंकित दृष्टि से देखने लगे।

स्वयं चंद्रबली पाण्डेय के शब्दों में उर्दू के बोलबाले का स्वरूप यों था- ‘उर्दू का इतिहास मुँह खोलकर कहता है, हिंदी को उर्दू आती ही नहीं और उर्दू के लोग, उनकी कुछ न पूछिये। उर्दू के विषय में उन्होंने ऐसा जाल फैला रखा है कि बेचारी उर्दू को भी उसका पता नहीं। घर की बोली से लेकर राष्ट्र बोली तक जहाँ देखिये वहाँ उर्दू का नाम लिया जाता है।… उर्दू का कुछ भेद खुला तो हिंदुस्तानी सामने आयी।’

भाषा विवाद के चलते हिंदी पर बराबर प्रहार हो रहे थे। हिंदी के विकास में उर्दू के हिमायतियों द्वारा तरह-तरह के अवरोध खड़े किये जा रहे थे, तब हिंदी की राह में पड़ने वाले अवरोधों को काटकर हिंदी की उन्नति और हिंदी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया चंद्रबली पाण्डेय ने।

उनके प्रखर विचारों ने भाषा संबंधी उलझनों को दूर कर हिंदी क्षेत्र को नई स्फूर्ति दी।

उनके गम्भीर चिंतन, प्रखर आलोचकीय दृष्टि और आचार्यत्व ने हिंदी और हिंदी साहित्य को अपने ही ढंग से समृद्ध किया।

मृत्यु – चन्द्रबली पाण्डेय की जीवनी

चन्द्रबली पाण्डेय की मृत्यु 24 जनवरी 1958 को हुई थी।

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