गंगूबाई हंगल (English -Gangubai Hangal) भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका थी।
उन्होने ख्याल गायिकी को स्वतंत्र भारत में पहचान दिलाई। वे किराना घराने के उस्ताद सवाई गंधर्व से शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए 30 किमी तक ट्रेन से जाती थी।
गंगूबाई की आत्मकथा ‘ नन्ना बदूकिना हादु (मेरे जीवन का संगीत)’ शीर्षक से प्रकाशित हुई।
उन्हे 1971 में उन्हे पद्म भूषण, 1973 में साहित्य नाटक अकादमी पुरस्कार और 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
गंगूबाई हंगल की जीवनी –

संक्षिप्त विवरण
नाम | गंगूबाई |
पूरा नाम | गंगूबाई हंगल |
जन्म | 5 मार्च 1913 |
जन्म स्थान | शुक्रवरपीट, धारवाड़ शहर, कर्नाटक |
पिता का नाम | चिक्कुराव नादिगरथा |
माता का नाम | अम्बाबाई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाति | – |
जन्म
Gangubai Hangal का जन्म 5 मार्च 1913 को कर्नाटक के धारवाड़ शहर के शुक्रवरपीट नामक जगह पर हुआ था।
उनके पिता का नाम चिक्कुराव नादिगरथा जोकि एक कृषक थे तथा उनकी माता का नाम अम्बाबाई था और वे कर्नाटक शैली की शास्त्रीय गायिका थीं।
गंगूबाई 1929 में 16 वर्ष की आयु में देवदासी परम्परा के अंतर्गत अपने यजमान गुरुराव कौलगी के साथ बंधन में बंध गईं।
लेकिन गुरुराव का साथ उनके भाग्य में अधिक समय के लिए न रहा। 4 साल बाद ही गुरुराव की मृत्यु हो गई तथा वे अपने पीछे गंगुबाई के साथ 2 बेटे बाबूराव व नारायण और 1 बेटी कृष्णा छोड़ गए।
उन्हें कभी अपने गहने तो कभी घर के बर्तन तक बेच कर अपने बच्चों का लालन-पालन करना पड़ा।
2004 में उनकी बेटी कृष्ण को कैंसर के शिकार होने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
गंगूबाई हंगल खुद अस्थि मज्जा कैंसर का एक रोग था, जिसके लिए वह इलाज कर चुकी थी और वर्ष 2003 में सफलतापूर्वक इस बीमारी से उबर चुकी थी।
शिक्षा
Gangubai Hangal की शिक्षा 1928 में प्राथमिक स्कूली शिक्षा समाप्त होने पर उनका परिवार हुबली शहर में रहने लगे जहाँ के ‘कृष्णाचार्य संगीत अकादमी’ में उनकी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की।
संगीत शिक्षा
संगीत क्षेत्र के एच कृष्णाचार्य जैसे दिग्गज और किराना उस्ताद सवाई गंधर्व से सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखे।
Gangubai Hangal ने अपने गुरु सवाई गंधर्व की शिक्षाओं के बारे में एक बार कहा था कि मेरे गुरूजी ने यह सिखाया कि जिस तरह से एक कंजूस अपने पैसों के साथ व्यवहार करता है, उसी तरह सुर का इस्तेमाल करो, ताकि श्रोता राग की हर बारीकियों के महत्व को संजीदगी से समझ सके।
गंगूबाई की मां अंबाबाई कर्नाटक संगीत की ख्यातिलब्ध गायिका थीं।
उन्होंने प्रारंभ में देसाई कृष्णाचार्य और दत्तोपंत से शास्त्रीय संगीत सीखा, जिसके बाद इन्होंने सवाई गंधर्व से शिक्षा ली।
संगीत के प्रति गंगूबाई का इतना लगाव था कि कंदगोल स्थित अपने गुरु के घर तक पहुंचने के लिए वह 30 किलोमीटर की यात्रा ट्रेन से पूरी करती थी और इसके आगे पैदल ही जाती थी।
यहां उन्होंने भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी के साथ संगीत की शिक्षा ली।
किराना घराने की परंपरा को बरकार रखने वाली गंगूबाई इस घराने और इससे जुड़ी शैली की शुद्धता के साथ किसी तरह का समझौता किए जाने के पक्ष में नहीं थी।
गंगूबाई को भैरव, असावरी, तोड़ी, भीमपलासी, पुरिया, धनश्री, मारवा, केदार और चंद्रकौंस रागों की गायकी के लिए सबसे अधिक वाहवाही मिली।
गंगूबाई की आत्मकथा ‘नन्ना बदूकिना हादु (मेरे जीवन का संगीत)’ शीर्षक से प्रकाशित हुई।
पुरस्कार और सम्मान
- गंगूबाई हंगल वर्ष 1962 में कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
- 1971 में उन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
- उन्हे 1973 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
- 1996 में संगीत नाटक अकादमी की सदस्यता, 1997 में दीनानाथ प्रतिष्ठान, 1998 में मणिक रत्न पुरस्कार तथा
- 2002 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मनित किया गया।
- वे कई वर्षों तक कर्नाटक विश्वविद्यालय में संगीत की प्राचार्या रहीं।
मृत्यु
Gangubai Hangal की मृत्यु 96 वर्ष की आयु में 21 जुलाई 2009 को दिल का दौरा पड़ने के कारण हुई थी।