Biography Hindi

हरविलास शारदा की जीवनी – Harbilas Sharda Biography Hindi

हरविलास शारदा (English Harbilas Sharda) भारत के प्रसिद्ध शिक्षाविद, राजनेता, समाज सुधारक, न्यायविद और लेखक थे। 1924 में हरविलास शारदा अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें  दोबारा निर्वाचित किया गया।  उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ- ‘हिंदू सुपीरियॉरिटी’ है। इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिंदू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी।

हरविलास शारदा की जीवनी – Harbilas Sharda Biography Hindi

Harbilas Sharda Biography Hindi
Harbilas Sharda Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण

नामहरविलास शारदा
पूरा नाम, वास्तविक नाम
हरविलास शारदा
जन्म3 जून, 1867 ई.
जन्म स्थानअजमेर, राजस्थान
पिता का नाम
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
जाति

जन्म

हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 ई. को अजमेर, राजस्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीयुत हर नारायण शारदा (माहेश्वरी) एक वेदांती थे, जिन्होंने अजमेर के गवर्नमेंट कॉलेज में लाइब्रेरियन के रूप में काम किया। उनकी एक बहन थी, जिसकी मृत्यु सितंबर 1892 में हुई थी।

शिक्षा

Harbilas Sharda ने 1883 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद, उन्होंने आगरा कॉलेज (तब कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध) में अध्ययन किया, और 1888 में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेजी में ऑनर्स के साथ उत्तीर्ण किया, और दर्शन और फारसी भी किया।

उन्होंने 1889 में गवर्नमेंट कॉलेज, अजमेर में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन अपने पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण अपनी योजनाओं को छोड़ दिया। उनके पिता की मृत्यु अप्रैल 1892 में हुई; कुछ महीने बाद, उसकी बहन और माँ की भी मृत्यु हो गई।

शारदा ने ब्रिटिश भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की, उत्तर में शिमला से दक्षिण में रामेश्वरम तक और पश्चिम में बन्नू से पूर्व में कलकत्ता तक। 1888 में, उन्होने इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र का दौरा किया। उन्होंने कांग्रेस की कई और बैठकों में भाग लिया, जिनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कलकत्ता और लाहौर शामिल थे

करियर

अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात् हरविलास शारदा जज की अदालत में अनुवादक रहे। राजस्थान में जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे और 1902 में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में ‘वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट’ भी बने। रजिस्ट्रार, सब जज और अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।

लेखन कार्य

Harbilas Sharda जाने – माने लेखक भी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ- ‘हिंदू सुपीरियॉरिटी’ है। 1906 में प्रकाशित इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिंदू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी। उनके कुछ अन्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

  • ‘महाराजा कुंभा’
  • ‘महाराजा सांगा’
  • ‘शंकराचार्य और दयानन्द’
  • ‘लाइफ़ ऑफ़ स्वामी दयानन्द सरस्वती’

समाज सेवक

समाज सेवा के क्षेत्र में हरविलास शारदा आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित ‘परोपकारिणी सभा’ के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया और लाहौर में हुए ‘इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन’ की अध्यक्षता की। 1924 में बरेली के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी वही थे।

शारदा बिल

हरविलास शारदा 1924 में अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें दोबारा निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया। भारत में लड़कियों के बाल विवाह की बड़ी चिंताजनक प्रथा थी। इन्होंने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में एक बिल पेश किया। ‘शारदा बिल’ के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितंबर, 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल, 1930 से पूरे देश में लागू किया गया।

पुरस्कार और सम्मान

समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें ‘राय बहादुर’ और ‘दीवान बहादुर’ की पदवियों से अलंकृत किया।

मृत्यु

हरविलास शारदा की मृत्यु 20 जनवरी, 1952 को हुई।

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button
Close