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फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी – Fakhruddin Ali Ahmed Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी – Fakhruddin Ali Ahmed Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी – Fakhruddin Ali Ahmed Biography Hindi

फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद भारत के पांचवे राष्ट्रपति थे।

वे 24 अगस्त 1974 से लेकर 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे।

अहमद जी 1925 में कांग्रेस में शामिल हुए और भारतीय स्वतंत्रता अभियान में हिस्सा लिया।

1942 के भारत छोड़ो अभियान में गिरफ्तार हुए और साढ़े तीन साल तक जेल में रहे।

आजादी के बाद वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए।

इसके बाद 1966 में और फिर 1971 में असम के बार कोटा सीट से लोकसभा के सदस्य चुने गए।

जन्म

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई, 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज़ क़ाज़ी इलाक़े में हुआ था।

इनके पिता का नाम ‘कर्नल जलनूर अली अहमद’ और दादा का नाम ‘खलीलुद्दीन अहमद’ था।

उनकी माता का नाम रुकैय्या था। उनकी मां दिल्ली के लोहारी के नवाब की बेटी थीं।

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने 9 नवम्बर 1945 को 40 वर्ष की उम्र में आबिदा हैदर के साथ निकाह किया।

आबिदा हैदर के वालिद का नाम मुहम्मद सुलतान हैदर ‘जोश’ था। यह अंग्रेज़ी हुकूमत की सिविल सर्विस में थे।

बेगम आबिदा का जन्म हरदोई उत्तर प्रदेश में 17 जुलाई, 1923 को हुआ था।

निकाह के समय इनकी आयु 22 वर्ष थी और इनके शौहर इनसे 18 वर्ष बड़े थे।

देर से विवाह होने के बावजूद इनका दाम्पत्य जीवन सफल रहा और इन्हें तीन संतानों की प्राप्ति हुई।

प्रथम संतान के रूप में इन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम परवेज अहमद रखा गया।

दूसरी संतान पुत्री थी,

जिसका नाम समीना रखा गया और सबसे छोटी संतान के रूप में पुत्र का नाम दुरेज अहमद रखा गया।

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की शरीके-हयात आबिदा बेगम सुलझे विचारों वाली एक शिक्षित महिला थीं और फाइन आर्ट्स में इनकी काफ़ी रुचि थी। वह सांस्कृतिक गतिविधियों में भी उत्साह से भाग लेती थीं।आबिदा बेगम ने इंदिरा कांग्रेस के टिकट पर बरेली उत्तर प्रदेश की सीट से लोकसभा का उपचुनाव जीता और जून 1981 में सांसद निर्वाचित हुईं।

लोकसभा सदस्या के रूप में उन्होंने बरेली की जनता में अपनी विशिष्ट साख बनाई।

इस कारण बरेली की ही संसदीय सीट से वे 1984 में पुन: लोकसभा में पहुँचीं।

शिक्षा – फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के गोंडा में सरकारी हाई स्कूल से पूरी हुई, लेकिन 1918 में पिता का तबादला दिल्ली हो गया। तो वे भी दिल्ली आ गए।

उस समय अहमद सातवीं कक्षा के छात्र थे। 1921 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।

उसके बाद उन्होने प्रसिद्ध स्टीफन कॉलेज में दाखिलालिया।

इसके कुछ समयबाद ही वे  उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैण्ड चले गए। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अंतर्गत उनका दाखिला सेंट कैथरिन कॉलेज में हुआ। 1927 में फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने स्नातक स्तर की शिक्षा तथा 1928 में विधि की शिक्षा ग्रहण की ।

विधि की डिग्री लेने के बाद वे भारत लौट आए और पंजाब हाई कोर्ट में वकील के तौर पर नामांकित हुए।

करियर

  • फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को बचपन से ही खेलकूद में काफ़ी रुचि थी। स्कूल और कॉलेज स्तर पर उन्होंने हॉकी तथा फुटबॉल में प्रतिनिधित्व किया। इसके अतिरिक्त उन्हें टेनिस, गोल्फ और शिकार की भी रुचि थी। वे असम फुटबॉल संघ और असम क्रिकेट संघ के भी अध्यक्ष रहे।
  • वे असम स्पोर्ट्स कौंसिल के उपाध्यक्ष भी रहे और एशियन लॉन टेनिस संघ के साथ इनका संबंध बाद में भी बना रहा। कालांतर में इनकी रुचि ‘ब्रिज’ खेल में भी पैदा हुई।
  •  अहमद अपने पिता के मित्र मुहम्मद शफी जो पेशे से एक एडवोकेट थे उनके सहयोग में आकर एक सहयोगी के रूप में विधि व्यवसाय करने लगे। लेकिन कुछ समय बाद पिता की प्रेरणा से फ़ख़रुद्दीन अली असम चले गए। उन्होंने अपने गृह राज्य के गोहाटी हाई कोर्ट में विधि व्यवसाय आरंभ किया। कुछ समय बाद इन्हें बड़ी सफलता प्राप्त हुई।
  • फ़ख़रुद्दीन उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ एडवोकेट के रूप में कार्य करने लगे।
  • फ़ख़रुद्दीन अली के पिता कर्नल जलनूर अली अहमद एक राष्ट्रवादी शख़्स थे लेकिन स्वयं फ़ख़रुद्दीन अली ने उनसे एक क़दम आगे रहते हुए 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता प्राप्त कर ली।

1937 से 1939 तक

  • 1937 में वे असम लेजिसलेटिव असेम्बली में सुरक्षित मुस्लिम सीट से निर्वाचित हुए। लेकिन तब वह एक स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से असेम्बली में पहुँचे थे।
  • जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर ही उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर स्वयं को नामांकित किया था। वे पहले जवाहरलाल नेहरू के नजदीक आए। उसके बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से इनकी अंतरंगता बढ़ गई।
  • जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस की कार्य समिति का सदस्य बनाया। 1964 से 1974 तक यह कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय बोर्ड में रहे।
  • 1938 में जब गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में असम में कांग्रेस की संयुक्त सरकार बनी तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। वित्त और राजस्व विभाग का दायित्व संभालते हुए उन्होंने विशिष्ट एवं उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की तथा राज्य की वित्तीय स्थिति में अपेक्षित सुधार किया।
  • 15 नवम्बर 1939 को मुख्यमंत्री गोपीनाथ ने राज्यपाल को अपना त्यागपत्र दे दिया।
  • इस कारण वित्त एवं राजस्व मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल काफ़ी संक्षिप्त रहा।

जेल यात्रा

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने भी उसमें भाग लिया।

इस कारण अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें 13 अप्रैल 1940 को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया।

रिहा होने कुछ समय बाद उन्हें सुरक्षा कारणों से दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया।

इस बार इन्हें अप्रैल 1945 तक साढ़े तीन वर्ष जेल भुगतनी पड़ी।

राजनीतिक करियर

  • 11 फरवरी, 1946 को गोपीनाथ बोरदोलोई के नेतृत्व में असम में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन इस बार के चुनाव में फ़ख़रुद्दीन अली अहमद हार गए। परंतु कांग्रेस के अनुरोध पर उन्होंने असम के एडवोकेट जनरल का पदभार संभाला और 1952 तक इस पद पर बने रहे।
  • 1952 में उन्हें राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त हुई और संसद में पहुँच गए। 1955 में वह भारतीय वकीलों के शिष्टमंडल का नेतृत्व करते हुए सोवियत संघ भी गए।
  • 1957 में उन्होंने यू. एन.ओ. में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।
  • इसके बाद फ़ख़रुद्दीन अली असम विधानसभा में निर्वाचित हुए और इन्हें असम राज्य की बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी गईं।
  • अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने वित्त, क़ानून और पंचायत विभागों को संभाला।
  • 1962 में वे दोबारा असम विधानसभा में पहुँचे और इन्हें मंत्रिमंडल में स्थान भी प्राप्त हुआ।
  • लेकिन उन्होंने स्वैच्छिक आधार पर ‘स्थानीय स्वायत्त सरकार’ से त्यागपत्र दे दिया।
  • 1964 में यह सोवियत संघ के निमंत्रण पर मॉस्को गए। वापसी में इन्होंने जापान और हांगकांग की यात्रा भी की।
  • 1965 में वह मलेशिया के स्वाधीनता समारोह में भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हुए।

मंत्रिमंडल

  • फ़ख़रुद्दीन अली अहमद श्रीमती इंदिरा गाँधी के क़रीबी सहयोगी थे। 29 जनवरी 1966 को उन्हें संघीय मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने शामिल कर लिया।
  • उन्हें सिंचाई एवं ऊर्जा मंत्रालय का कार्यभार कैबिनेट मंत्री के रूप में प्राप्त हुआ।
  • इस प्रकार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिम वर्ग के प्रतिनिधित्व में इज़ाफ़ा हुआ और असम राज्य का कोई व्यक्ति पहली बार केन्द्रीय मंत्री बनने में सफल रहा। यद्यपि राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष पर यह पण्डित नेहरू के समय में ही आ गए थे लेकिन उस समय यह सांसद नहीं थे और असम विधानसभा के प्रतिनिधि ही थे।
  • जब उन्हें ‘यूनियन कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स’ में शामिल किया गया तो यह आवश्यक था कि उन्हें अगले 6 महीने
    में संसद के किसी भी सदन की सदस्यता दिलाई जाए। अत: अप्रैल 1966 में वे राज्यसभा में पहुँचे।
  • उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में भी 14 नवम्बर 1966 से 12 मार्च 1967 तक कार्य किया।
  • फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने असम राज्य की बारपेटा संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए।
  • 1967 में इस सफलता के बाद उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शरीक करते हुए औद्योगिक विकास और
    कम्पनी मामलों का मंत्रालय सौंपा गया।
  • 27 जून 1970 को जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भारी फेरबदल किया गया तो उन्हें खाद्य एवं कृषि मंत्रालय मिला।
  • 1971 के लोकसभा चुनाव में यह पुन: बारपेटा की सीट से निर्वाचित हुए। 3 जुलाई 1974 तक खाद्य कृषि
    मंत्री के रूप में इनकी सेवाएं जारी रहीं।

विदेशी यात्राएँ – फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर रहते हुए पश्चिम जर्मनी, इंग्लैण्ड, हंगरी, बुल्गारिया,
इटली, सोवियत संघ, फ्रांस, ईरान और श्रीलंका
की यात्राएं कीं।

मोरक्को में जब इस्लामिक सम्मेलन हुआ तो यह भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए।

1971 में वे भारत सरकार के प्रतिनिधि बनकर अरब अमीरात गए ताकि पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान द्वारा की गई
सैनिक कार्यवाही के संबंध में भारत का पक्ष प्रस्तुत कर सकें।

केन्द्रीय मंत्री रहते हुए वह वक्फ समिति के सभापति बने रहे।

1966 में जब ग़ालिब पुण्यतिथि शताब्दी समारोह दिल्ली में मनाया गया तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने डॉक्टर जाकिर हुसैन को समारोह समिति का सचिव बनाया।उनके सहयोग से ग़ालिब कॉम्प्लेक्स तथा ग़ालिब म्यूज़ियम और शोध पुस्तकालय की स्थापना इर्विन हॉस्पिटल के निकट की गई। 23 अगस्त 1973 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ग़ालिब ऑडिटोरियम का उद्घाटन किया।

इसके अलावा मिर्जा ग़ालिब की स्मृति में एक स्वायत्तशासी न्यास की स्थापना भी की गई।

राष्ट्रपति पद पर

  • 3 जुलाई 1974 को फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में अपना त्यागपत्र दे दिया।
  • कांग्रेस पार्टी उन्हें अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी बनाना चाहती थी। उस समय कांग्रेस बहुत मज़बूत स्थिति में थी और उसके प्रस्तावित उम्मीदवार का राष्ट्रपति बनना तय था।
  • राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम 20 अगस्त 1974 को घोषित हुआ। कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में उन्हें विजय प्राप्त हुई। तब उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार त्रिदीप चौधरी थे, जिन्हें विपक्ष की आठ पार्टियों ने अपना उम्मीदवार बनाया था। फ़ख़रुद्दीन अली को डाले गए वोटों का 80 प्रतिशत मिला था।
  • इस चुनाव से दोबारा साबित हुआ कि भारत की धर्मनिरपेक्षता सर्वोपरि है। इस प्रकार एक ‘काज़ी’ के पौत्र ने देश का सर्वोच्च  पद प्राप्त किया।
  • उनका राष्ट्रपति निर्वाचित होना कई अल्पसंख्यक समुदायों की जीत थी। इससे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ा और मुस्लिम वर्ग में बढ़ता असंतोष कम हुआ। राष्ट्रपति नियुक्त होने के समय वे लोक सभा के सदस्य भी थे, इसलिए उन्होंने 21 अगस्त 1974 लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
  • 24 अगस्त 1974 को सुबह 9 बजे फ़ख़रुद्दीन अली ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।
  • सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री ए. एन. रे ने इन्हें उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उनके साथियों की उपस्थिति में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में शपथ ग्रहण कराई। 31 तोपों की सलामी के मध्य उन्होंने राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला।
  •  वे 24 अगस्त 1974 से लेकर 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे।

संदेश

फ़ख़रुद्दीन अली ने मुस्लिमों को संदेश दिया कि समस्त दुनिया में मुस्लिमों की अलग-अलग भाषाएँ हैं।

उन्होंने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि ईरान के लोग पर्शियन भाषा बोलते हैं, तुर्की नागरिक टर्किश भाषा बोलते हैं, इंडोनेशिया के मुस्लिम इंडोनेशियाई भाषा बोलते हैं, पंजाब के मुसलमान पंजाबी भाषा बोलते हैं और महाराष्ट्रीयन मुस्लिम मराठी भाषा बोलते हैं।वह व्यक्तिगत जीवन में स्वयं भी समस्त भाषाओं का सम्मान करते थे और इनका व्यक्तित्व हिन्दुस्तानी संस्कृति का मिला-जुला रूप था।

इंदिरा गाँधी के क़रीबी

श्रीमती इंदिरा गाँधी के साथ फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के सदैव आत्मीय एवं पारिवारिक संबंध रहे।

दोनों एक-दूसरे का हृदय से सम्मान करते थे।

मंत्री से राष्ट्रपति बनने तक भी इन संबंधों में विश्वास और स्नेह बना रहा।

इंदिरा गांधी के पारिवारिक समारोहों में भी वह शिरकत करते थे।

इसी प्रकार फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के परिवार में जन्म, मरण एवं वरण संबंधी अवसरों पर श्रीमती गांधी
एक आत्मीय जन की भांति उपस्थित रहती थीं।

श्रीमती इंदिरा गांधी के पोते राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के जन्मदिन समारोहों में भाग लेने जाते थे।

इंदिरा गांधी उन्हें घर लाकर ईद के त्योहार की बधाई देती थी।

इसी प्रकार श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्मदिन पर वह अपनी बेगम के साथ इंदिरा गांधी के आवास पर बधाई देने जाते थे।

राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने इस क्रम में कोई व्यतिक्रम नहीं किया।

सम्मान

राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की स्मृति को शाश्वत रखने के उद्देश्य से भारत सरकार ने उनके चित्र से
युक्त डाक टिकट जारी किया।

मृत्यु – फख़रुद्दीन अली अहमद की जीवनी

11 फरवरी 1977 की सुबह बाथरूम में हृदयाघात का दौरा पड़ने के कारण वह फर्श पर गिर पड़े।

फिर सुबह 8 बजकर 52 मिनट पर उनकी मृत्यु हो गई।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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