आज इस आर्टिकल में हम आपको होमी जहाँगीर भाभा की जीवनी – Homi Jehangir Bhabha Biography Hindi के बारे में बताएगे।
होमी जहाँगीर भाभा की जीवनी – Homi Jehangir Bhabha Biography Hindi
होमी जहाँगीर भाभा भारत के जाने – माने वैज्ञानिक थे।
आज अगर हम आधी दुनिया को अपने परमाणु हथियारों की जद मेन कर चुके हैं तो इसके पीछे डॉ भाभा की कड़ी मेहनत रही है।
वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और एटोमिक एनर्जी एस्टाब्लिशमेंट, ट्रांबे (अब भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर ) के संस्थापाक निदेशक रहे।
भारत के परमाणु कार्यक्रमों में इन दोनों का रिसर्च अहम योगदान है।
1942 में कैब्रिज विश्वविद्यालय ने एडम प्राइज़ से नवाजा 1954 में उन्हे पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
जन्म
होमी जहाँगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई, भारत में हुआ।
उनके पिता का नाम जे. एच. भाभा था जोकि बंबई के एक प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे।
शिक्षा
होमी जहाँगीर भाभा ने मुम्बई के एक हाईस्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा पास की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए ‘कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय’ गए।उन्होने कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय में 1930 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और इसके बाद उन्होने वही रहकर 1934 में डाक्टरेट की डिग्री भी ली।
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करियर – होमी जहाँगीर भाभा की जीवनी
1941 से 1948 तक
दुसरे विश्व युद्ध के समय डॉ. जहांगीर भाभा भारत वापस चले आये। इतने समय बाहर रहकर जहांगीर भाभा जी ने काफी ज्ञान अर्जित कर लिया था। वहां से आने के बाद ये बैंगलूर के इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस से जुड़ गए और कुछ समय बाद इनको वहाँ के रीडर पद पद पर नियुक्त कर दिया गया। यहीं से इनका नया सफ़र शुरू हुआ और इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस स्कूल में ही कोस्मिक किरणों के लिए एक अलग विभाग का निर्माण किया।
कुछ के पश्चात सन 1941 में मात्र 31 वर्ष में ही इनको रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया। जहांगीर भाभा जी इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस के पूर्व अध्यक्ष सी. वी. रमन जी से बहुत प्रभावित थे क्योकि उनको नोबेल प्राइज भी मिल चुका था और उनके काम करने के तरीके से ही वो काफी प्रभावित रहते थे।
वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और एटोमिक एनर्जी एस्टाब्लिशमेंट, ट्रांबे (अब भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर ) के संस्थापाक निदेशक रहे। भारत के परमाणु कार्यक्रमों में इन दोनों का रिसर्च अहम योगदान है। वर्ष 1948 में डॉ. जहांगीर भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की शुरुआत की, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ साथ कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी भाग लिया।
1948 से 1955 तक
1955 में जेनेवा में संयुक्त राज्य संघ द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण कार्यो के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग के पहले सम्मलेन में डॉ. जहांगीर भाभा को सभापति बनाया गया। वह पर कुछ वैज्ञानिको का मानना था कि विकासशील देश को पहले औधोगिक विकास करना चाहिए फिर परमाणु ऊर्जा के बारे में सोचना चाहिये। जहांगीर भाभा जी इसका बहुत ही अच्छा जवाब दिया उनको समझया कैसे कोई अल्प विकसित देश परमाणु ऊर्जा का उपयोग करके विकसित हो सकता है।
होमी जहांगीर भाभा जी ने अपने ज्ञान और अपनी मेहनत से जिमेदारी के साथ TIFR की स्थाई इमारत का ही निर्माण करवाने में अपनी पूरी भूमिका निभाई। सन 1949 तक केनिलवर्थ का संस्थान छोटा पड़ने लगा। अतः इस संस्थान को प्रसिद्ध “गेट वे ऑफ़ इंडिया” के पास एक इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया, जो उस समय “रायल बाम्बे यॉट क्लब” के अधीन थी। संस्थान का कुछ कार्य तब भी केनिलवर्थ में कई वर्षों तक चलता रहा।
आज ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ का कार्यालय ‘गेट वे ऑफ़ इंडिया’ के पास इसी इमारत “अणुशक्ति भवन”(ATOMIC POWER HOUSE) में कार्यरत है जो “ओल्ड यॉट क्लब” के नाम से जाना जाता है। संस्थान का कार्य इतनी तेजी से आगे बढ़ने लगा था कि “ओल्ड यॉट क्लब” भी जल्दी ही छोटा पड़ने लगा।
डॉ. जहांगीर भाभा पुनः स्थान की तलाश में लग गए।
अब वह ऐसी जगह चाहते थे जहाँ संस्थान की स्थायी इमारत बनायी जा सके।
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पुरस्कार – होमी जहाँगीर भाभा की जीवनी
- 1942 में कैब्रिज विश्वविद्यालय ने एडम प्राइज़ से नवाजा।
- 1954 में उन्हे पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- भाभा जी को पांच बार भौतिकी में नोबेल पुरुस्कार के लिए नामांकित किया गया
मृत्यु
होमी जहाँगीर भाभा की मृत्यु 24 जनवरी, 1966 को मोंट ब्लांक, फ्राँस में हुआ था।
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