Biography Hindi

गंगा नारायण की जीवनी – Ganga Narayan Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको गंगा नारायण की जीवनी – Ganga Narayan Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

गंगा नारायण की जीवनी – Ganga Narayan Biography Hindi

गंगा नारायण की जीवनी
गंगा नारायण की जीवनी

 

1831 और 33 में वीर भूमि और सिंहभूम के क्षेत्रों में जो भूमिज विद्रोह हुआ था।

उसका नेतृत्व गंगा नारायण ने किया था।

गंगा नारायण सिंह भूमिज विद्रोह के महानायक कहे जाते हैं।

1767 ईस्वी से 1833 ईस्वी तक, 60 से ज्यादा वर्षों में भूमिज मुंडाओं द्वारा अंग्रेजों
के विरुद्ध किए गए विद्रोह को भूमिज विद्रोह कहा गया है।

अंग्रेजों ने इसे ‘गंगा नारायण का हंगामा’ भी कहा है जबकि इतिहासकारों के नाम से लिखा है

जन्म

गंगा नारायण सिंह के पिता का नाम लक्षमण सिंह और उनकी माता का नाम ममता देवी था ।

गंगा नारायण सिंह के दो भाई और थे – श्यामकिशोर सिंह और श्याम लाल सिंह।

वराहभूम के राजा विवेक नारायण सिंह की दो रानियाँ थीं। दो रानियों के दो पुत्र थे।

18वीं शाताब्दी में राजा विवेक नारायण सिंह की मृत्यु के पश्चात दो पुत्रों में रघुनाथ नारायण सिंह पारम्पारिक भूमिज प्रथा के अनुसार बडी रानी के पुत्र को ही उत्तराधिकार प्राप्त था। लेकिन अंग्रेजों द्वारा अपनी रीति के अनुसार राजा के बड़े पुत्र रघुनाथ नारायण सिंह जोकि छोटी रानी का पुत्र था को राजा मनोनित करने पर लम्बा पारिवारिक विवाद शुरू हुआ।

स्थानीय भूमिज सरदार लक्षमण सिंंह का समर्थन करते थे।

लेकिन रघुनाथ को मिले अंग्रेजों के समर्थन और सैनिक सहायता के सामने वे टिक नहीं पाए ।

लक्षमण सिंह को राज्य बदर किया गया।

जीवनाकुलित निर्वाह के लिए लक्षमण सिंह को बांधडीह गांव का जागीर निष्कर कर दिया।

जहाँ उनका काम सिर्फ बांधडीह घाट का देखभाल करना था।

लक्षमण सिंह की शादी ममता देवी से हुई। ममता देवी स्वभाव से विनम्र तथा धर्मपरायण थी।

लेकिन अंग्रेज अत्याचार की वह कट्टर विरोधी थी। लक्षमण सिंह के तीन पुत्र हुए।

गंगा नारायण सिंह, श्यामकिशोर सिंह और श्याम लाल सिंह।

ममता देवी अपने दोनों पुत्र गंगा नारायण सिंह तथा श्याम लाल सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए सदैव प्रोत्साहित करती थी।

अंग्रेज सरकार के अत्याचार – गंगा नारायण की जीवनी

जंगल महल में गरीब किसानों पर 1765 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अत्याचार करना शुरू किया क्यूँकि दिल्ली के मुगल सम्राट बादशाह शाह आलम से बंगाल, बिहार, उडीसा की दीवानी हासिल कर ली तथा राजस्व वसूलने के लिए नये उपाय करने लगे। इसके लिए अंग्रेज सरकार ने कानून बनाकर मानभूम, वराहभूम, सिंहभूम, धलभूम, पातक्रम, मेदिनीपुर, बांकुडा तथा वर्दमान आदि स्थानों में भूमिजों की जमीन से ज्यादा राजस्व वसूलने के लिए नमक का कर, दारोगा प्रथा, जमीन विक्रय कानून, महाजन तथा सूदखोरों का आगमन, जंगल कानून, जमीन की निलामी तथा दहमी प्रथा, राजस्व वसूली उत्तराधिकार संबंधी नियम बनाए। इस प्रकार, हर तरह से आदिवासियों और गरीब किसानों पर अंग्रेजी शोषण बढता चला गया।

निष्कासित लक्षमण सिंह बांधडीह गांव में बस गए थे और राज्य प्राप्त करने के लिए कोशिश करने लगे तथा राजा बनने के लिए संघर्ष करते रहे। लेकिन बाद में  उन्हे अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिये गया और मेदिनीपुर जेल भेज दिया गया जहाँ  पर उनकी मृत्यु हो गयी। गंगा नारायण सिंह, लक्षमण सिंह के पुत्र थे। गंगा नारायण सिंह जंगल महल में गरीब किसानों पर शोषण, दमनकारी सम्बन्धी कानून के विरूद्ध अंग्रेजों से बदला लेने के लिए कटिबद्ध हो गए।

योगदान

समय के पुकार से उस इलाके के लोग सजग होकर सभी गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में एकजुट होकर अंग्रेजों के विरूद्ध नारा बुलन्द किया। उन्होंने अंग्रेजों की हर नीति के बारे में जंगल महल के हर जाति को समझाया और लड़ने के लिए संगठित किया। इसके कारण 1768 ई. में असंतोष बढा जो 1832 ई. में गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में प्रबल संघर्ष का रूप ले लिया। इस संघर्ष को अंग्रेजों ने ‘गंगा नारायण हंगामा’ कहकर पुकारा है और वहीं इतिहासकारों ने इसका नाम चुआड विद्रोह लिखा है।

प्रथम वीर

अंग्रेजों के शासन और शोषण नीति के खिलाफ लड़ने वाले गंगा नारायण सिंह प्रथम वीर थे जिन्होंने सर्वप्रथम सरदार गोरिल्ला वाहिनी का गठन किया। जिसे पर हर जाति का समर्थन प्राप्त था। धलभूम, पातकूम, शिखरभूम, सिंहभूम, पांचेत, झालदा, काशीपुर, वामनी, वागमुंडी, मानभूम, अम्बिका नगर, अमीयपुर, श्यामसुंदरपुर, फुलकुसमा, रानीपुर तथा काशीपुर के राजा-महाराजा तथा जमीनदारों का गंगा नारायण सिंह को समर्थन मिल चुका था। गंगा नारायण सिंह ने वराहभूम के दिवान तथा अंग्रेज दलाल माधव सिंह को वनडीह में 2 अप्रैल, 1832 ई. को आक्रमण कर मार दिया था। उसके बाद सरदार वाहिनी के साथ वराहबाजार मुफ्फसिल का कचहरी, नमक का दारोगा कार्यालय तथा थाना को आगे के हवाले कर दिया।

बांकुडा के समाहर्ता रसेल, गंगा नारायण सिंह को गिरफ्तार करने पहुँचा।

लेकिन सरदार वाहिनी सेना ने उसे चारों ओर से घेर लिया।

सभी अंग्रेजी सेना मारी गयी। लेकिन रसेल किसी तरह जान बचाकर बांकुडा भाग निकला।

गंगा नारायण सिंह का यह आंदोलन तूफान का रूप ले लिया था, जो बंगाल के छातना, झालदा, आक्रो, आम्बिका नगर, श्यामसुन्दर, रायपुर, फुलकुसमा, शिलदा, कुईलापाल तथा कई स्थानों में अंग्रेज रेजीमेंट को रौंद डाला। उनके आंदोलन का प्रभाव बंगाल के पुरूलिया, बांकुडा के वर्धद्मान और मेदिनीपुर जिला, बिहार के सम्पूर्ण छोटानागपुर, उडीसा के मयूरभंज, क्योंकझर और सुंदरगढ आदि स्थानों में बहुत जोरों से चला।

फलस्वरूप पूरा जंगल महल अंग्रेजों के काबू से बाहर हो गया।

सभी लोग एक सच्चा ईमानदार, वीर, देश भक्त और समाज सेवक के रूप में गंगा नारायण सिंह का समर्थन करने लगे।

अंग्रेजों को बैरकपुर छावनी से सेना भेजनी पड़ी

आखिरकार अंग्रेजों को बैरकपुर छावनी से सेना भेजनी पड़ी जिसे लेफ्टिनेंट कर्नल कपूर के नेतृत्व में भेजा गया।

सेना भी संघर्ष में परास्त हो गई ।

इसके बाद गंगा नारायण और उनके अनुयायियों ने अपनी कार्य योजना का दायरा बढा दिया।

बर्धमान के आयुक्त बैटन और छोटानागपुर के कमिशनर हन्ट को भी भेजा गया लेकिन वे भी सफल नहीं हो पाए और सरदार वाहिनी सेना के आगे हार का मुँह देखना पडा।

अगस्त 1832 से लेकर फरवरी 1833 तक पूरा जंगल महल बिहार के छोटानागपुर ( झारखण्ड), बंगाल के पुरूलिया, बांकुडा के वर्धद्मान तथा मेदिनीपुर, उडीसा के मयूरभंज, क्योंकझर और सुंदरगढ अशांत बना रहा। अंग्रेजों ने गंगा नारायण सिंह का दमन करने के लिए हर तरह से कोशिश किया लेकिन गंगा नारायण सिंह की चतुरता और युद्ध कौशल के सामने अंग्रेज टिक न सके। वर्धद्मान, छोटानागपुर तथा उडीसा (रायपुर) के आयुक्त गंगा नारायण सिंह से परास्त होकर अपनी जान बचाकर भाग निकले। इस प्रकार संघर्ष इतना तेज और प्रभावशाली था कि अंग्रेज बाध्य होकर जमीन विक्रय कानून, उत्तराधिकारी कानून, लाह पर एक्साईज ड्यूटी,
नमक का कानून, जंगल कानून वापस लेने के लिए विवश हो गए।

मृत्यु – गंगा नारायण की जीवनी

उस समय खरसावाँ के ठाकुर चेतन सिंह अंग्रेजों के साथ साठ-गाँठ कर अपना शासन चला रहा था।

गंगा नारायण सिंह ने पोडाहाट तथा सिंहभूम चाईबासा जाकर वहाँ के कोल जनजातियों को ठाकुर चेतन सिंह तथा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए संगठित किया। 6 फरवरी, 1833 को गंगा नारायण सिंह कोल जनजातियों को लेकर खरसावाँ के ठाकुर चेतन सिंह के हिन्दशहर थाने पर हमला किया लेकिन दुर्भाग्यवश जीवन के अंतिम सांस तक अंग्रेजों एवं हुकुमतों के खिलाफ संघर्ष करते हुए उसी दिन वीरगति प्राप्त किए। इस प्रकार 7 फरवरी, 1833 ई. को एक सशक्त, शक्तिशाली योद्धा अंग्रेजों के विरूद्ध लोहा लेने वाला
चुआड विद्रोह, भूमिज विद्रोह के महानायक वीर गंगा नारायण सिंह अपना अमिट छाप छोडकर अमर हो गए।

इसे भी पढ़े – श्री भट्ट की जीवनी – Shri Bhatt Biography Hindi

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close