आज इस आर्टिकल में हम आपको जरनैल सिंह की जीवनी – Jarnail Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।
जरनैल सिंह की जीवनी – Jarnail Singh Biography Hindi
(English – Jarnail Singh)जरनैल सिंह फुटबॉल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं।
उन्होंने भारत को विजय दिलाने में श्रेष्ठ ‘डिफेंडर’ की भूमिका निभाई है।
1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में जरनैल सिंह ने अपने स्ट्रोक द्वारा विजय दिलाकर भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्हें 1964 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
संक्षिप्त विवरण
नाम | जरनैल सिंह |
पूरा नाम, अन्य नाम | जरनैल सिंह ढिल्लों |
जन्म | 20 फरवरी, 1936 |
जन्म स्थान | पनाम, ज़िला होशियारपुर, पंजाब |
पिता का नाम | – |
माता का नाम | – |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 13 अक्टूबर, 2000 |
मृत्यु स्थान | वैंकूवर, कनाडा |
जन्म – जरनैल सिंह की जीवनी
जरनैल सिंह का जन्म 20 फरवरी, 1936 में पनाम, ज़िला होशियारपुर, पंजाब में हुआ था।
उनका पूरा नाम ‘जरनैल सिंह ढिल्लों’ है।
करियर
जरनैल सिंह ने अपनी शक्ति और बेहतर प्रदर्शन के दम पर फ़ुटबॉल में बचाव की कला (आर्ट ऑफ डिफेंस) को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वह 1952 से 1956 तक खालसा कॉलेज महिपालपुर पंजाब के लिए खेलते रहे, फिर 1956-1957 के बीच खालसा स्पोर्टिंग कॉलेज, पंजाब टीम के सदस्य रहे। 1957-1958 में वह राजस्थान क्लब, कलकत्ता टीम के सदस्य रहे।
भारतीय फ़ुटबॉल के स्वर्णिम युग में जरनैल सिंह ने अपने समय के अन्य श्रेष्ठ खिलाड़ियों की भांति भारतीय फ़ुटबॉल को आगे बढ़ाने तथा उन्नति के रास्ते पर ले जाने में अहम भूमिका निभाई।
1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में उनकी योग्यता व श्रेष्ठता किसी से छिपी नहीं है। वहां का उनका श्रेष्ठ प्रदर्शन आज भी याद किया जाता है। इन एशियाई खेलों में जरनैल सिंह के सिर में चोट के कारण छह टांके आए थे, परन्तु उन्होंने उसे भुलाकर फारवर्ड के रूप में खेल कर ऐसा महत्त्वपूर्ण गोल किया कि भारत पहले सेमीफाइनल में और फिर फाइनल में जीतकर एशियाई फ़ुटबॉल में पहली बार स्वर्ण पदक हासिल कर सका।
1964 से 1994 तक
दो वर्ष बाद अर्थात् 1964 में तेल अवीव में हुए एशिया कप में जरनैल सिंह ने डिफेन्डर के रूप में अत्यन्त श्रेष्ठ प्रदर्शन किया और भारत उस खेल में रनर-अप रहा। 1964 में ही मलेशिया के मर्डेका टूर्नामेंट में अच्छे प्रदर्शन के पश्चात् जरनैल सिंह ने चुन्नी गोस्वामी से टीम की डोर अपने हाथ में ले ली।
वह 1965 से 1967 तक भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान रहे और उनके नेतृत्व में टीम ने अत्यन्त बेहतरीन प्रदर्शन किया तथा अनेक सफलताएं अर्जित कीं। 1965-1966 तथा 1966-1967 में जरनैल सिंह ‘एशियाई ऑल स्टार टीम’ के भी कप्तान रहे।
घरेलू सर्किट में भी जरनैल सिंह मोहन बगान क्लब से 10 महत्त्वपूर्ण वर्षों तक जुड़े रहे जब हरी तथा मैरून टीमों ने राष्ट्रीय स्तर पर लगभग सभी महत्वपूर्ण मुकाबले जीत लिए। वह 1958 से 1968 तक मोहन बागान क्लब से जुड़े रहे। 1969 में मोहन बगान छोड़ने के पश्चात् वह पंजाब की टीम के लिए खेले और 1970 में उन्होंने टीम के कोच तथा खिलाड़ी के रूप में संतोष ट्रॉफी जीतने में टीम की मदद की।
जरनैल सिंह भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच भी रहे। वह कई महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर भी रहे।
1964 में जरनैल सिंह ज़िला खेल अधिकारी पद पर रहे।
1985 से 1990 तक वह पंजाब में खेल विभाग के डिप्टी डायरेक्टर रहे।
1990 से 1994 के बीच वह पंजाब के डायरेक्टर ऑफ स्पोर्ट्स पद पर रहे।
पुरस्कार – जरनैल सिंह की जीवनी
जरनैल सिंह को 1964 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
जरनैल सिंह की मृत्यु 13 अक्टूबर, 2000 को वैंकूवर, कनाडा में हुई।
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