ज्योति बसु (English – Jyoti Basu) भारतीय मार्क्सवादी राजनितिज्ञ तथा पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे। वे सन् 1977 से लेकर 2000 तक पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्यमंत्री रहकर भारत के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान स्थापित किए। 1964 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [माकपा] की स्थापना हुई। वह इसके संस्थापकों में रहे।
ज्योति बसु की जीवनी – Jyoti Basu Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण
नाम | ज्योति बसु |
पूरा नाम, वास्तविक नाम | ज्योतिंद्र नाथ बसु , ज्योति किरण बसु |
जन्म | 8 जुलाई, 1914 |
जन्म स्थान | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
पिता का नाम | निशिकांत बसु, |
माता का नाम | हेमलता बसु |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | – |
जाति | – |
जन्म
ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई 1914 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता निशिकांत बसु, ढाका जिला, पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के बार्दी गांव में एक डॉक्टर थे, जबकि उनकी मां हेमलता बसु एक गृहिणी थी।
शिक्षा
Jyoti Basu ने अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा 1920 में धरमतला, कलकत्ता (अब कोलकाता) के लोरेटो स्कूल में शुरू की, जहां पर उनके पिता ने उनका नाम छोटा कर ज्योति बसु कर दिया।
1925 में सेंट जेवियर स्कूल में जाने से पहले बसु ने स्नातक शिक्षा हिंदू कॉलेज में विशिष्ठ अंग्रेजी में पूरी की। 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के सदस्य बने।
1935 में उन्होने कानून के उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए, जहां ग्रेट ब्रिटेन की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने कदम रखा। यहां नामचीन वामपंथी दार्शनिक और लेखक रजनी पाम दत्त से प्रेरित हुए।
1940 में बसु ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और बैरिस्टर के रूप में मिडिल टेंपल से प्रात्रता हासिल की।
करियर
इसी साल वे भारत लौट आए। जब सीपीआई ने 1944 में उन्हें रेलवे कर्मचारियों के बीच काम करने के लिए कहा तो बसु ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में संलग्न हुए। बी.एन. रेलवे कर्मचारी संघ और बी.डी रेल रोड कर्मचारी संघ के विलय होने के बाद बसु संघ के महासचिव बने।
राजनीतिक करियर
Jyoti Basu 1946 में रेलवे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ते हुए बंगाल विधान सभा के लिए चुने गए। उन्होंने डॉ॰ बिधान चंद्र रॉय के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहते हुए लंबे समय के लिए विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया। उन्होने एक विधायक और विपक्ष के नेता के रूप में अपने सराहनीय कार्य से डॉ॰ बी.सी रॉय का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें उनका भरपूर स्नेह मिला, भले ही बसु डॉ॰ राय द्वारा चलाई जा रही नीतियों के खिलाफ थे।
ज्योति बसु ने राज्य सरकार के खिलाफ एक और एक के बाद एक आंदोलन का नेतृत्व किया और एक नेता के रूप में विशेष रूप से छात्रों और युवकों के बीच गहरी लोकप्रियता अर्जित की।
1964 में जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हो गया तो बसु नए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के पहले नौ सदस्यों में से एक बने।
1967 और 1969 में बसु के पश्चिम बंगाल के संयुक्त मोर्चे की सरकारों में उप मुख्यमंत्री बने। 1967 में कांग्रेस सरकार की हार के बाद अजय मुखोपाध्याय के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री बने।
1972 में कांग्रेस पश्चिम बंगाल में वापस सत्ता पर लौट आई। ज्योति बसु बारानगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए और चुनाव के दौरान अभूतपूर्व हेराफेरी की शिकायत दर्ज कराई। उनकी पार्टी सीपीआई (एम) ने 1977 में नए सिरे से चुनाव होने तक विधानसभा के बहिष्कार का फैसला किया।
21 जून 1977 से 6 नवम्बर 2000 तक बसु पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। 1996 में ज्योति बसु भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए संयुक्त मोर्चा के नेताओं के सर्वसम्मति उम्मीदवार बनते दिखाई पड़ रहे थे, लेकिन सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो ने सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला किया, जिसे बाद में ज्योति बसु ने एक ऐतिहासिक भूल करार दिया।
उन्होने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद से 2000 में स्वास्थ्यगत कारणों से इस्तीफा दे दिया और साथी सीपीआई (एम) नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया। बसु सबसे लंबे समय तक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मुख्यमंत्री के तौर पर सेवा के लिए जाने जाएंगे।
मृत्यु
Jyoti Basu की मृत्यु 17 जनवरी 2010 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था।