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हसन खान मेवाती की जीवनी – Hasan Khan Mewati Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको हसन खान मेवाती की जीवनी – Hasan Khan Mewati Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

हसन खान मेवाती की जीवनी – Hasan Khan Mewati Biography Hindi

हसन खान मेवाती की जीवनी
हसन खान मेवाती की जीवनी

Hasan Khan Mewati पूर्व शासक खानजादा अलावल खान का बेटे और मेवात राज्य का एक महत्वाकांक्षी मुस्लिम राजपूत शासक था।

उनके वंश ने लगभग 150 वर्षों तक मेवात राज्य पर शासन किया था।

वह राजा नाहर खान मेवाती के वंशज थे, जो 14 वीं शताब्दी में मेवात के वली थे।

उन्होंने 1492 में अलवर किले का निर्माण किया।

वह खानवा के युद्ध में मारे गए थे।

जन्म – हसन खान मेवाती की जीवनी

हसन खान मेवाती का जन्म मेवात में हुआ था।

उनके पिता का नाम अलावल खान था।

उनके पुत्र का नाम ताहिर खां था।

मुगलबादशाह बाबर से युद्ध

हसन खां 1505 ई० में मेवात के राजा बनें। 1526 ईसवीं में जब मुगलबादशाह बाबर ने हिंदुस्तान पर हमला किया तो इंब्राहीम लोदी, हसन खां मेवाती तथा दिगर राजाओं ने मिलकर पानीपत के मुकाम पर बाबर मुकाबला किया इसमें में राजा हसन खां के पिता अलावल खां शहीद हो गए।

पानीपत की विजय के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर तो अपना अधिकार जमा लिया लेकिन भारत सम्राट बनने के लिये उसे महाराणा संग्राम सिंह (मेवाड) और हसन खां (मेवात) बाबर के लिये कडी चुनौती के रूप में सामना करना पड़ा ।

बाबर ने हसन खां मेवाती को अपने साथ मिलाने के लिये उन्हें इस्लाम का वास्ता दियाऔर एक लडाई में बंधक बनाये गये राजा हसन खा के पुत्र को बिना शर्त छोड दिया, लेकिन राजा हसन खां की देश भक्ति के सामने धर्म का वास्ता काम नहीं आया।

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15 मार्च 1527 को राजा हसन खां ने राणां सांगा के साथ मिलकर ‘खानवा’ के मैदान में बाबर की सैना दोनो जमकर लडे अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ लगा और वे हाथी के ओहदे से नीचे गिर पडे जिसके बाद सैना के पैर उखडने लगे तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सैना को ललकारते हुऐ उन पर जोरदार हमला बोल दिया।

राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सैना पर टूट पडे उसी समय के दौरान एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और इसके बाद आखरी मेवाती राजा का हमेशा के लिये 15 मार्च 1527 को अंत हो गया।

मृत्यु – हसन खान मेवाती की जीवनी

15 मार्च 1527 को ‘खानवा’ के मैदान में बाबर  के साथ हुए युद्ध में वे शहीद हो गए।

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