आज इस आर्टिकल में हम आपको चूड़ामन की जीवनी के बारे में बताने जा रहे है चूड़ामन भरतपुर राज्य के राजा। चूड़ामन स्वंय अपने प्रति निष्ठावान था। चूड़ामन कर्मठ और व्यावहारिक व्यक्ति था। उसने जाटों को विकसित और मजबूत बनाया। उनके समय में पहली बार ‘जाट शक्ति’ शब्द प्रचलन में आया बदनसिंह एवं सूरजमल के नेतृत्व में जाट शक्ति अठारहवीं शती में हिन्दुस्तान में एक मजबूत ताक़त बन गई थी।
चूड़ामन सिंह ने 1721 में आत्महत्या की उस समय उनके भाईके पौत्र सूरजमल चौदह वर्ष का था। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको हम आपको चूड़ामन की जीवनी के बारे में बताएंगे
चूड़ामन की जीवनी

जन्म
चूड़ामन का जन्म 1695 में हुआ था । चूड़ामन के पिता का नाम ब्रजराज था। चूड़ामन की मां का नाम अमृतकौर था उनके पिता की दो पत्नियां थी इंदर कौर और अमृतकौर, वे दोनों ही एक साधारण से जमीदार परिवार से थी। चूड़ामन की मां अमृतकौर जो कि चौधरी चंद्र सिंह की बेटी थी। उनके दो पुत्र थे -अतिराम और भाव सिंह। ये दोनों भी मामूली जमीदार परिवार से थे। सम्भवतः चूड़ामन सिनसिनी पर शत्रु का अधिकार होने के बाद डीग, बयाना और चम्बल के बीहड़ों के जंगली इलाक़ों में छिप गया होगा।
मारो या भागों की छापामार पद्धति से लूटपाट करता था और उनको जनता का समर्थन प्राप्त था । चूड़ामन खुद अपने प्रति निष्ठावान था। जाट-लोग कठोर जीवन बिताते थे। वे न दया चाहते थे और न दया करते थे। चूड़ामन मेहनती और व्यावहारिक व्यक्ति था। उसने जाटों को विकसित और मजबूत बनाया। उनके समय में पहली बार ‘जाट शक्ति’ शब्द प्रचलन में आया बदनसिंह और सूरजमल के नेतृत्व में जाट शक्ति अठारहवीं शती में हिन्दुस्तान में एक शक्तिशाली ताक़त बन गई थी।
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चूड़ामन की छापामार लड़ाकू सेना
चूड़ामन में नेतृत्व के गुण विद्यमान थे। उसने एक ज़बरदस्त छापामार लड़ाकू सेना तैयार की थीं। उसके नियम थे-
किसी क़िले अथवा गढ़ी में छिप कर बैठने की अपेक्षा कुछ घुड़सवारों को लेकर चलते रहना चाहिए , योजना बनाकर विरोधियों का विरोध करना, युद्ध की योजना बनाना, अनुशासन बनाना और एक के बाद एक मोर्चा खोलने के लिए लगातार चलते रहना। जिस के कारण शत्रु आराम से नहीं रह पाते थे। शत्रुओं को रास्तों की जानकारी ना होने तथा भारी साज़-सामान होने के कारण उनकी चलते रहने की गतिशीलता कम हो जाती थी और वे जंगलों में ही भटक जाते थे।
सिनसिनवार जाटों ने मुरसान एवं हाथरस के सरदारों की सहायता से दिल्ली और मथुरा, आगरा और धौलपुर के बीच शाही मार्ग को लगभग बन्द करवा दिया था। मुग़लों के साथ युद्ध करते हुए चूड़ामन कभी पकड़ा नहीं गया, ना ही कभी पूरी तरह परास्त हुआ। 17वीं शताब्दी के अन्त तक उनका प्रभाव काफी बढ़ गया था। उनके पास 10,000 योद्धाओं–बन्दूकचियों, घुड़सवारों और पैदल की सेना थी। 1704 में उन्होने सिनसिनी पर फिर से अधिकार कर लिया,और 1705 में आगरा के फ़ौजदार मुख़्तारख़ाँ के आक्रमण करने पर वह सिनसिनी छोड़कर अपना प्रधान शिविर थून ले गया। वहाँ उसने बहुत मज़बूत दुर्ग बनवाया।
मृत्यु
चूड़ामन सिंह ने 1721 में आत्महत्या की. उस समय उसके भाई का पौत्र सूरजमल चौदह वर्ष का था।