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जगत सिंह पठानिया की जीवनी – jagat singh pathania Biography in hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको जगत सिंह पठानिया की जीवनी – jagat singh pathania Biography in hindi के बारे में बताएगे।

जगत सिंह पठानिया की जीवनी – jagat singh pathania Biography in hindi

जगत सिंह पठानिया की जीवनी
जगत सिंह पठानिया की जीवनी

jagat singh pathania बंगाल में एक छोटे से मंसब में सर्वप्रथम नियुक्त हुए थे।

राजा जगत सिंह एक महान योद्धा के साथ एक चतुर राजनेता भी थे

बादशाह जहाँगीर ने उन्हे बंगश की थानेदारी और खंगार जाति के विद्रोहियों का दमन करने के लिये नियुक्त किया था।

 

 

जन्म  – जगत सिंह पठानिया की जीवनी

जगत सिंह पठानिया राजा बासू के दूसरे बेटे थे।

सर्वप्रथम वे एक छोटे से मंसब के साथ बंगाल में नियुक्त हुआ।

उनका भाई सूरजमल दक्षिण का शासक नियत था जब उनके भाई सूरजमल ने विद्रोह किया तब बादशाह जहाँगीर ने जगत सिंह को बंगाल से बुलाकर उसका मंसब एकहजारी 500 सवार का करके और अन्य बहुत सी वस्तुएँ देकर उन्हे सूरजमल का दमन करने के लिए नियत राजा विक्रमाजीत सुंदरदास की सहायता के लिये भेज दिया।

जहाँगीर के राज्य के अंत में उनका मंसब तीनहजारी 1000 सवार तक पहुँचा गया था।

शाहजहाँ के शासन में भी वे ही मंसब रहे। बादशाही सेना के कश्मीर से लौटने पर उन्हे बंगश की थानेदारी और खंगार जाति के विद्रोहियों का दमन करने के लिये नियुक्त किया गया।

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योगदान

शाहजहाँ के शासन के 10वें साल उन्हे उस पद से हटा दिया गया और काबुल का सहायक सरदार बनाया  दिया गया।

जलाल तारीकी के बेटे करीमदाद को उन्होने बड़ी चतुराई से गिरफ्तार करवाया था।

बताया जाता हैं कि जलाल तारीकी इस्लाम धर्म का विरोधी था।

11वें साल उन्हे जमींदावर दुर्ग पर अधिकार करने के लिए भेजा गया।

वहाँ पर बड़ी वीरता दिखाकर उन्होने दुर्ग पर जीत प्राप्त कर ली।

इसके बाद 12वें साल वे वापस लौटकर आये।

उन्हे पुरस्कार स्वरूप बंगश का फौजदार नियुक्त किया गया।

14वें साल काँगड़ा की तराई में उनके बेटे राजरूप को फौजदार नियुक्त किया गया और उन्होने पर्वतीय राजाओं से भेंट लेने की आज्ञा बादशाह से प्राप्त कर ली।

लेकिन उसी समय उनके मन में विद्रोह की भावना जाग उठी। इसके लिए बादशाह ने खानजहाँ बारहा सर्द्वद खाँ जफरजंग और असालत खाँ के अधीन सेनाएँ भेजीं और सुल्तान मुरादबख्श को पीछे से भेजा।

जगत सिंह ने अपने अधीनस्थ मदफनूरगढ़ ओर तारागढ़ आदि कई दुर्गों को बचाने के लिए युद्ध किया।

अपनी हार होती देखकर खानजहाँ को मनाकर शाहजादे के पास आया।

शाहजादे ने इस शर्त पर कि मऊ और तारागढ़ ध्वस्त कर दिए जाएँगे, उन्हे क्षमा कर दिया गया। बादशाह ने अपनी दयालुता से उन्हे दंड नहीं दिया और उनका मंसब वही रहने दिया।

मृत्यु – जगत सिंह पठानिया की जीवनी

उसी साल वे दाराशिकोह के साथ कंधार पहुँचकर किलात दुर्ग का प्रध्यक्ष बने।

1645 ई. में शाहजहाँ ने अमीर-उल-उमरा अलीमर्दान खाँ को शाहजादा मुरादबख्श के साथ बदख्शाँ विजय के लिए नियुक्त किया।

उसमें भी उन्होने अपनी विलक्षण चतुराई का परिचय दिया।

तत्पश्चात् यह पेशावर पहुँचकर सन् 1645 ई. में  उनकी मृत्यु हो गई।

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