आज इस आर्टिकल में हम आपको चार्ल्स डार्विन की जीवनी – Charles Darwin Biography Hindi के बारे में बताएगे।
चार्ल्स डार्विन की जीवनी – Charles Darwin Biography Hindi
(English – Charles Darwin) चार्ल्स डार्विन महान् प्रकृतिवादी वैज्ञानिक तथा बहुफलदायक लेखक भी थे।
उन्होने 1818 से 1825 तक श्रोसबरी में पढ़ाई की।
1831 में बीगल जहाज पर यात्रा के दौरान जीवों का अध्ययन किया और नमूने एकत्रित किए।
1837 में पहला पेपर लिखा।
1859 में पुस्तक ऑरिजन ऑफ स्पीशीज प्रकाशित हुई।
सजीवों की उत्पत्ति और विविधता को समझाने में मदद की।
उन्होने प्रतिपादित किया कि पररिवर्तनशील अवयवों में जो अनुकूल होते है, वे बच जाते है।
प्रतिकूल अवयव अनाकूलन की स्थिति में समाप्त हो जाते हैं।
अनुकूल की प्रकृति सुरक्षित रहना है और प्रतिकूल की नष्ट हो जाना है।
संक्षिप्त विवरण
नाम | चार्ल्स डार्विन |
पूरा नाम | चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन |
जन्म | 12 फरवरी 1809 |
जन्म स्थान | इंग्लैंड |
पिता का नाम | राबर्ट डार्विन |
माता का नाम | ब्रिटिश |
राष्ट्रीयता | – |
धर्म | – |
जन्म
Charles Darwin का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर के श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनका पूरा नाम चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन था।
उनके पिता का नाम राबर्ट डार्विन था जोकि एक जाने -माने डॉक्टर थे
1839 में Charles Darwin ने जोशिया वैजबुड से विवाह कर लिया ।
शिक्षा – चार्ल्स डार्विन की जीवनी
Charles Darwin ने प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक इसाई मिशनरी स्कूल में दाखिल करवाया गया था।
डार्विन के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे इसलिए वो डार्विन को अपने साथ रखने लगे और डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग देने लगे।
1825 ईसवी में जब डार्विन 16 साल के थे तो उन्हें एडिनबर्घ की मेडिकल युनिर्वसिटी में दाखिल करवाया गया।
चार्ल्स डार्विन को मेडिकल में कोई ज्यादा रूचि नहीं थी।
वो हमेशा प्रकृति का इतिहास जानने की कोशिश करते रहते।
विविध पौधों के नाम जानने की कोशिश करते रहते और पौधों के टुकडो को भी जमा करते।
एडिनबर्ग युनिर्वसिटी के बाद डार्विन को 1927 में क्राइस्ट कॉलेज में दाखिल करवाया गया ताकि वो मेडिकल की आगे की पढ़ाई पूरी कर सके। पर यहां भी उनका मन मेडिकल में कम और प्राकृतिक विज्ञान में ज्यादा लगा रहता।
क्राइस्ट कॉलेज में रहने के दौरान डार्विन ने प्रकृति विज्ञान के कोर्स को भी दाखिला ले लिया।
प्रकृति विज्ञान की साधारण अंतिम परीक्षा में वे 178 विद्यार्थियों में से दसवे नंबर पर आये थे। मई, 1931 तक वो
क्राइस्ट कॉलेज में ही रहे।
करियर
बीगल पर विश्व भ्रमण हेतु अपनी समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना मानते थे
जिसने उनके व्यवसाय को सुनिश्चित किया।
समुद्री-यात्रा के बारे में उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूने इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसाइटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हुआ।अपने करियर के शुरुआत में डार्विन ने प्रजातियों के जीवाश्म सहित बर्नाकल (विशेष हंस) के अध्ययन में आठ वर्ष व्यतीत किए।
उन्होंने 1851 तथा 1854 में दो खंडों के जोङों में बर्नाकल के बारे में पहला सुनिश्चित वर्गीकरण विज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत किया। इसका अभी भी उपयोग किया जाता है।चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन ने एच. एम. एस. बीगल की यात्रा के 20 साल बाद तक कई पौधों और जीवों की प्रजातियां का अध्ययन किया और 1858 में दुनिया के सामने ‘क्रमविकास का सिद्धांत’ दिया।
चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन को प्रजातियों के विकास की नयी अवधारणाओं के जनक के रूप में जाना जाता है।
संचार डार्विन के शोध का केन्द्र-बिन्दु था। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव (Origin of Species (हिंदी में – ‘ऑरिजिन ऑफ स्पीसीज़’)) प्रजातियों की उत्पत्ति सामान्य पाठकों पर केंद्रित थी।
डार्विन चाहते थे कि उनका सिद्धान्त यथासम्भव व्यापक रूप से प्रसारित हो।
डार्विन के विकास के सिद्धान्त से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस प्रकार विभिन्न प्रजातियां एक दूसरे के साथ जुङी हुई हैं।उदाहरणतः वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि रूस की बैकाल झील में प्रजातियों की विविधता कैसे विकसित हुई।
पत्राचार – चार्ल्स डार्विन की जीवनी
कई वर्षों के दौरान जिसमें उन्होंने अपने सिद्धान्त को परिष्कृत किया, डार्विन ने अपने अधिकांश साक्ष्य विशेषज्ञों के लम्बे पत्राचार से प्राप्त किया।डार्विन का मानना था कि वे प्रायः किसी से चीजों को सीख सकते हैं और वे विभिन्न विशेषज्ञों, जैसे, कैम्ब्रिज के प्रोफेसर से लेकर सुअर-पालकों तक से अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे।
पुस्तक
1859 में डार्विन ने अपनी पहली किताब “ऑन दी ओरिजिन ऑफ़ स्पिसेस” में मानवी विकास की प्रजातियों का
विस्तृत वर्णन भी किया था।
1868 में चार्ल्स डार्विन ने दूसरी पुस्तक प्रकाशित की।
इस पुस्तक का नाम था ‘द वेरीएशन ऑफ एनीमल्स एंड प्लॅंट्स दॉमेस्तिकेशन’ इस पुस्तक मे दर्शाया गया था की गिने-चुने जंतुओं का चयन करके कबूतरों, कुत्तों और दूसरे जानवरों की कई नस्ले पैदा की जा सकती है।
इस प्रकार नए पेड़-पौधों की भी नई नस्ले पैदा की जा सकती है।
क्रमविकास का सिद्धांत :
- विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे पहले एक ही जैसे होते थे, पर संसार में अलग अलग जगह की भुगौलिक प्रस्थितियों के कारण उनकी रचना में परिवर्तन होता गया जिससे उस एक जाति की कई प्रजातियां बन गई।
• पौधों की तरह जीवों का भी यही हाल है, मनुष्य के पूर्वज किसी समय बंदर हुआ करते थे, पर कुछ बंदर अलग से विशेष तरह से रहने लगे और धीरे – धीरे जरूरतों के कारण उनका विकास होता गया और वो मनुष्य बन गए।
पुरस्कार
- रॉयल मेडल (1853)
- वोलस्टन मेडल (1859)
- कोप्ले मेडल (1864)
मृत्यु – चार्ल्स डार्विन की जीवनी
Charles Darwin की 72 वर्ष की आयु में 19 अप्रैल 1882 को डाउन हाउस, डाउन, केंट, इंग्लैंड में हुई थी।
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