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चंद्रभान गुप्ता की जीवनी – Chandra Bhanu Gupta Biography Hindi

चंद्रभान गुप्ता भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता थे। वे 7 दिसम्बर 1960 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इसके बाद वे दो बार और मुख्यमंत्री रहे। चंद्रभानु गुप्ता के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1926 में हुई। उनको उत्तर प्रदेश कांग्रेस और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया। चंद्रभानु ने राजनीति में आते ही बहुत कम समय में कांग्रेस में अपनी पहचान बना ली थी।  वे इसके तुरंत  बाद ही यूपी कांग्रेस के ट्रेजरार, उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी बने। तो आइये आज इस आर्टिकल में हम आपको चंद्रभान गुप्ता की जीवनी – Chandra Bhanu Gupta Biography Hindi के बारे में बताएगे।

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चंद्रभान गुप्ता की जीवनी – Chandra Bhanu Gupta Biography Hindi

चंद्रभान गुप्ता की जीवनी

जन्म

चंद्रभान गुप्ता का जन्म 14 जुलाई, 1902 को अलीगढ़ मे हुआ था ।

शिक्षा

चंद्रभान गुप्ता ने एम. ए. , एलएल. बी. की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की।

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करियर

चंद्रभानु गुप्ता एक सफल और योग्य वकील भी रहे। उनके राजनीतिक जीवन  की शुरुआत 1926 में हुई। उनको उत्तर प्रदेश कांग्रेस और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया। चंद्रभानु ने राजनीति में आते ही बहुत कम समय में ही कांग्रेस में अपनी पहचान बना ली थी और इसके तुरंत बाद ही  वे यूपी कांग्रेस के ट्रेजरार, उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी बने। 1937 के चुनाव में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। फिर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद  1946 में बनी पहली प्रदेश सरकार में वे गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के रूप में शामिल हुए। इसके बाद एक बार फिर 1948 से 1959 तक उन्होंने कई विभागों के मंत्री के रूप में कार्य किया। 1960 में उन्हे यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया। उस वक्त वे रानीखेत साउथ से विधायक थे।

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संपूर्णानंद के मुख्यमंत्री रहते हुए पॉलिटिक्स बहुत जटिल हो गई थी। और कांग्रेस में कई बड़े मोड़ आ गए थे। ऐसे में संपूर्णानंद को राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया और चंद्रभानु को यूपी का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया । इस बीच गुप्ता का कद यूपी की राजनीति में बहुत ज्यादा बढ़ गया था। उनका मुख्यमंत्री बनना हर तरह के विपक्ष पर भारी जीत थी। इससे केंद्र के नेताओं में खलबली मच गई। यह वो दौर था जब केंद्र में नेहरू की सत्ता को कांग्रेस के लोग ही चुनौती देने लगे थे। चंद्रभान नेहरू की समाजवाद से पूरी तरह प्रभावित नहीं थे। तो  इसलिए नेहरू उनको पसंद नहीं करते थे। लेकिन यूपी कांग्रेस में चंद्रभानु का इतनि चर्चा थी कि विधायक पहले चंद्रभान के सामने नतमस्तक होते थे, और फिर इसके बाद में नेहरू के सामने साष्टांग प्रणाम कराते थे। 1963 में के कामराज ने नेहरू को सलाह दी कि कुछ लोगों को छोड़कर सारे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को त्यागपत्र दे देना चाहिए। जिससे कि राज्य सरकारों को फिर से संगठित किया जा सके। उन्हे कहा गया कि कुछ दिन के लिए पद छोड़ दीजिए। पार्टी के लिए काम करना है। पर चंद्रभानु की नजर में ये था कि ये सारा खेल इसलिए हो रहा है कि नेहरू जिसको पसंद नहीं करते, वो चला जाए।लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। लेकिन उनको इस बात के लिए राजी कर लिया गया कि ये कुछ दिनों की बात है और फिर से आपको मुख्यमंत्री बना दिया जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।

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कामराज की योजना के तहत चंद्रभान को आदर्शों की दुहाई पर पद छोड़ना पड़ा। जनतंत्र पर तानाशाही का बड़ा ही लोकतंत्रीय वार था ये। चुने हुए नेता को नापसंदगी की वजह से पद से हटना पड़ा। चंद्रभानु तीन बार उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे चुके थे। 1960 से 1963 तक तो रहे ही इसके  साथ ही मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी राजनीति में उनका प्रभाव बना रहा।  यह उनके लिए किस्मत की बात थी। 1967 के चुनाव में जीतने के बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बने। लेकिन इस बार वे सिर्फ 19 दिनों के लिए ही मुख्यमंत्री बने। किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को तोड़कर अपनी पार्टी बना ली। चंद्रभान की सरकार गई। चरण सिंह मुख्यमंत्री बन गये। पर वो सरकार चला नहीं पाए। वो सरकार भी गिरी। और चंद्रभान गुप्ता को आनन-फानन में 1969 में फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया।

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चंद्रभान गुप्ता करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने कांग्रेस को हमेशा के लिए बदल दिया। 1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई। यह यूपी का अंदरूनी मसला नहीं था। अबकी टूट केंद्र के स्तर पर हुई थी। इंदिरा गांधी और कामराज के नेतृत्व वाले संघ श्रेणी के रूप में। सबको लगा था कि इंदिरा हाथों की कठपुतली रहेंगी। लेकिन इंदिरा सबसे बड़ी राजनीतिज्ञ निकलीं। राष्ट्रपति को लेकर दोनों धड़ों में तकरार हुई। मोरारजी देसाई इंदिरा के प्रबल विरोधी थे । चंद्रभान गुप्ता मोरार जी कैंप में चले गये। लेकिन वे कैंप हार गये । इंदिरा के सपोर्ट से वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गये। यहीं पर संघ के अधिक्तर नेताओं के करियर पर रोक लग गई। चंद्रभान का करियर भी समाप्त हो गया।लेकिन वक्त की नजाक्त से मोरारजी भी प्रधानमंत्री बने। चंद्रभानु को मंत्रिमंडल में पद आमंत्रित किया गया। लेकिन चंद्रभानु की स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया था। जिसके चलते उन्होने मंत्री पद लेना मुनासिब नहीं  समझा था। उन्होंने इससे मना कर दिया।

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मृत्यु

11 मार्च, 1980 को लखनऊ में चंद्रभान गुप्ता की मृत्यु हो गई।

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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