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गुरुबचन सिंह सलारिया की जीवनी – Gurbachan Singh Salaria Biography

आज इस आर्टिकल में हम आपको गुरुबचन सिंह सलारिया की जीवनी – Gurbachan Singh Salaria Biography Hindi के बारे में बताएगे।

गुरुबचन सिंह सलारिया की जीवनी – Gurbachan Singh Salaria Biography Hindi

गुरुबचन सिंह सलारिया भारतीय थल सेना के सैनिक थे।

उन्होने 1953 में नेशनल डिफेंस अकेडमी में प्रवेश लिया और पास होकर सेना में अधिकारी बने।

संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के सदस्य रहे। 1961 में उन्हे कांगो में विद्रोह को शांत करने के लिए भेजा गया था।

5 दिसंबर 1961 को उन्होने 40 विद्रोहियों को मार गिराया और खुद भी शहीद हो गए।

उनके मरणोपरांत उन्हे परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

जन्म

गुरुबचन सिंह सलारिया का जन्म 29 नवंबर 1935 को शकरगढ़ के जनवल गाँव में हुआ था।

उनके पिता का नाम मुंशी राम और उनकी माता का नाम धन देवी था।

गुरुबचन के पिता को ब्रिटिश भारतीय सेना में हॉसंस हॉर्स के डोगरा स्क्वाड्रन में शामिल किया गया था।

शिक्षा – गुरुबचन सिंह सलारिया की जीवनी

गुरुबचन सिंह सलारिया ने अपनी प्राथमिक शिक्षा स्थानीय गांव के स्कूल से प्राप्त की।

इसके बाद में 1946 में उन्हें बैंगलोर में किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज (केजीआरएमसी) में भर्ती कराया गया।

अगस्त 1947 में उन्हें जालंधर में केजीआरएमसी में स्थानांतरित कर दिया गया।

केजीआरएमसी से बाहर जाने के बाद वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के संयुक्त सेवा विंग में शामिल हुए।

1956 में एनडीए से स्नातक होने पर उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी से 9 जून 1957 को अपना अध्ययन पूरा किया।

करियर

सालिया को शुरू में 3 गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में मार्च 1995 में 1 गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होने 1953 में नेशनल डिफेंस अकेडमी में प्रवेश लिया और पास होकर सेना में अधिकारी बने। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के सदस्य रहे। 1961 में उन्हे कांगो में विद्रोह को शांत करने के लिए भेजा गया था।

संयुक्त राष्ट्र की सेना कांगो के पक्ष में हस्तक्षेप करे और आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग करके भी विदेशी व्यवसायियों पर अंकुश लगाए। संयुक्त राष्ट्र के इस निर्णय से शोम्बे के व्यापारी आदि भड़क उठे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं के मार्ग में बाधा डालने का उपक्रम शुरु कर दिया। संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ अधिकारी उनके केंद्र में आ गये।

उन्हें पीटा गया। 3 गोरखा राइफल्स के मेजर अजीत सिंह को भी उन्होंने पकड़ लिया था और उनके ड्राइवर की हत्या कर दी थी। इन विदेशी व्यापारियों का मंसूबा यह था कि वह एलिजाबेथ विला के मोड़ से आगे का सारा संवाद तंत्र तथा रास्ता काट देंगे और फिर संयुक्त राष्ट्र की सैन्य टुकड़ियों से निपटेंगे। 5 दिसम्बर 1961 को एलिजाबेथ विला के रास्ते इस तरह बाधित कर दिये गए थे कि संयुक्त राष्ट्र के सैन्य दलों का आगे जाना एकदम असम्भव हो गया था।

क़रीब 9 बजे 3 गोरखा राइफल्स को यह आदेश दिये गए कि वह एयरपोर्ट के पास के एलिजाबेथ विला के गोल चक्कर का रास्ता साफ करे। इस रास्ते पर विरोधियों के क़रीब डेढ़ सौ सशस्त्र पुलिस वाले रास्ते को रोकते हुए तैनात थे। योजना यह बनी कि 3 गोरखा राइफल्स की चार्ली कम्पनी आयरिश टैंक के दस्ते के साथ अवरोधकों पर हमला करेगी। इस कम्पनी की अगुवाई मेजर गोविन्द शर्मा कर रहे थे।

मृत्यु – गुरुबचन सिंह सलारिया की जीवनी

5 दिसंबर 1961 को उन्होने 40 विद्रोहियों को मार गिराया और खुद भी शहीद हो गए

पुरस्कार

5 दिसम्बर 1961 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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