चौधरी देवीलाल भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता और करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी देवीलाल के नाम से बुजुर्ग और युवा लोग उत्तेजित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मजदूरों गरीब और सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको चौधरी देवीलाल की जीवनी- chaudhary-devilal Biography Hindi के बारे में बताएंगे
चौधरी देवीलाल की जीवनी
जन्म
चौधरी देवीलाल का जन्म 25 सितंबर 1914 को हरियाणा के सिरसा जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम चौधरी लेखराम था और मां का नाम श्रीमती शुंगा देवी था। उनका विवाह श्रीमती हरकी देवी से हुआ था। चौधरी देवीलाल को ‘ताऊ देवीलाल’ के नाम से भी जाना जाता है। चौधरी देवीलाल अक्सर कहा करते थे- कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है। जब तक गरीब किसान मजदूर इस देश में संपन्न नहीं होगा तब तक इस देश की उन्नति के मायने ही नहीं है। इसलिए वह अक्सर दोहराया करते थे- कि हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन तन पर कपड़ा, हर सिर पर मकान, हर पेट में रोटी और बाकी बात खोटी। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए चौधरी देवी लाल आजीवन संघर्ष करते रहे उनके सोच थी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि जन सेवा के लिए होती है। जो चौधरी देवी लाल के संघर्ष में जीवन की तस्वीर आज भारतीय जन मानस के पटल पर साफ दिखाई देती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में चौधरी देवीलाल जैसे संघर्षशील नेता किसी अन्य राजनीति राजनीतिक नेता में दिखाई नहीं देता। वर्तमान समय में जन मानस पटल पर चौधरी देवी लाल के संघर्ष भरे जीवन की जो तस्वीरें दर्शाता है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत का काम करती रहेगी। चौधरी देवी लाल आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनका बुजुर्गाना अंदाज में झिड़कियां सही रास्ते की विचारधारा की सीख के रूप में जो कुछ वो देकर गए हैं, वह हमेशा हमारे बीच रहेगा।
शिक्षा
चौधरी देवीलाल ने अपनी शिक्षा दसवीं तक ही ग्रहण की।
करियर
चौधरी देवीलाल ने अपने दसवीं की पढ़ाई छोड़कर 1938 से राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया। चौधरी देवीलाल ने लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे सेवक के रूप में भाग लिया और फिर 1930 में आर्य समाज नेता स्वामी केशवानंद द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया खरीदी जिसके परिणामस्वरुप नमक की पुड़िया खरीदने पर चौधरी देवीलाल को स्कूल से निकाल दिया गया। इस घटना घटना से प्रभावित होकर वे स्वाधीनता संघर्ष से जुड़ गए और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गये जन आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इसके लिए उनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ी।
चौधरी देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का जोश कूट- कूट कर भरा हुआ था। फलस्वरूप बचपन में उन्होंने जहां अपने स्कूली जीवन के मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। जिसके साथ -साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय और भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय भी दिया। 1962 से 1967 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनाने के लिए उन्होंने निर्णायक की भूमिका निभाई। चौधरी देवीलाल ने 1987 से 1989 हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार प्रधानमंत्री भारतीय राजनीतिक इतिहास का न्याय नया आयाम स्थापित किया गया। वे ताउम्र देश और जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
हरियाणा के निर्माता के रूप में
सयुंक्त पंजाब के समय हरियाणा जो उस समय पंजाब का हिस्सा था विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने उस भेदभाव को मिटाने के लिए न सिर्फ पार्टी मंच पर मुद्दा उठाया बल्कि विधानसभा से भी आंकडों के साथ बात रखी है और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया है। जिसके फलस्वरूप 1 नवंबर 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा के निर्माता के रूप में जाना जाने लगा।
मृत्यु
चौधरी देवीलाल की 6 अप्रैल 2001 को मृत्यु हो गई थी।