डॉ एनी बेसेंट की जीवनी – Annie Besant Biography Hindi

आज हम आपको इस आर्टिकल में डॉ एनी बेसेंट की जीवनी – Annie Besant Biography Hindi के बारे में बताएंगे

डॉ एनी बेसेंट की जीवनी – Annie Besant Biography Hindi

डॉ एनी बेसेंट की जीवनी

डॉ एनी बेसेंट एक प्रसिद्ध थियोसॉफिस्ट, समाज सुधारक, राजनीतिक मार्गदर्शक, महिला कार्यकर्ता, लेखिका और प्रवक्ता भी थी।

उन्होंने 1916 में ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की।

एनी बेसेंट भारतीयों के अधिकारों के लिए लडी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष भी बनी।

जन्म

डॉ॰ एनी बेसेन्ट का जन्म 1847 में लन्दन में हुआ।

एनी बेसेंट को आयरन लेडी के नाम से भी जाना जाता है।

इनके पिता एक अंग्रेज थे और पेशे से डाक्टर थे।

उनके पिता की डाक्टरी पेशे से अलग गणित तथा दर्शन में गहरी रूचि थी।

उनकी माता एक आदर्श आयरिस महिला थीं।

डॉ॰ बेसेन्ट के ऊपर इनके मात -पिता के धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव था।

अपने पिता की मृत्यु के समय डॉ॰ बेसेन्ट मात्र पाँच वर्ष की थी।

पिता की मृत्यु के बाद धन के अभाव के कारण उनकी माता उन्हे हैरो ले गई।

शिक्षा – डॉ एनी बेसेंट की जीवनी

हैरो से ही मिस मेरियट के संरक्षण में उन्होने शिक्षा प्राप्त की।

मिस मेरियट उन्हे कम उम्र में ही फ्रांस तथा जर्मनी ले गई और उन देशों की भाषा सिखाई ।

17 वर्ष की आयु में एनी अपनी माँ के पास वापस आ गईं।

युवावस्था में उनका परिचय एक युवा पादरी से हुआ और 1867 में उसी रेवरेण्ड फ्रैंक से एनी बुड की शादी भी हो गई ।

पति के विचारों से असमानता के कारण और उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा।

संकुचित विचारों वाला पति असाधारण व्यक्तित्व सम्पन्न स्वतंत्र विचारों वाली आत्मविश्वासी महिला को साथ नहीं रख सके।

1870 तक वे दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं।

ईश्वर, बाइबिल और ईसाई धर्म पर से उनकी आस्था डिग गई।

पादरी-पति और पत्नी का परस्पर निर्वाह कठिन हो गया और अन्ततोगत्वा 1974 में सम्बन्ध-विच्छेद हो गया।

तलाक के पश्चात् एनी बेसेन्ट को गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और उन्हें स्वतंत्र विचार सम्बन्धी लेख लिखकर पैसे इकठ्ठे करने पड़े।

डॉ॰ बेसेन्ट इसी समय चार्ल्स व्रेडला के सम्पर्क में आई। तब वे सन्देहवादी के स्थान पर ईश्वरवादी हो गई।

कानून की सहायता से उनके पति ने दोनों बच्चों को प्राप्त करने में सफल हो गये।

इस घटना से एनी बेसंट को गहरा धक्का लगा।

योगदान

महान् ख्याति प्राप्त पत्रकार विलियन स्टीड के सम्पर्क में आने पर एनी ने लेखन एवं प्रकाशन के कार्य में काफी रुचि लेने लगीं।

वे अपना अधिकांश समय मजदूरों, अकाल पीड़ितों और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को सुविधा दिलाने में व्यतीत करने लगी ।

वे कई वर्षों तक इंग्लैण्ड की सबसे शक्तिशाली महिला ट्रेड यूनियन की सेक्रेटरी रहीं।

उन्होने अपने ज्ञान और शक्ति को सेवा के माध्यम से चारों ओर फैलाना बहुत जरूरी समझती थीं।

उनका मानना था कि बिना स्वतंत्र विचारों के सत्य की खोज करना संभव नहीं है।

1878 में ही उन्होंने पहली बार भारतवर्ष के बारे में अपने विचारों को प्रकट किया । उनके लेख तथा विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति स्नेह पैदा कर दिया।
अब वे भारतीयों के बीच काम करने के बारे में दिन-रात सोचने लगीं। 1883 में वे समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुईं।
उन्होंने ‘सोसलिस्ट डिफेन्स संगठन’ नाम की एक संस्था बनाई।
इस संस्था में उनकी सेवाओं ने उन्हें काफी सम्मान दिया। इस संस्था ने उन मजदूरों को दण्ड मिलने से सुरक्षा प्रदान की जो लन्दन की सड़कों पर निकलने वाले जुलूस में हिस्सा लेते थे।

7 जुलाई 1898 को ‘सेंट्रल हिन्दू कॉलेज’ की स्थापना की। सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जातीय व्यवस्था, विधवा विवाह आदि को दूर करने के लिए ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ नामक संस्था बनाई।

योगदान – डॉ एनी बेसेंट की जीवनी

इस संस्था की सदस्यता पाने के लिये एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़ते थे। जिसमे कुछ इस प्रकार लिखा होता था –

  • मैं जाति पाति पर आधारित छुआछूत नहीं करुंगा।
  • मैं अपने पुत्रों का विवाह 18 वर्ष से पहले नहीं करुंगा।
  • मैं अपनी पुत्रियों का विवाह 16 वर्ष से पहले नहीं करुंगा।
  • मैं पत्नी, पुत्रियों और कुटुम्ब की अन्य स्त्रियों को शिक्षा दिलवाऊँगा, कन्या शिक्षा का प्रचार करुँगा। स्त्रियों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करुंगा।
  • मैं जन साधारण में शिक्षा का प्रचार करुंगा।
  • मैं सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वर्ग पर आधारित भेद-भाव को मिटाने का प्रयास करुंगा।
  • मैं सक्रिय रूप से उन सामाजिक बन्धनों का विरोध करुंगा जो विधवा स्त्री के सामने आते हैं जब वह पुनर्विवाह करती हैं।
  • मैं कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक शिक्षा एवं सामाजिक और राजनीतिक उन्नति के क्षेत्र में एकता लाने का प्रयत्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व व निर्देशन में करुंगा।

1889 में एनी बेसेन्ट थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुईं। उनके अन्दर एक शक्तिशाली अद्वितीय और विलक्षण भाषण देने की कला विध्यमान थी।

इसलिए बहुत जल्दी उन्होंने अपने लिये थियोसोफिकल सोसायटी की एक प्रमुख वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।

उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को थियोसोफी की शाखाओं के माध्यम से एकता के सूत्र में बाधने का आजीवन प्रयास किया।

उन्होंने भारत को थियोसोफी की गतिविधियों का केन्द्र बनाया।

1893 में उनका भारत आगमन  हुआ। 1906 तक इनका अधिक़तर समय वाराणसी में बीता।

वे 1907 में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा निर्वाचित हुईं।

उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी निंदा करते हुए प्राचीन हिन्दू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया।

धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रीय पुनर्जागरण का कार्य शुरू किया।

कृतियाँ

प्रतिभा-सम्पन्न लेखिका और स्वतंत्र विचारक होने के नाते एनी बेसेन्ट ने थियोसॉफी (ब्रह्मविद्या) पर लगभग 220 पुस्तकें व लेख  लिखे । ‘अजैक्स’ उपनाम से भी उनकी लेखनी काफी चली थी।

पूर्व-थियोसॉफिकल पुस्तकों एवं लेखों की संख्या लगभग 205 है।1893 में उन्होंने अपनी ‘आत्मकथा’ प्रकाशित की थी।

उनकी जीवनीपरक कृतियों की संख्या 6 है।

उन्होंने केवल एक साल के भीतर 1895  में सोलह पुस्तकें और अनेक पैम्प्लेट प्रकाशित किये जो900 पृष्ठों से भी ज्यादा थे।

एनी बेसेन्ट ने भगवद्गीता का अंग्रेजी-अनुवाद किया तथा अन्य कृतियों के लिए प्रस्तावनाएँ भी लिखीं।

उनके द्वारा क्वीन्स हॉल में दिये गये व्याख्यानों की संख्या प्राय: 20 होगी।

भारतीय संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक सुधारों पर संभवत: 48 ग्रंथों और पैम्प्लेटों की उन्होंने रचना की।

भारतीय राजनीति पर करीबन 77 पुष्प खिले। उनकी मौलिक कृतियों से चयनित लगभग 28 ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

समय-समय पर ‘लूसिफेर’, ‘द कामनवील’ व ‘न्यू इंडिया’ में भी एनी बेसेन्ट ने संपादन किये।

पुरस्कार-

देशवासियों ने उन्हें माँ वसंत कहकर सम्मानित किया, तो महात्मा गांधी ने उन्हें वसंत देवी की उपाधि से विभूषित किया।

मृत्यु – डॉ एनी बेसेंट की जीवनी

20 सितम्बर1933 को एनी बेसेंट का निधन हो गया । इतिहास की इस महान् नायिका की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उनकी इच्छाओं के अनुसार भारतीय पद्धति से उनका दाह संस्कार हुआ।

उनका अस्थि कलश बनारस लाया गया तथा दशाश्वमेध घाट पर उसका विसर्जन हुआ

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