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गोविंद बल्लभ पंत की जीवनी – govind Ballabh Pant Biography Hindi

 आज इस आर्टिकल में हम आपको गोविंद बल्लभ पंत के जीवनी – govind Ballabh Pant Biography Hindi के बारे में बताएगे।

गोविंद बल्लभ पंत की जीवनी – govind Ballabh Pant Biography Hindi

गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे।

उनका कार्यकाल 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1954 तक रहा।

इसके बाद में वे भारत के गृहमंत्री भी बने।

भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमन्त्रित्व काल में शुरू किया गया था। इसके बाद में यही सम्मान उन्हें 1947 में उनके स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान देने, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के गृहमंत्री के रूप में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रदान किया गया था।

जन्म

गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर, 1887  उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के खूंट (धामस) नामक गाँव में हुआ था।

उनके के पिता का नाम श्री ‘मनोरथ पन्त’ था।

मनोरथ पंत गोविन्द के जन्म से तीन साल के भीतर अपनी पत्नी के साथ पौड़ी गढ़वाल चले गये थे।

बालक गोविन्द एक-दो बार पौड़ी गया लेकिन स्थायी रूप से वे अल्मोड़ा में रहे।

उनका लालन-पोषण उसकी मौसी ‘धनीदेवी’ ने किया था। उनका ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इस परिवार का सम्बन्ध कुमाऊँ की एक बहुत प्राचीन और सम्मानित परम्परा से है।

पन्तों की इस परम्परा का मूल स्थान महाराष्ट्र का कोंकण प्रदेश को माना जाता है और इसके आदि पुरुष माने जाते हैं जयदेव पंत। ऐसी मान्यता है कि 11वीं सदी के शुरुआत में जयदेव पंत तथा उनका परिवार कुमाऊं में आकर बस गया था। 1899 में 12 साल की आयु में उनका विवाह ‘पं. बालादत्त जोशी’ की कन्या ‘गंगा देवी’ से हो गया था ,अपनी तीसरी पत्नी कलादेवी से 10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।

शिक्षा

गोविन्द ने 10 वर्ष की आयु तक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की।

1897 में गोविन्द को स्थानीय ‘रामजे कॉलेज’ में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया।

1899 में 12 साल की आयु में उनका विवाह ‘पं. बालादत्त जोशी’ की कन्या ‘गंगा देवी’ से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे। गोविन्द ने लोअर मिडिल की परीक्षा संस्कृत, गणित, अंग्रेज़ी विषयों में विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में पास की। गोविन्द इण्टर की परीक्षा पास करने तक यहीं पर रहे। इसके बाद में उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और बी.ए. में  उन्होने गणित, राजनीति और अंग्रेज़ी साहित्य विषयों को चुना। इलाहाबाद उस समय भारत की विभूतियां पं० जवाहरलाल नेहरु, पं० मोतीलाल नेहरु, सर तेजबहादुर सप्रु, श्री सतीशचन्द्र बैनर्जी व श्री सुन्दरलाल सरीखों का संगम था तो वहीं विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान् प्राध्यापक जैनिग्स, कॉक्स, रेन्डेल, ए.पी. मुकर्जी सरीखे विद्वान् थे। इलाहाबाद में  गोविन्द जी इन महापुरुषों का सान्निध्य सम्पर्क मिला और साथ ही जागरुक, व्यापक और राजनीतिक चेतना से भरपूर वातावरण भी मिला।

करियर – गोविंद बल्लभ पंत की जीवनी

1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सबसे पहले स्थान पर आने पर ‘लम्सडैन’ स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत शुरू की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने रानीखेत में वकालत की और इसके बाद फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुक़दमें एस.डी.एम. की कोर्ट में पेश हुआ करते थे।

यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी।

इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा गया ।

1912 से 1913 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी ‘रेवेन्यू कलक्टर’ थे।

श्री ‘कुंजबिहारी लाल’ जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, उनका मुक़दमा पंत’ जी द्वारा लिये गये सबसे ‘पहले मुक़दमों’ में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी।1909 में पंतजी के पहले बेटे की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 साल की थी। वे अपनी पत्नी गंगादेवी की मृत्यु  के बाद शांत और उदास रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे।

परिवार के दबाव देने पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ।

उसके बाद पंतजी काशीपुर आये।

पंत जी काशीपुर में सबसे पहले ‘नजकरी’ में नमक वालों की कोठी में एक वर्ष तक रहे।

1913 में पंतजी काशीपुर के मौहल्ला खालसा में 3-4 वर्ष तक रहे।

अभी नये मकान में आये एक साल भी नहीं हुआ था कि उनके पिता मनोरथ पंत का देहान्त हो गया।

इसी समय के दौरान उन्हे एक पुत्र की प्राप्ति हुई पर उसकी भी कुछ महीनों बाद मृत्यु हो गयी।

बच्चे के बाद पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गई।

वकालत का अंदाज़ – गोविंद बल्लभ पंत की जीवनी

गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा ही नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां पर अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने उनके उस पहनावे पर आपत्ति की। पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमाऊँ के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था।

अंग्रेज़ शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया।

पंतजी के नेतृत्व के कारण अंग्रेज़ काशीपुर को ”गोविन्दगढ़“ कहती थी।

योगदान

1914 से 1934 तक
1934 से 1954 तक

मृत्यु – गोविंद बल्लभ पंत की जीवनी

गोविन्द बल्लभ पंत जी की हार्ट अटैक के कारण 7 मार्च, 1961 को मृत्यु हो गई ।

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