केसरी सिंह बारहठ (English – Kesari Singh Barahath) प्रसिद्ध राजस्थानी कवि तथा स्वतंत्रता सेनानी थे।
1920-21 में वर्धा में केसरी जी के नाम से ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया था, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही उनका महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ।
केसरी सिंह बारहट की जीवनी – Kesari Singh Barahath Biography Hindi

संक्षिप्त विवरण
नाम | केसरी सिंह बारहट |
पूरा नाम | केसरी सिंह बारहट |
जन्म | 21 नवंबर 1872 |
जन्म स्थान | देवपुरा, शाहपुरा, राजस्थान |
पिता का नाम | कृष्ण सिंह बारहट |
माता का नाम | बख्तावर कँवर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिंदू |
जाति | चारण |
जन्म
केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को राजस्थान के शाहपुरा, रियासत के देवपुरा नामक गाँव में हुआ।
उनके पिता का नाम कृष्ण सिंह बारहठ था और उनकी माता का नाम बख्तावर कँवर था ,उनकी माता का निधन उनके बाल्यकाल में ही हो गया था।
शिक्षा
छः वर्ष की आयु में केसरी सिंह की शिक्षा शाहपुर में महन्त सीताराम की देख-रेख में प्रारम्भ हुई। दो साल बाद कृष्ण सिंह ने उदयपुर में काशी से एक विद्वान पंडित गोपीनाथ शास्त्री को बुलाकर केसरी सिंह की औपचारिक शिक्षा-दीक्षा संस्कृत परिपाटी में आरम्भ करायी। उस समय के उत्कृष्ट बौद्धिक माप-दण्ड के अनुसार केसरी सिंह ने पूरा ‘अमरकोश’ कण्ठस्थ कर लिया था। केसरी सिंह ने संस्कृत एवं हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं बंगला, मराठी एवं गुजराती का भी पर्याप्त अध्ययन किया। ज्योतिष, गणित एवं खगोल शास्त्र में भी उनकी अच्छी गति थी।
साहित्य रचना एवं स्वतंत्रता-आन्दोलन
केसरी सिंह ने राजस्थान के क्षत्रियों और अन्य लोगों को ब्रितानी गुलामी के विरुद्ध एकजुट करने, शिक्षित करने एवं उनमें जागृति लाने के लिए कार्य किया। 1903 में उदयपुर रियासत के राजा फतेह सिंह को लॉर्ड कर्जन द्वारा बुलायी गयी बैठक में भाग लेने से रोकने के उद्देश्य से उन्होने “चेतावनी रा चुंगट्या” नामक 13 सोरठे रचे।
बाद के दिनों में उन्होने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का विविध प्रकार से समर्थन किया और उन्हें हथियार उपलब्ध कराया। ठाकुर केसरी सिंह का देश के शीर्ष क्रांतिकारियों- रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचन्द, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, अर्जुनलाल सेठी, राव गोपाल सिंह, खरवा आदि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। 1912 में राजपूताना में ब्रिटिश सी.आई.डी. द्वारा जिन व्यक्तियों की निगरानी रखी जानी थी उनमें केसरी सिंह का नाम राष्ट्रीय-अभिलेखागार की सूची में सबसे ऊपर था।
राजद्रोह का मुक़दमा
Kesari Singh Barahath पर ब्रिटिश सरकार ने प्यारेलाल नाम के एक साधु की हत्या और अंग्रेज़ हकूमत के ख़िलाफ़ बगावत व केन्द्रीय सरकार का तख्ता पलट व ब्रिटिश सैनिकों की स्वामि भक्ति खंडित करने के षड़यंत्र रचने का संगीन आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया गया।
इसकी जाँच आर्मस्ट्रांग आई.पी.आई.जी., इंदौर को सौंपी गई, जिसने 2 मार्च 1914 को शाहपुरा पहुँचकर वहाँ के राजा नाहर सिंह के सहयोग से केसरी सिंह को गिरफ़्तार कर लिया। इस मुक़दमे में स्पेशल जज ने केसरी सिंह को 20 वर्ष की सख्त क़ैद की सजा सुनाई और राजस्थान से दूर ‘हज़ारीबाग़ केन्द्रीय जेल’, बिहार भेज दिया।
जेल में उन्हें पहले चक्की पीसने का कार्य सौपा गया, जहाँ वे दाल व अनाज के दानों से क, ख, ग आदि अक्षर बनाकर अनपढ़ कैदियों को अक्षर-ज्ञान देते और अनाज के दानों से ही जमीन पर भारत का नक्शा बनाकर क़ैदियों को देश के प्रान्तों का ज्ञान भी कराते।
रिहाई
केसरी सिंह बारहट का नाम कितना प्रसिद्ध था, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर में हुए ‘कांग्रेस अधिवेशन’ में केसरी सिंह को जेल से छुड़ाने का प्रस्ताव पेश किया था। जेल से छूटने के बाद अप्रैल, 1920 में केसरी सिंह ने राजपूताना के एजेंट गवर्नर-जनरल को एक बहुत सारगर्भित पत्र लिखा, जिसमें राजस्थान और भारत की रियासतों में उत्तरदायी शासन-पद्धति कायम करने के लिए सूत्र रूप से एक योजना पेश की गई थी। इसमें ‘राजस्थान महासभा’ के गठन का सुझाव था, जिसमें दो सदन रखने का प्रस्ताव था।
राजस्थान केसरी’ की शुरुआत
1920-1921 में सेठ जमनालाल बजाज द्वारा आमंत्रित करने पर केसरी सिंह जी सपरिवार वर्धा चले गए, जहाँ विजय सिंह पथिक जैसे जनसेवक पहले से ही मौजूद थे। वर्धा में उनके नाम से ‘राजस्थान केसरी’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही केसरी सिंह का महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ।
मृत्यु
Kesari Singh Barahath की मृत्यु 14 अगस्त 1941 में हुआ था।