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फारुख शेख की जीवनी – Farooq Sheikh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको फारुख शेख की जीवनी – Farooq Sheikh Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

फारुख शेख की जीवनी – Farooq Sheikh Biography Hindi

फारुख शेख की जीवनी

अभिनय के महारथी थे फारुख शेख।

इसके साथ ही वे एक प्रसिद्ध अभिनेता, समाजसेवी और टेलीविजन प्रस्तोता भी थे।

फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘उमराव जान’, ‘बाजार’, ‘चश्मे बद्दूर’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में उन्होंने अपनी सादगी से भरे अभिनय से लोगों का दिल जीता।

थिएटर में बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत ही उन्हें 1973 में आई फिल्म ‘गरम हवा’ में ब्रेक मिला।

अभिनेत्री दीप्ति नवल के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।

फिल्म ‘लाहौर’ में अभिनय के लिए उन्हें 2010 में नेशनल अवार्ड से नवाजा गया था।

फ़ारुख़ शेख़ ने रियलिटी शो ‘जीना इसी का नाम है’ में टी.वी. प्रस्तोता की भूमिका भी शारदार तरीक़े से निभाई।

उन्हे 70 और 80 के दशक की फिल्मों में अभिनय के कारण काफी प्रसिद्धि मिली ।

वह सामान्यतः एक कला सिनेमा में अपने कार्य के लिए प्रसिद्ध थे जैसे समांतर सिनेमा भी कहा जाता है उन्होंने सत्यजीत राय और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्देशकों के निर्देशन में भी काम किया।

जन्म

कई बेहतरीन फिल्मों में अपनी सादगी से भरे अभिनय से लोगों का दिल जीतने वाले अभिनेता फारुख शेख का जन्म 25 मार्च, 1948 में गुजरात के अमरोली में हुआ था।

उनके पिता का नाम मुस्तफा शेख और माता का नाम फरीदा शेख था।

उनके पिता मुस्तफा शेख एक जाने माने वकील थे।

वे एक जमीदार परिवार से थे और फारुख शेख अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे।

कॉलेज के दिनों में उनकी मुलाकात रूपा जैन से हुई, जो आगे चल कर उनकी जीवन संगिनी बनीं।

फ़ारुख़ और रूपा ने नौ साल तक एक-दूसरे से मेल-मुलाकातों के बाद शादी का फैसला लिया था।

दोनों ही परिवार उनकी दोस्ती से वाकिफ थे और किसी ने विरोध नहीं किया।

हालांकि रूपा के परिजन इस बात से ज़रूर थोड़ा चिंतित थे कि फारुख, जो उन दिनों एक उभरते ऐक्टर थे और ज्यादातर रंगमंच पर काम करते थे, उनकी बेटी का खयाल कैसे रख पाएंगे।

लेकिन फ़ारुख़ को जल्द ही मिली कामयाबी के बाद वे निश्चिंत हो गए।

शिक्षा – फारुख शेख की जीवनी

फारुख शेख ने प्रारम्भिक शिक्षा मुंबई के सेंट मैरी स्कूल से ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने यहां के सेंट जेवियर्स कॉलेज में आगे की पढ़ाई की। फारुख शेख के जीवन पर उनके पिता का गहरा प्रभाव पड़ा यही कारण था कि उन्होंने वकालत की पढ़ाई की ।

उनका मकसद पिता की विरासत को आगे ले जाना था।

मुंबई के सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ लॉ से उन्होंने कानून की पढ़ाई की।

लेकिन वकील बनने के बाद जल्द ही उन्हें महसूस हुआ कि यह पेशा उनके जैसे इंसान के लिए ठीक नहीं है।

उनका कहना था कि ज्यादातर मामलों के फैसले अदालत में नहीं बल्कि पुलिस थानों में तय होते हैं।

इसके बाद ही उन्होंने एक्टिंग को तवज्जो देनी शुरू कर दिया।

फ़ारुख़ कॉलेज के दिनों में नाटकों में काम किया करते थे और यहां शबाना आज़मी उनकी अच्छी दोस्त थीं।

दोनों ने कई नाटक साथ किए थे।

कॉलेज के बाद शबाना जब फ़िल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ाई के लिए पूना जाने लगीं तो उन्होंने फ़ारुख़ से भी चलने को कहा।

परंतु उन्हें वकालत की पढ़ाई करनी थी।

फ़ारुख़ स्कूली दिनों से न केवल क्रिकेट के दीवाने थे, बल्कि अच्छे क्रिकेटर भी थे। उन दिनों भारत के विख्यात टेस्ट क्रिकेटर वीनू मांकड़ सेंट मैरी स्कूल के दो सर्वश्रेष्ठ क्रिकटरों को हर साल कोचिंग देते थे और हर बार उनमें से एक फ़ारुख़ हुआ करते थे।

जब वह सेंट जेवियर कॉलेज में पढ़ने गए तो उनका खेल और निखरा। सुनील गावस्कर का शुमार फ़ारुख़ के अच्छे दोस्तों मे होता है।

करियर

वकालत से नाता तोड़ने के बाद उन्होने एक्टिंग के अपना करियर बनाने की और ध्यान देने लगे उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘गरम हवा’ में मुफ्त में काम करने को हामी भरी।

इस फिल्म को रमेश सथ्यू बना रहे थे और उन्हें ऐसे कलाकार की जरूरत थी, जो बिना फीस लिए तारीखें दे दें।लेकिन बाद में  इस फ़िल्म के लिए फ़ारुख़ शेख़ को 750 रुपये मिले, वह भी पांच साल में।

फ़ारुख़ शेख़ के वकालत छोड़ कर फ़िल्मों में काम करने से उनके माता-पिता को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उन्होंने बेटे के फैसला का विरोध नहीं किया। वे उनके साथ खड़े रहे।

फ़ारुख़ के अनुसार उन दिनों तक यह बात ख़त्म हो चुकी थी कि फ़िल्मों में काम करना बुरा है। ‘गरम हवा’ की रिलीज के बाद फ़ारुख़ के पास दूसरी फ़िल्मों के ऑफर आने लगे।

विख्यात निर्देशक सत्यजित रे को उनका काम काफी पसंद आयातो उन्होने अपनी फ़िल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में उन्हें एक रोल ऑफर कर दिया। जब सत्यजित रे ने फोन किया तो फ़ारुख़ कनाडा में थे।

उन्होंने कहा कि मुझे लौटने में एक महीने का वक्त लगेगा। सत्यजित रे ने कहा कि वे इंतजार करेंगे

भारतीय अभिनेता, समाजसेवी और टेलीविजन प्रस्तोता रहे फ़ारुख़ शेख़ ने अपने करियर की शुरुआत थियेटर से की थी। उन्होंने सागर सरहदी के साथ मिलकर कई नाटक भी किए हैं।

बॉलीवुड में उनकी पहली बड़ी फ़िल्म ‘गरम हवा’ थी जो 1973 में आई थी। फिर उसके बाद महान् फ़िल्मकार सत्यजित रे के साथ ‘शतरंज के खिलाड़ी’ की।

1979 के बाद

शुरुआती सफलता मिलने के बाद फ़ारुख़ शेख़ को आगे भी फ़िल्में मिलने लगीं जिसमें 1979 में आई ‘नूरी’, 1981 की चश्मे बद्दूर जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

दीप्ति नवल और फ़ारुख़ शेख़ की जोड़ी सत्तर के दशक की सबसे हिट जोड़ी रही।

दर्शक इन्हें फ़िल्मों में एक साथ देखना चाहते थे। इन दोनों ने एक साथ मिलकर कई फ़िल्में की इसमें चश्मे बद्दूर, साथ-साथ, कथा, रंग-बिरंगी आदि प्रमुख हैं।

फ़ारुख़ शेख़ अपने किरदारों में जुझारू, मध्यमवर्गीय और मूल्यजीवी इन्सान के साथ-साथ मनुष्य की फितरत को भी अभिव्यक्त करने के लिए जाने जाते हैं।

उनकी आखिरी कुछ फ़िल्मों में सास बहू और सेंसेक्स, एक्सीडेंट ऑन हिल रोड और लाहौर जैसी फ़िल्में रहीं। इन फ़िल्मों में भी एक बार फिर उनकी परिपक्व छवि दिखी।

अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ ऐसे कलाकारों में शुमार हैं जो बड़े और असाधारण श्रेणी के फ़िल्मकारों की फ़िल्मों में एक ख़ास किरदार के लिए पहचाने जाते हैं या फिर उसी ख़ास किरदार के लिए बने हैं।

ऐसे अभिनेता पर्दे पर केवल अभिनय नहीं करते बल्कि उस अभिनय को जीते हैं। ऐसे किरदार ही आपके जहन में इतना प्रभाव छोड़ जाते हैं कि आप उन्हें लम्बे समय तक याद रखते हैं।

सहज और विनम्र से दिखाई देने वाले फ़ारुख़ शेख़ ने अपने समय के चोटी के निर्देशकों के साथ काम किया है। उन्होंने सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, ऋषिकेश मुखर्जी, केतन मेहता, सई परांजपे, सागर सरहदी जैसे फ़िल्मकारों का अपने अभिनय की वजह से दिल जीत लिया।

प्रसिद्ध फिल्म

 कथा -1983किसी से न कहना -1983रंग बिरंगी -1983
एक बार चले आओ -1983बाज़ार -1982साथ साथ -1982
चश्‍मे बद्दूर -1981उमराव जान -1981नूरी -1979
गमन -1978शतरंज के खिलाड़ी -1977मेरे साथ चल -1974
गरम हवा-1974वफ़ा -1990तूफ़ान -1989
घरवाली बाहरवाली -1989बीवी हो तो ऐसी -1988खेल मोहब्‍बत का -1988
पीछा करो -1988महानंदा -1987एक पल -1986
फासले – 1985सलमा -1985लोरी -1985
यहां वहां -1984लाखों की बात -1984अब आएगा मजा -1984
क्‍लब 60 -2013ये जवानी है दीवानी – 2013लिसन… अमाया – 2013
द बास्‍टर्ड चाइल्‍ड -2013शंघाई – 2012टेल मी ओ खुदा -2011
लाहौर-2010एक्सिडेंट ऑन हिल रोड -2009-छोटी सी दुनिया -2009
सास बहू और सैंसेक्‍स-2008मोहब्‍बत -1997अब इंसाफ होगा -1995
माया मेमसाब -1993जान-ए-वफ़ा -1990

सम्मान और पुरस्कार

  • 2010 में फ़िल्म ‘लाहौर’ के लिए फ़ारुख़ शेख़ को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार(नेशनल अवार्ड) से सम्मानित किया गाया था।
  • वैश्विक स्तर पर जानकारी प्रदाता इंटरनेट साइट गूगल ने बीते जमाने के शानदार अभिनेता फ़ारुख़ शेख़ के 70वें जन्मदिन पर डूडल बनाकर उन्हें अपनी तरफ से अनूठे अंदाज में श्रद्धांजलि दी है। 25 मार्च, 2018 रविवार को फ़ारुख़ शेख़ का 70वां जन्मदिन है।

मृत्यु – फारुख शेख की जीवनी

फ़ारुख़ शेख़ को दिल का दौरा पड़ने के कारण शुक्रवार 27 दिसम्बर, 2013 को दुबई में उनकी मृत्यु हो गई।

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Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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