आज इस आर्टिकल में हम आपको गोकुल सिंह की जीवनी – Gokul Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।
गोकुल सिंह की जीवनी – Gokul Singh Biography Hindi
Gokul Singh 1660-70 के दशक में वे तिलपत नामक इलाके का सबसे शक्तिशाली ज़मींदार था।
तिलपत के ज़मींदार ने मुग़ल सत्ता को उस समय चुनौती दी।
गोकुल सिंह में संगठन की बहुत क्षमता थी और वह बहुत साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ था।
गोकुल सिंह को ‘गोकुलराम’ और ‘गोकुला जाट’ के नाम से भी जाना जाता है, ,भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक है।
जन्म – गोकुल सिंह की जीवनी
उनका जन्म सिनसिनी में हुआ था और वे सूरजमल के पूर्वज थे।
उनके चाचा का नाम उदयसिंह था।
जाटों एवं मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की सेना के बीच तिलपत की लड़ाई
- गोकुल सिंह के जीवन के बारे में बस यही ज्ञात होता है कि 1660-70 के दशक में वह तिलपत नामक इलाके के सबसे शक्तिशाली ज़मींदार थे। तिलपत के ज़मींदारों ने मुग़ल सत्ता को उस समय चुनौती दी। गोकुल सिंह में संगठन की बहुत क्षमता थी और वह बहुत साहसी और दृढ़प्रतिज्ञ था।
- उपेन्द्रनाथ शर्मा का कथन है कि- “उनका जन्म सिनसिनी में हुआ था और वे सूरजमल के पूर्वज थे।वे जाट, गूजर तथा अहीर किसानों का नेता बनाए गए और उन्होने कहा कि वे मुग़लों को मालगुज़ारी देना बन्द कर दें। शाही परगने में एक ना मालूम-से ज़मींदार के विद्रोह को सहन नहीं किया जा सकता था। औरंगज़ेब ने एक शक्तिशाली सेना भेजी। पहली तो रदंदाज़ ख़ाँ के विरुद्ध और दूसरी हसनअली ख़ाँ के विरुद्ध। वे एक-दूसरे के बाद मथुरा के फ़ौजदार नियुक्त किए गए। गोकुल सिंह से समझौते की बातचीत चलाई गई। कि यदि वह उस लूट को लौटा दे जो उसने जमा कर ली है, तो उसे माफ कर दिया जाएगा। भविष्य में सदाचरण का आश्वासन भी माँगा गया। लेकिन गोकुला जाट राज़ी नही हुआ और जिसके कारण स्थिति बिगड़ती गई। सम्राट औरंगज़ेब ने स्वयं 28 नवंबर, 1669 ई. को दिल्ली से उपद्रवग्रस्त क्षेत्र के लिए प्रस्थान किया। वह मक्खी को मारने के लिए भारी घन का प्रयोग करने की तरह था। 4 दिसम्बर को हसनअली ख़ाँ ने ब्रह्मदेव सिसौदिया की सहायता से गोकुला और उसके समर्थकों के गाँवों पर आक्रमण किया, जो अद्भुत साहस और उत्साह के साथ लड़े। आखिर में वे हार गए। इस लड़ाई में उनके 300 साथी मारे गए।
मुग़ल सेना का मुक़ाबला
- गोकुल सिंह और उसके साथियों को दबाने के लिए मुग़ल सेना में बढ़ोतरी की गई। गोकुला ने जाट, अहीर और गूजर किसानों की 20,000 की सेना से हसन अली ख़ाँ और रज़ीउद्दीन भागलपुरी के नेतृत्व में आई मुग़ल सेना का मुक़ाबला किया। गोकुला और उसके चाचा उदयसिंह वीरता के साथ लड़े, लेकिन मुग़ल तोपख़ाने कावे मुक़ाबला नहीं कर सके। तीन दिन के घमासान युद्ध के बाद गोकुला की हार हुई। उस युद्ध में 4,000 मुग़ल सैनिक और 5,000 जाट मारे गए। गोकुला और उसके परिवार के सदस्यों को बन्दी बना लिया गया।
- सर जदुनाथ और उपेन्द्रनाथ शर्मा का कहना है कि- “गोकुला और उदयसिंह को आगरा लाया गया, जब उन्होंने मुसलमान बनने से इंकार कर दिया, तो आगरा की कोतवाली के सामने उसके टुकड़े-टुकड़े काटकर फेंक दिये गए । गोकुला के पुत्र और पुत्री को मुसलमान बना दिया गया।”
- क़ानूनगो का विचार है- “किसान लम्बे अरसे तक धीरतापूर्वक, बिना घबराए डटकर शौर्य प्रदर्शित करते हुए, जो सदा से उनकी चारित्रिक विशेषता रही है, लड़ते रहे। जब वे प्रतिरोध के लायक़ नहीं रहे, तब उनमें से बहुतों ने अपनी स्त्रियों को मार डाला और अपने प्राणों का ख़ूब महँगा सौदा करने के लिए वे मुग़लों पर टूट पड़े। गोकुला का रक्त व्यर्थ नहीं बहा; उसने जाटों के हृदय में स्वतन्त्रता के नए अंकुर में पानी दिया।”
मृत्यु – गोकुल सिंह की जीवनी
गोकुल सिंह सिनसिनी गाँव का सरदार था।
10 मई, 1666 ई. को जाटों एवं मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की सेना के बीच तिलपत में लड़ाई हुई।
लड़ाई में जाटों की विजय हुई।
पराजय के बाद मुग़ल शासक ने इस्लाम धर्म को बढ़ावा दिया और किसानों पर कर बढ़ा दिया।
जाट गोकुल सिंह ने किसानों को इकठ्ठा किया और कर जमा करने से इंकार कर दिया।
इस बार औरंगज़ेब ने पहले से अधिक शक्तिशाली सेना भेजी और गोकुल सिंह को बंदी बना लिया गया।
1 जनवरी, 1670 ई. को आगरा के क़िले पर गोकुल सिंह को मौत के घाट उतार दिया गया।
गोकुल सिंह के बलिदान ने मुग़ल साम्राज्य के खात्मे शुरुआत कर दी।
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