डॉ॰ कृष्ण कुमार बर्मिंघम (इंगलैंड ) मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। डॉ॰ कृष्ण कुमार एक लम्बे समय से भारतीय भाषाओं की ज्योति `गीतांजलि बहुभाषी समाज’ के माध्यम से अलख जागते आए हैं। डॉ॰ कुमार 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के अध्यक्ष भी थे। डॉ॰ कुमार की कविताएं गहराई और अर्थ का संगीतमय मिश्रण होती हैं। उनका विचार उनकी कविताओं पर हावी रहता है। उन्हें एक अर्थ में यदि कवियों का कवि कहा जाय तो शायद गलत न होगा क्योंकि गीतांजलि के माध्यम से वे बर्मिंघम के कवियों कवयित्रियों को एक नई राह भी दिखा रहे हैं। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको डॉ० कृष्ण कुमार की जीवनी के बारे में बताएगे।
डॉ॰ कृष्ण कुमार की जीवनी

जन्म
डॉ॰ कृष्ण कुमार का जन्म 1940 को बहराइच, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे हिन्दी भाषा के लेखक है और इस समय वे बर्मिंघम (इंगलैंड) में रहते है।
मुख्य कृतियाँ
- मैं अभी मरा नहीं,
- चिंतन बना लेखनी मेरी, ले
- किन पहले इनसान बनो
रचनाएँ
कविताएँ
- क्यों अँधेरों में
- काल को सुनना पड़ेगा
- गीत तुम अब गुनगुनाओ
- छोड़ रोना तू जरा हँस
- दुखियारा मन रो ही पड़ता
- प्रेम उमंगित और तरंगित
- बार-बार साकी जीवन में
- मैं पास तुम्हारे आ न सका
- मृत्यु क्यों तुम आ रही हो ?
- यु़द्ध के आसार चढ़ते जा रहे हैं
संपादन
- धनक,
- गीतांजलि,
- पोएम्स फ्राम ईस्ट ऐंड वेस्ट,
- ओऐसिस पोएम्स (चार बहुभाषी काव्य-संकलन – अंग्रेजी में अनुवाद के साथ) काव्य तरंग,
- सूरज की सोलह किरणें।
पुरस्कार
- उ.प्र. हिंदी संस्थान के द्वारा प्रवासी भारतीय भूषण सम्मान,
- उत्कृष्ट समुदाय सेवा के लिए भारतीय उच्चायुक्त,
- यू.के. द्वारा सम्मानित,
- अक्षरम द्वारा हिंदी सेवा सम्मान
योगदान
डॉ॰ कृष्ण कुमार बर्मिंघम ( इंगलैंड )मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। में डॉ॰ कृष्ण कुमार एक लम्बे समय से भारतीय भाषाओं की ज्योति `गीतांजलि बहुभाषी समाज’ के माध्यम से अलख जगाये हुए हैं। गीतांजलि ब्रिटेन की एकमात्र ऐसी संस्था है जो भारत की तमाम भाषाओं को साथ लेकर चलने का प्र्यत्त्न करती है। डॉ॰ कुमार 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के अध्यक्ष भी बने थे। डॉ॰ कुमार की कविताएं गहराई और अर्थ का संगीतमय मिश्रण होती हैं। विचार उनकी कविताओं पर हावी रहता है। उन्हें एक अर्थ में यदि कवियों का कवि कहा जाय तो शायद गलत नहीं होगा क्योंकि गीतांजलि के माध्यम से वे बर्मिंघम के कवियों कवयित्रियों को एक नई राह भी दिखा रहे हैं।
उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गीतांजलि के सदस्यों में कई भारतीय भाषाओं के कवि शामिल हैं। अजय त्रिपाठी, स्वर्ण तलवार, रमा जोशी, चंचल जैन, विभा केल आदि काफी समय से कविता लिख रहे हैं। प्रियंवदा देवी मिश्र की रचनाओं में महादेवी वर्मा का प्रभाव अच्छी तरह से महसूस किया जा सकता है।