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हंसा मेहता की जीवनी – Hansa Mehta Biography Hindi

हंसा मेहता (English – Hansa Mehta) भारत की प्रसिद्ध समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद थी।

उन्होने महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील जेनेवा के ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

हंसा मेहता की जीवनी – Hansa Mehta Biography Hindi

Hansa Mehta Biography Hindi
Hansa Mehta Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण

नामहंसा मेहता
पूरा नामहंसा मेहता
जन्म3 जुलाई, 1897
जन्म स्थानसूरत, गुजरात
पिता का नाममनुभाई मेहता
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू

जन्म

Hansa Mehta का जन्म 3 जुलाई 1897 को हुआ था।

उनके पिता का नाम मनुभाई मेहता था जोकि बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे।

शिक्षा

उन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बड़ौदा से प्राप्त की।

इसके बाद वे 1919 में पत्रकारिता और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गईं। वहाँ उनका परिचय सरोजनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुआ।

इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।

योगदान

अध्ययन पूरा करके हंसा मेहता 1923 में भारत वापस आ गईं और मुम्बई के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. जीवराज मेहता से उनका विवाह हो गया।

हंसा ने साइमन कमीशन के बहिष्कार में आगे बढ़कर भाग लिया और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने में महिलाओं का नेतृत्व किया।

महिलाओं को संगठित करके उनके माध्यम से समाज में जागृति उत्पन्न करने के काम में भी वे अग्रणी थीं। इन्हीं सब कारणों से विदेशी सरकार ने 1930 और 1932 ई. में उन्हें जेल में बन्द कर दिया था।

प्रतिनिधित्व

महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

1931 में वे ‘मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल’ की सदस्य चुनी गईं।

वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। उन्होने 1941 से 1958 तक ‘बड़ौदा विश्वविद्यालय’ की वाइस चांसलर के रूप में  शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी।

साहित्य करियर

उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं, जिनमें अरुणू अदभुत स्वप्न (1934), बबलाना पराक्रमो (1929), बलवर्तावली भाग 1-2 (1926, 1929) शामिल हैं।

वह कुछ किताबें अनुवाद वाल्मीकि रामायण: अरण्यकाण्ड, बालकाण्डऔर सुन्दरकाण्ड।

उन्होंने कई अंग्रेजी कहानियों का अनुवाद भी किया, जिसमें गुलिवर्स ट्रेवल्स भी शामिल है। उन्होंने शेक्सपियर के कुछ नाटकों को भी रूपांतरित किया था।

उनके निबंध एकत्र किए गए और केतलाक लेखो (1978) के रूप में प्रकाशित हुए।

पुरस्कार

उन्हे 1959 में पद्म भूषण  पुरस्कार से नवाजा गया

मृत्यु

Hansa Mehta की मृत्यु 4 अप्रैल 1995 को हुआ था।

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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