यदुनाथ सिंह की जीवनी – Jadunath Singh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको यदुनाथ सिंह की जीवनी – Jadunath Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।

यदुनाथ सिंह की जीवनी – Jadunath Singh Biography Hindi

यदुनाथ सिंह की जीवनी
यदुनाथ सिंह की जीवनी

(English – Jadunath Singh) यदुनाथ सिंह परमवीर चक्र सम्मानित भारतीय सैनिक थे।

उन्होने स्थानीय स्कूल में चौथी तक अध्ययन किया लेकिन आर्थिक स्थितियों के चलते शिक्षा को आगे नहीं बढ़ा सके।

वे 1941 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल किया गया था।

1947 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध में अद्वितीय योगदान दिया।

वह युद्ध के दौरान कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में तैनात थे और पोस्ट पर दुश्मनों ने हमला कर दिया था।

उन्होने पहलवानी के डीएम पर दुश्मनों को पटक पटक कर मार दिया था और वीरगति को प्राप्त हो गए।

संक्षिप्त विवरण – यदुनाथ सिंह की जीवनी

 

नाम यदुनाथ सिंह
पूरा नाम नायक यदुनाथ सिंह
जन्म 21 नवंबर 1916
जन्म स्थान खजूरी, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम बीरबल सिंह
माता का नाम यमुना कंवर
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म
हिन्दू
जाति

जन्म

यदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) के गाँव खजूरी में हुआ था।

उनके पिता का नाम बीरबल सिंह एक किसान थे तथा उनकी माता का नाम यमुना कंवर था।

सेना में भर्ती

21 नवंबर 1941 को Jadunath Singh को मनचाहा काम मिल गया।

उस समय वह मात्र 26 वर्ष के थे और उन्होंने फौज में प्रवेश किया।

उन्हें राजपूत रेजिमेंट में लिया गया।

वहीं उनको जुलाई 1947 में लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली और इस तरह 6 जनवरी 1948 को वह टैनधार में अपनी टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे और इस जोश में थे कि वह नौशेरा तक दुश्मन को नहीं पहुँचने देंगे।

उस दिन नायक यदुनाथ सिंह मोर्चे पर केवल 9 लोगों की टुकड़ी के साथ डटे हुए थे कि दुश्मन ने धावा बोल दिया।

यदुनाथ अपनी टुकड़ी के लीडर थे।

उन्होंने अपनी टुकड़ी की जमावट ऐसी तैयार की, कि हमलावरों को हार कर पीछे हटना पड़ा।

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 – यदुनाथ सिंह की जीवनी

अक्टूबर 1947 में जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा एक आक्रमण के बाद, भारतीय कैबिनेट की रक्षा समिति ने सेना के मुख्यालय को एक सैन्य प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया।सेना ने कई अभियानों में हमलावरों को निर्देशित करने की योजना बनाई। एक ऐसे आपरेशन में 50 वीं पैरा ब्रिगेड, जिस में राजपूत रेजिमेंट जुड़ी हुई थी, को नौशेरा को सुरक्षित रखने हेतु सैन्य कार्यवाही के लिए तैनात किया गया था जिसके लिए झांगर में बेस बनाया गया था।

खराब मौसम ने इस कार्रवाई पर प्रतिकूल असर डाला तथा 24 दिसंबर 1947 को झांगर पर पाकिस्तानियों द्वारा कब्जा कर लिया गया जो रणनीतिक रूप से नौशेरा सेक्टर पर कब्ज़ा करने के लिए लाभप्रद था, जिससे उन्हें मीरपुर और पुंछ के बीच संचार लाइनों पर नियंत्रण मिल गया और एक शुरुआती बिंदु मिल गया जिससे से हमला किया जा सके।

अगले महीने भारतीय सेना ने नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में कई अभियान चलाए, जिससे पाकिस्तानी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। 50वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने अपेक्षित हमले का मुकाबला करने के लिए आवश्यक व्यवस्था की थी।

संभावित दुश्मन दृष्टिकोण पर छोटे समूहों में सैनिकों को तैनात किया गया था।

6 फरवरी 1948 का हमला

नौशेरा के उत्तर में स्थित टेंढर, एक ऐसा स्थान था जिसके लिए श्री सिंह की बटालियन जिम्मेदार थी। 6 फरवरी 1948 की सुबह 6:40 बजे पाकिस्तानी सेना ने टेंढर चौकियों पर हमला कर दिया। दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी होने लगी। धुंध और अंधेरे से हमलावर पाकिस्तानी सैनिकों को मदद मिली। जल्द ही टेंढर पर तैनात भारतीय सैनिकों ने देखा कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक उनकी ओर बढ़ रहे हैं।

श्री सिंह, टेंढर में नौ जवानों की एक टुकड़ी की कमान संभाले थे।

श्री सिंह और उनकी टुकड़ी पाकिस्तानी सेनाओं द्वारा अपनी स्थिति पर कब्जा करने के लिए लगातार तीन प्रयासों को विफल करने में सक्षम रहे थे। तीसरे हमले की समाप्ति तक चौकी पर तैनात 27 लोगों में से 24 लोग मारे गए या गंभीर रूप से घायल हो गए। श्री सिंह ने एक कमांडर होने के नाते “अनुकरणीय” नेतृत्व का प्रदर्शन किया, और जब तक पूरी तरह घायल नहीं हो गए तब तक अपने जवानों को प्रेरित करते रहे। यह नौशेरा की लड़ाई के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण क्षण साबित हुआ। इस बीच, ब्रिगेडियर उस्मान ने टेंढर को मजबूत करने के लिए तीसरी पैरा बटालियन, राजपूत रेजिमेंट की एक कंपनी को भेजा। यदि श्री सिंह द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों को काफी समय तक उलझाये नहीं रखा जाता तो इन स्थानों पर पुनः कब्जा करना असंभव होता।

सम्मान

उन्हें भारत सरकार द्वारा वर्ष 1950 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

वीरगति

यदुनाथ सिंह 31 वर्ष की आयु में 6 फरवरी, 1948 को बदगाम, जम्मू और कश्मीर में वीरगति को प्राप्त हो गए।

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