दुर्गा खोटे ( English – Durga Khote) हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। अभिनय के अलावा दुर्गा खोटे ने लंबे समय तक लघु फ़िल्में, विज्ञापन फ़िल्में, वृत्तचित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में ‘साथी’ नाम की एक फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया। उन्हें 1968 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया तथा इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।
दुर्गा खोटे की जीवनी – Durga Khote Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण
नाम | दुर्गा खोटे |
पूरा नाम | दुर्गा खोटे |
जन्म | 14 जनवरी 1905 |
जन्म स्थान | मुम्बई, ब्रिटिश भारत |
पिता का नाम | – |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाति | – |
जन्म
दुर्गा खोटे का जन्म 14 जनवरी 1905 को मुम्बई, ब्रिटिश भारत में हुआ था।
फिल्मी करियर
जब वे 26 साल की उम्र में उनके पति का निधन हो गया जिसके बाद दुर्गा खोटे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी भी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने फ़िल्मों की राह ली। उस दौर में बहुधा पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे और अधिकतर घरों में फ़िल्मों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। दुर्गा खोटे मूक फ़िल्मों के दौर में ही फ़िल्मों में आ गई थी और ‘फरेबी जाल’ उनकी पहली फ़िल्म थी। बतौर नायिका ‘अयोध्येचा राजा’ उनकी पहली फ़िल्म थी जो मराठी के साथ साथ हिंदी में भी थी। यह फ़िल्म कामयाब रही और दुर्गा खोटे नायिका के रूप में सिनेमा की दुनिया में स्थापित हो गईं।
दुर्गा खोटे की कामयाबी ने कइयों को प्रेरित किया और हिंदी फ़िल्मों से जुड़ी सामाजिक वर्जना टूटने लगी। दुर्गा खोटे ने एक और पहल करते हुए स्टूडियो व्यवस्था को भी दरकिनार कर दिया और फ्रीलांस कलाकार बन गई। स्टूडियो सिस्टम में कलाकार मासिक वेतन पर किसी एक कंपनी के लिए काम करते थे। लेकिन दुर्गा खोटे ने इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए एक साथ कई फ़िल्म कंपनियों के लिए काम किया।
लड़कियों को दिखाई फ़िल्म की राह
Durga Khote के फ़िल्मों में काम करने से पहले पुरुष ही स्त्री पात्र भी निभाते थे। हिन्दी फ़िल्मों के पितामह दादा साहेब फाल्के ने जब पहली हिन्दी फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” बनायी तो उन्हें राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई महिला नहीं मिली। उन्हें मजबूर होकर एक युवक सालुंके से यह भूमिका करानी पडी। इस स्थिति को देखकर दुर्गा खोटे ने फ़िल्मों में काम करने का फैसला किया और उनके इस कदम से सम्मानित परिवारों की लड़कियों के लिए भी फ़िल्मों के दरवाज़े खोलने में मदद मिली।
उन्होंने 1931 में प्रभात फ़िल्म कम्पनी की मूक फ़िल्म ‘फरेबी जाल’ में एक छोटी सी भूमिका से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की लेकिन उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा और फ़िल्मों से उनका मोहभंग हो गया था। वह शायद फिर फ़िल्मों में काम नहीं करतीं लेकिन निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम ने उन्हें मराठी और हिन्दी भाषाओं में बनने वाली अपनी अगली फ़िल्म ‘अयोध्येचा राजा’ 1932, में रानी तारामती की भूमिका के लिए किसी तरह मना लिया। उन्होंने इस काम के लिए फ़िल्म के नायक गोविंदराव तेम्बे की मदद ली। कहा जाता है कि तेम्बे शांताराम बापू के साथ दुर्गा खोटे के घर इतनी बार गए कि उनका रंग काला पड गया और लोग कहने लगे थे कि उन्हें ‘अयोध्येचा राजा’ कहा जाए या ‘अफ्रीकाचा राजा’ बोला जाए।
मराठी की इस पहली सवाक् फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद दुर्गा खोटे ने फिर पलट कर नहीं देखा। प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही 1936 में बनी फ़िल्म ‘अमर ज्योति’ से वह सुर्खियों में आ गयीं। 1934 में कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फ़िल्म कंपनी ने ‘सीता’ फ़िल्म का निर्माण किया, जिसमें उनके नायक पृथ्वीराज कपूर थे। देवकी कुमार बोस निर्देशित इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय ने उन्हें शीर्ष अभिनेत्रियों की कतार में खडा कर दिया। वह भारतीय अभिनेत्रियों की कई पीढियों की प्रेरणास्रोत रहीं। इनमें शोभना समर्थ जैसी नायिकाएं भी शामिल थीं जो बताया करती थीं कि किस तरह दुर्गा खोटे से उन्हें प्रेरणा मिली।
‘माया मछिन्द्र’
प्रभात कंपनी की ही फ़िल्म ‘माया मछिन्द्र’ 1932 में दुर्गा खोटे ने एक बहादुर योद्धा की भूमिका निभायी। इसके लिए उन्होंने योद्धा के कपडे पहने, हाथ में तलवार पकडी और सिर पर शिरस्त्राण पहना। फ़िल्म के एक दृश्य में एक बाज ने एक चरित्र अभिनेता पर सचमुच हमला कर दिया तो दुर्गा खोटे ने उसे पकड लिया और उसे तब तक काबू में किए रखा जब तक उसका प्रशिक्षक नहीं आ गया। इस तरह की भूमिकाओं ने दूसरी अभिनेत्रियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करने का काम किया।
निर्माण एवं निर्देशन
अभिनय के अलावा Durga Khote ने लंबे समय तक लघु फ़िल्में, विज्ञापन फ़िल्में, वृत्त चित्रों और धारावाहिकों का भी निर्माण किया। दुर्गा खोटे ने वर्ष 1937 में ‘साथी’ नाम की एक फ़िल्म का निर्माण और निर्देशन भी किया।
प्रमुख फिल्में
- 1983 दौलत के दुश्मन
- 1980 कर्ज़
- 1977 पहेली
- डार्लिंग डार्लिंग
- पापी
- चाचा भतीजा
- 1976 शक
- रंगीला रतन
- जानेमन
- जय बजरंग बली
- 1975 खुशबू
- चैताली
- काला सोना
- 1974 विदाई
- 1973 अग्नि रेखा
- बॉबी
- अभिमान
- 1972 बावर्ची
- राजा जानी
- 1971 बनफूल
- एक नारी एक ब्रह्मचारी
- 1970 खिलौना
- गोपी
- आनन्द
- 1969 जीने की राह
- धरती कहे पुकार के
- प्यार का सपना
- 1968 सपनों का सौदागर
- संघर्ष
- झुक गया आसमाँ
- 1967 चन्दन का पालना
- 1966 प्यार मोहब्बत
- अनुपमा
- सगाई
- दादी माँ
- 1965 काजल
- 1964 कैसे कहूँ
- दूर की आवाज़
- बेनज़ीर
- 1963 मुझे जीने दो
- 1962 मनमौजी
- मैं शादी करने चला
- 1961 भाभी की चूड़ियाँ
- 1960 पारख
- मुग़ल-ए-आज़म
- उसने कहा था
- 1959 अर्द्धांगिनी
- 1957 भाभी
- 1956 राजधानी
- 1954 लकीरें
- 1954 मिर्ज़ा गालिब
- 1953 शिकस्त
- 1952 आँधियां
- मोरद्वाज
- 1951 आराम
- सज़ा
- 1950 बेकसूर
- निशाना
- 1949 सिंगार
- जीत
- 1935 इन्कलाब
- दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथा (मी दुर्गा खोटे) भी लिखी जिसकी व्यापक सराहना हुई। मूल रूप से मराठी भाषा में लिखी आत्मकथा का अंग्रेज़ी में भी अनुवाद हुआ है।
पुरस्कार
- दुर्गा खोटे को हिंदी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 1983 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- इसके अलावा 1958 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला।
- उन्हें 1968 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
- ‘विदाई’ में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें वर्ष 1974 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया।
निधन
Durga Khote का निधन 22 सितंबर 1991 में हुआ था।