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हर्षवर्धन की जीवनी

हर्षवर्धन एक भारतीय सम्राट थे जो पुष्यभूति परिवार से संबंधित थे। उनको वर्धन वंश के संस्थापक प्रभाकर वर्धन का पुत्र माना जाता है। अपनी प्रतिष्ठा से हर्षवर्धन ने राज्य को पंजाब, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और नर्मदा नदी के उत्तर में पूरे भारत-गंगा के मैदान को विस्तारित किया। गौड़ के राजा शशांक द्वारा अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद हर्षवर्धन ने गद्दी संभाली। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 16 वर्ष की थी। राजगद्दी पर बैठने के बाद हर्षवर्धन ने थानेसर और कन्नौज के दो राज्यों का विलय कर दिया और अपनी राजधानी को कन्नौज में स्थानांतरित कर दिया। तो आइए  आज इस आर्टिकल में हम आपको हर्षवर्धन की जीवनी के बारे में बताएगे।

हर्षवर्धन की जीवनी

हर्षवर्धन की जीवनी
हर्षवर्धन की जीवनी

जन्म

हर्षवर्धन का जन्म 590 ईसवी में हुआ था । उनके पिता का नाम प्रभाकर वर्धन था। उनके भाई राज्यवर्धन हरियाणा के थानेसर के राजा थे। उनकी बहन का नाम राज्यश्री था जिसका विवाह मौखरी के राजा ग्रहवर्मन से हुआ था। उनकी पत्नी का नाम दुर्गावती था। राजा हर्षवर्धन के दो बेटे थे -भाग्यबर्धन, कल्याणबर्धन जिनकी हर्षबर्धन के दरबार के ही एक मंत्री अरुणाश्वा ने हत्या कर दी थी

हर्षवर्धन एक भारतीय सम्राट थे जो पुष्यभूति परिवार से संबंधित थे। हर्षवर्धन का जन्म 580 ईसवी के आसपास हुआ था और इनको वर्धन वंश के संस्थापक प्रभाकर वर्धन का पुत्र माना जाता है। अपने प्रभाव से हर्षवर्धन ने राज्य को पंजाब, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और नर्मदा नदी के उत्तर में पूरे भारत-गंगा के मैदान को विस्तारित किया। गौड़ के राजा शशांक द्वारा उनके बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद हर्षवर्धन ने गद्दी संभाली। उस समय उनकी उम्रमात्र 16 वर्ष की थी। राजगद्दी पर बैठने के बाद हर्षवर्धन ने थानेसर और कन्नौज के दो राज्यों का समाप्त कर दिया और अपनी राजधानी को कन्नौज में स्थानांतरित कर दिया।

हर्ष एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे और सभी धर्मों और धार्मिक निष्ठाओं का सम्मान करते थे। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में वे सूर्य के उपासक थे लेकिन बाद में वे शैववाद और बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग के अनुसार, जिन्होंने 636 ईसवी में हर्षवर्धन के राज्य का दौरा किया था, हर्ष ने कई बौद्ध स्तूपों के निर्माण करवाए। हर्षवर्धन नालंदा विश्वविद्यालय का एक महान संरक्षक भी था। हर्षवर्धन चीन-भारतीय राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति थे।

सामन्तवाद में वृद्धि

हर्षवर्धन के समय में अधिकारियों को वेतन, नकद तथा जागीर के रूप में दिया जाता था, लेकिन ह्वेनसांग का मानना है कि, मंत्रियों तथा अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों और कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामन्तवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन गुप्त प्रशासन की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक तथा विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।

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राष्ट्रीय आय एवं कर

हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन तथा उपहार के रूप में, एक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च के लिए, एक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए और एक चौथाई भाग राजा खुद अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता है- भाग, हिरण्य और बलि। ‘भाग’ या भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। ‘हिरण्य’ नगद रूप में लिया जाने वाला कर था। उस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।

सैन्य रचना

ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में क़रीब 5,000 हाथी, 2,000 घुड़सवार तथा 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 और घुड़सवारों की संख्या एक लाख तक पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को चाट एवं भाट, अश्वसेना के अधिकारियों को हदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था।

रचनाएँ

हर्षवर्धन जी एक अच्छे विद्वान और एक प्रसिद्ध लेखक भी थे। हर्षवर्धन जी ने संस्कृत में तीन नाटक रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानंद लिखे थे । हम आज भी उनके दरबारी कवि बाणभट्ट के द्वारा लिखी गई पुस्तक में उनके शासनकाल के बारे में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। बाणभट्ट ने संस्कृत भाषा में अपना पहला ऐतिहासिक काव्य ‘हर्षचरित’ लिखा था। चीनी यात्री, ह्वेनसांग का कार्य हर्षवर्धन के शासन के दौरान जीवन में गहरी अंतर्दृष्टि भी प्रदान करता है।

मृत्यु

हर्षवर्धन ने लगभग चालीस वर्षों तक भारत पर शासन किया और 647 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई, उनकी मृत्यु के बाद उनकी गद्दी संभालने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं था। हर्षकी मृत्यु के बाद उनका साम्राज्य भी पूरी तरह से समाप्त हो गया था। उनका साम्राज्य भी धीरे-धीरे बिखरता चला गया और फिर समाप्त हो गया। उनके बाद जिस राजा ने कन्नौज की बागडोर संभाली थी, वह बंगाल के राजा के विरुद्ध जंग में हार गया। वारिस न होने की वजह से, सम्राट हर्षवर्धन का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

शासन प्रबंध

हर्षवर्धन स्वयं प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेते थे। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् का गठन किया गया। बाणभट्ट के अनुसार अवन्ति युद्ध और शान्ति का सर्वोच्च मंत्री था। सिंहनाद हर्षवर्धन का महासेनापति था। बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है-

  • अवन्ति – युद्ध और शान्ति का मंत्री।
  • सिंहनाद – हर्ष की सेना का महासेनापति।
  • कुन्तल – अश्वसेना का मुख्य अधिकारी।
  • स्कन्दगुप्त – हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी।

राज्य के कई अन्य प्रमुख अधिकारी भी थे- जैसे महासामन्त, महाराज, दौस्साधनिक, प्रभातार, राजस्थानीय, कुमारामात्य, उपरिक, विषयपति आदि।

  • कुमारामात्य- उच्च प्रशासनिक सेवा में नियुक्त।
  • दीर्घध्वज – राजकीय संदेशवाहक होते थे।
  • सर्वगत – गुप्तचर विभाग का सदस्य।

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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