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करम सिंह की जीवनी – Karam Singh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको करम सिंह की जीवनी – Karam Singh Biography Hindi के बारे में बताएगे।

करम सिंह की जीवनी – Karam Singh Biography Hindi

करम सिंह की जीवनी

(English -Karam Singh)करम सिंह परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले प्रथम जीवित भारतीय सैनिक थे।

श्री सिंह 1941 में सेना में शामिल हुए थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा की ओर से भाग लिया था।

जिसमे उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें ब्रिटिश भारत द्वारा मिलिट्री मैडल (एमएम) दिया गया।

उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में भी लड़ा था जिसमे टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली में एक अग्रेषित्त पोस्ट को बचाने में उनकी सराहनीय भूमिका के लिए सन 1948 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।वह 1947 में आजादी के बाद पहली बार भारतीय ध्वज को उठाने के लिए चुने गए पांच सैनिकों में से एक थे। श्री सिंह बाद में सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा मिला।

संक्षिप्त विवरण

नामकरम सिंह
पूरा नाम, अन्य नाम
लांस नायक करम सिंह
जन्म 15 सितंबर 1915 को
जन्म स्थानभालियाँ गाँव, पंजाब
पिता का नाम सरदार उत्तम सिंह
माता  का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु
20 जनवरी, 1993
मृत्यु स्थान
बरनाला, पंजाब

जन्म – करम सिंह की जीवनी

श्री करम सिंह का जन्म 15 सितंबर 1915 को पंजाब के संगरूर ज़िले के भालियाँ वाले गाँव में हुआ था।

वे एक सिख जाट परिवार मेंथे। उनके पिता  का नाम सरदार उत्तम सिंह जोकि एक किसान थे।

वे भी एक किसान बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियों से प्रेरित होने के बाद सेना में शामिल होने का फैसला किया।

1941 में अपने गांव में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे सेना में शामिल हो गए।

सैन्य करियर

15 सितंबर 1941 को उन्होंने सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में दाखिला लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के बर्मा अभियान के दौरान एडमिन बॉक्स की लड़ाई में उनके आचरण और साहस के लिए उन्हें मिलिट्री मैडल से सम्मानित किया गया था।

एक युवा, युद्ध-सुसज्जित सिपाही के रूप में उन्होंने अपनी बटालियन में साथी सैनिकों से सम्मान अर्जित किया।

1947 भारत-पाकिस्तान युद्ध

1947 में भारत की आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान ने कश्मीरी रियासत के लिए लड़ाई लड़ी। संघर्ष के प्रारंभिक चरणों के दौरान पाकिस्तान के पश्तून आदिवासी सैन्य टुकड़ियों ने राज्य की सीमा पार कर दी तथा टिथवाल सहित कई गांवों पर कब्जा कर लिया।

कुपवाड़ा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर स्थित यह गांव भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था। 23 मई 1948 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों से टिथवाल पर से कब्जा वापस ले लिया लेकिन पाकिस्तानी सेना ने क्षेत्र को फिर से प्राप्त करने के लिए एक त्वरित हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तानी हमले के दौरान भारतीय सैनिक जो उस हमले का सामना करने में असमर्थ थे अपने स्थिति से वापस टिथवाल रिज तक चले गए और उपयुक्त पल के लिए तैयारी करने लगे।

चूंकि टिथवाल की लड़ाई कई महीनों तक जारी रही, पाकिस्तानियों ने हताश होकर 13 अक्टूबर को बड़े पैमाने पर हमले शुरू कर दिए ताकि भारतीयों को उनकी स्थिति से हटाया जा सके। उनका प्राथमिक उद्देश्य टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली और टिथवाल के पूर्व नस्तचूर दर्रे पर कब्जा करना था।

13 अक्टूबर की रात को रीछमार गली पर भयानक लड़ाई के दौरान लांस नायक करम सिंह 1 सिख की अग्रिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। लगातार पाकिस्तानी गोलीबारी में श्री सिंह ने घायल होते हुए भी साहस नहीं खोया और एक और सैनिक की सहायता से वह दो घायल हुए सैनिकों को साथ लेकर आए थे।

युद्ध के दौरान श्री सिंह एक स्थिति से दूसरी स्थिति पर जाते रहे और जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए ग्रेनेड फेंकते रहे। दो बार घायल होने के बावजूद उन्होंने निकासी से इनकार कर दिया और पहली पंक्ति की लड़ाई को जारी रखा। पाकिस्तान की ओर से पांचवें हमले के दौरान दो पाकिस्तानी सैनिक श्री सिंह के करीब आ गए।

सम्मान – करम सिंह की जीवनी

लांस नायक करम सिंह को भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 के दौरान उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी 1950 के दिन परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

करम सिंह की मृत्यु 77 वर्ष की आयु में 20 जनवरी, 1993 को बरनाला, पंजाब में हुआ था।

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