आज इस आर्टिकल में हम आपको दादा साहेब फालके की जीवनी – Dada Saheb Phalke Biography Hindi के बारे में बताएंगे।
दादा साहेब फालके की जीवनी – Dada Saheb Phalke Biography Hindi
Dada Saheb Phalke एक भारतीय फिल्म निर्माता-निर्देशक और चलचित्र लेखक थे।
उन्हें भारतीय सिनेमा का पितामह भी कहा जाता है।
अपने 19 साल के करियर में उन्होंने 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाई थी।
3 मई ,1913 को उन्होंने राजा हरिश्चंद्र नाम की पहली मूक फिल्म बनाई।
भारतीय सिनेमा में दादा साहेब के ऐतिहासिक योगदान के चलते 1969 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में ‘दादा साहेब फालके अवार्ड’ की शुरुआत की।
भारतीय सिनेमा का इसे सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है।
जन्म
दादा साहेब फालके का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को त्र्यम्बकेश्वर, नाशिक, महाराष्ट्र में हुआ था।
उनका पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फालके था।
उनके पिता का नाम गोविंद फालके था। उनके पिता एक जाने-माने विद्वान थे।
1902 में उनका विवाह सरस्वती बाई फालके के साथ हुआ।
दादा साहब फाल्के के बेटे का नाम भाल चंद्र फालके था।
शिक्षा – दादा साहेब फालके की जीवनी
दादा साहेब फाल्के ने 1885 में मुंबई के जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया।
1890 में जे०जे० स्कूल से पास होने के बाद उन्होंने महाराजा सयाजीराव महाविद्यालय, वडोदरा में दाखिला लिया।
वहां पर उन्होंने मूर्तिकला, इंजीनियर, ड्रॉइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी का अभ्यास किया।
करियर
दादा साहेब फालके ने अपने करियर की शुरुआत गोधरा में एक छोटे गांव के फोटोग्राफर की तरह की। अपनी पहली पत्नी के देहांत के बाद उन्होंने व व्यापार छोड़ दिया। इसके बाद में वे जल्द ही जर्मन जादूगर कार्ल हर्ट्ज़ से मिले, जो एक प्रसिद्ध जादूगर थे। इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने पुरातात्विक काम करने का करने का मौका मिला। वे लगातार अपना काम करते रहे और इसके बाद में उन्होंने प्रिंटिंग का व्यवसाय शुरू किया।
उन्होंने कुछ समय के लिए राजा रवि वर्मा के साथ में काम किया। इसके बाद में उन्होने अपना खुद का प्रिंटिंग प्रेस शुरू किया। उन्होंने अपनी पहली यात्रा गेरमान्य में कि ताकि वे आधुनिक तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल कर सके। मशीनों की जानकारी और कला का ज्ञान प्राप्त कर सके।
अपने 19 साल के करियर में 1913 से लेकर 1937 तक दादा साहेब फाल्के ने 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाई।
उन्होने पहली फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ से अपने करियर की शुरुआत हुई। इस फिल्म को बनाने में 15000 रुपये लगे थे इस फिल्म में काम करने के लिए कोई स्त्री तैयार नहीं हुई इसलिए लाचार होकर तारामती की भूमिका के लिए एक पुरुष पात्र ही चुना गया। इस चलचित्र में दादासाहब स्वयं नायक (हरिश्चंन्द्र) बने और रोहिताश्व की भूमिका
उनके सात वर्षीय पुत्र भालचन्द्र फालके ने निभाई। यह चलचित्र सर्वप्रथम मई, 1913 में ‘कोरोनेशन थिएटर’ में प्रदर्शित किया गया। इस चलचित्र के बाद दादासाहब ने दो और पौराणिक फिल्में “भस्मासुर मोहिनी” और “सावित्री” बनाई। 1915 में अपनी इन तीन फिल्मों के साथ दादासाहब विदेश चले गए। लंदन में इन फिल्मों की बहुत प्रशंसा हुई।
कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर 1937 में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम सवाक फिल्म “गंगावतरण” (दादा साहब फालके द्वारा निर्देशित पहली बोलती फिल्म) बनाई। दादा साहेब ने कुल 125 फिल्मों का निर्माण किया।
प्रसिद्ध फिल्म – दादा साहेब फालके की जीवनी
दादा साहेब फालके नें अपने 19 साल के लंबे करियर में कुल 95 फिल्में और 27 लघु फिल्मे बनाईं।
- राजा हरिश्चंद्र (1913)
- मोहिनी भास्मासुर (1913 )
- सत्यवान सावित्री (1914 )
- लंका दहन (1917)
- श्री कृष्ण जन्म (1918)
- कलिया मर्दन (1919)
- बुद्धदेव (1923)
- बालाजी निम्बारकर (1926)
- भक्त प्रहलाद (1926)
- भक्त सुदामा (1927)
- रूक्मिणी हरण (1927)
- रुक्मांगदा मोहिनी (1927)
- द्रौपदी वस्त्रहरण (1927)
- हनुमान जन्म (1927)
- नल दमयंती (1927)
- भक्त दामाजी (1928)
- परशुराम (1928)
- कुमारी मिल्ल्चे शुद्धिकरण (1928)
- श्रीकृष्ण शिष्टई (1928)
- काचा देवयानी (1929)
- चन्द्रहास (1929)
- मालती माधव (1929)
- मालविकाग्निमित्र (1929)
- वसंत सेना (1929)
- बोलती तपेली (1929)
- संत मीराबाई (1929)
- कबीर कमल (1930)
- सेतु बंधन (1932)
- गंगावतरण (1937) – दादा साहब फालके द्वारा निर्देशित पहली बोलती फिल्म है।
सम्मान
- दादा साहेब फाल्के के सम्मान में 1969 में भारत सरकार ने दादा साहेब फालके अवॉर्ड घोषित किया। यह सन 1969 में पहला पुरस्कार अभिनेत्री देविका रानी रोरिक को दिया गया था।
- भारतीय सिनेमा के सबसे महत्वपूर्ण और गरिमा प्राप्त पुरस्कारों में से एक दादा साहेब फाल्के पुरस्कार माना जाता है।
- 1971 में भारतीय डाक द्वारा उनके चेहरे का एक पोस्टल स्टैंप शुरू किया गया
- दादा साहेब फाल्के अकादमी मुंबई में भी उनके सम्मान में 2001 में कई पुरस्कार घोषित किए गए
- भारत सरकार उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष चलचित्र-जगत के किसी विशिष्ट व्यक्ति को ‘दादा साहब फालके पुरस्कार’ प्रदान करती है।
- यह पुरस्कार वर्ष के अंत में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों के साथ दिया जाता है। लेकिन वर्ष 2006 में बंबई हाई कोर्ट ने फ़िल्म महोत्सव निदेशालय को निर्देश दिया कि वह इस सम्मान के लिए बिना सेंसर की हुई फ़िल्मों पर ही विचार करे। इसे फ़िल्म महोत्सव निदेशालय ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला फ़िल्म महोत्सव निदेशालय के पक्ष में रहा। अदालती फैसले में देरी के कारण उस वर्ष के पुरस्कार की घोषणा वर्ष 2008 के मध्य में की गई।
- 2007 के पुरस्कार की घोषणा सिंतबर, 2009 में हुई और इसी तरह वर्ष 2008 के पुरस्कार की 19 जनवरी, 2010 को तथा वर्ष 2009 के पुरस्कार की घोषणा 9 सितंबर, 2010 को हुई।
- इस पुरस्कार में भारत सरकार की ओर से दस लाख रुपये नकद, स्वर्ण कमल और शॉल प्रदान किया जाता है।
- वर्ष 2008 का ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ कर्नाटक के वी.के. मूर्ति को प्रदान किया गया था, जो इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने वाले पहले सिनेमैटोग्राफर थे।
- ‘दादा साहेब फाल्के अकेडमी’ के द्वारा भी दादा साहेब फाल्के के नाम पर तीन पुरस्कार भी दिए जाते हैं, जो हैं – फाल्के रत्न अवार्ड, फाल्के कल्पतरु अवार्ड और दादा साहेब फाल्के अकेडमी अवार्ड्स।
मृत्यु – दादा साहेब फालके की जीवनी
दादा साहेब फालके की मृत्यु 16 फरवरी, 1944 को 73 साल की उम्र में नासिक में हुई थी।
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