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जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी – Jaipal Singh Munda Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी – Jaipal Singh Munda Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी – Jaipal Singh Munda Biography Hindi

जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी
जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी

Jaipal Singh Munda भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के
एक सर्वोच्च नेता थे।

जयपाल सिंह मुंडा एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी थे।

वे एक महान, दूरदर्शी और विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आदिवासियों
के पक्षधर भी थे।

रांची में जन्मे हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी में आदिवासी नेता मरड़ गोमके के नाम से विख्यात डॉ जयपाल सिंह का 1928 में एम्सटर्डम (होलैंड) में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान
नियुक्त किया गया था, इसमें भारत में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।

1936 में वे राजनीतिक में आए और बाद में झारखंड पार्टी का गठन किया।

उन्होंने अनुसूचित जनजातियों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान किया।

जन्म – जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी

जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी   1903 में रांची झारखंड के खूंटी नामक एक छोटे से कस्बे में हुआ था।

Jaipal Singh Munda का वास्तविक नाम ईश्वर जयपाल सिंह था,

लेकिन उन्हें झारखंड के आदिवासी मरड़ गोमके कहते थे।

जयपाल सिंह मुंडा झारखंड के आदिवासी जनजाति मुंडा से संबंध रखते थे।

इनका मूल स्थान दक्षिणी छोटा नागपुर है।

शिक्षा

जयपाल सिंह मुंडा ने शुरुआती शिक्षा रांची के सैंट पॉल स्कूल से प्राप्त किया था ।

वहाँ के प्रधानाचार्य ने आगे की शिक्षा के लिये उन्हे इंग्लैंड भेजा ।

स्कूल की शिक्षा पाने के बात उन्होने उच्च शिक्षा ऑक्स्फर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की।

मिशनरीज के मदद से ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए वहां पर वे एक निराले रूप से एक प्रतिभाशाली थे।

उन्हें पढ़ाई के अलावा हॉकी खेलने का शौक था।

इसके अलावा वाद-विवाद में भी उन्होंने खूब नाम कमाया।

सैंट पॉल के प्रधानाचार्य रेव.केकॉन कोसग्रेन ने पहचाना और वही उनके प्रारम्भिक गुरु भी थे, जिन्होंने उन्हे अपने समाज के उत्थान
के लिये प्रेरित किया

उनका उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आई सी एस) में हुआ।

1928 में एमस्टरडम में ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय टीम के कप्तान के रूप में नीदरलैंड चले गए।

जिसके कारण उनका प्रशिक्षण प्रभावित हुआ।

वापस आने पर उन्हें आईसीएस का 1 वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने एसा करने से इनकार
कर दिया.

 कार्यक्षेत्र – जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी

जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासियों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान दिया झारखंड आंदोलन के नेता ने भारत आने के बाद ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने के बजाय बल्कि आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए उन्होंने 1938 में आदिवासी महासभा का गठन किया।

उन्होंने बिहार से हटकर एक अलग झारखंड राज्य की मांग की।

उन्होंने मध्य पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए आदिवासी राज्य बनाने की मांग की उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से भी शामिल थे. इसके बाद जयपाल सिंह ने देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए। 1938 के आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया इस दौरे
के दौरान आदिवासियों के खराब हालातो को देखते हुए जयपाल सिंह मुंडा ने राजनीति में आने का फैसला किया।

उनकी मांग पूरी कर नहीं हुई जिसका नतीजा यह रहा कि इन इलाकों में शोषण के खिलाफ नक्सलवाद जैसी समस्या पैदा हो गई। जो आज भी देश में परेशानी का सबब बनी हुई है। 2000 में झारखंड राज्य के निर्माण के साथ उनकी मांग आंशिक रूप से पूरी तो हुई लेकिन तब तक आदिवासियों की संख्या राज्य में घटकर करीब 26 फीसद ही बची। 1951 में यह 51% हुआ करती थी

संसद में संविधान के मसौदे में हुई बहस के दौरान जयपाल सिंह मुंडा ने शराबबंदी का खुलकर विरोध किया।

गांधीवादियों के दबाव में आकर शराबबंदी को संविधान के नीति निर्देशक तत्व में शामिल कर लिया गया ।

जिसका विरोध करते हुए जयपाल ने कहा कि’यह भारत की सबसे प्राचीन भाषा के धार्मिक अधिकारों में एक हस्तक्षेप होगा’।

योगदान

शराब आदिवासी त्योहारों, रीतिरिवाजों और दैनिक जीवन का एक हिस्सा बन गया है।

शराब बंदी के विरोध में उन्होंने एक दलील(कारण) पेश करते हुए कहा कि ‘पश्चिम बंगाल में तो धान की बुवाई करना असंभव हो जाएगा अगर संथालों को चावल से बने शराब मिलना बंद हो जाएगी। इन कम कपड़ा पहनने वाले लोगों को पूरा दिन घुटनेभर बरसाती फुहारों और बीच कीचड़ के बीच काम करना पड़ता है ऐसा उस चावल के शराब में क्या है जो उन्हें जिंदा रखे हुए हैं?’

जयपाल सिंह मुंडा का योगदान भारत के जनजातियों के लिए उतना ही है जितना भीमराव आंबेडकर का अनुसूचित जातियों के लिए हैं आदिवासियों के लिहाज से कई मायनों में जयपाल सिंह मुंडा के योगदान को आंबेडकर के योगदान से भी ज्यादा ही कहा जा सकते हैं।

आदिवासियों की तरफ से उन्होंने सविधान सभा में बोलते हुए कहा कि ‘एक जंगली और आदिवासी समुदाय से आने वाले व्यक्ति के रूप में मुझे प्रस्ताव के कानूनी बारिकीयों का ज्ञान तो नहीं है। लेकिन मेरा सामान्य ज्ञान कहता है कि आजादी और संघर्ष की लड़ाई में हर
एक व्यक्ति को कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए।

अगर पूरे हिंदुस्तान में किसी के साथ ऐसा खराब सलूक किया जाता है तो वह मेरे लोग है’।

मुंडा के कारण जनजातियों को संविधान में कुछ विशिष्ट अधिकार मिल सके, लेकिन व्यवहार में उनका शोषण अब भी जारी है खासकर भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात में तो इनका सामूहिक खात्मे का अभियान छेड़ा हुआ है किसी को नक्सली बताकर गोली से उड़ा दिया जाता है  हमे इस नीति को खत्म करने के लिए एक बार फिर से जयपाल सिंह मुंडा की विचारधारा का अनुसरण करने की जरूरत है।

पुरस्कार – जयपाल सिंह मुंडा की जीवनी

  • 1925 में ऑक्सफोर्ड ब्लू का खिताब पाने वाले एक मात्र हॉकी खिलाड़ी
  • जयपाल सिंह मुंडा को खिलाड़ी होने के नाते कप्तानी में पहली बार 1928 में भारत के ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला

मृत्यु

आदिवासियों के लिए लड़ते-लड़ते 20 मार्च 1970 को दिल्ली में जयपाल सिंह मुंडा का निधन हो गया

लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है कि उसके बाद उन्हें भुला दिया गया।

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