आज इस आर्टिकल में हम आपको ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी – Moinuddin Chishti Biography Hindi के बारे में बताएगे।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी – Moinuddin Chishti Biography Hindi
![ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी](https://i0.wp.com/jivanihindi.com/wp-content/plugins/a3-lazy-load/assets/images/lazy_placeholder.gif?resize=177%2C223)
मुइनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफ़ी संत थे।
उन्होंने 12वीं शताब्दी में अजमेर में ‘चिश्तिया’ परंपरा की स्थापना की थी।
माना जाता है कि ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती 1195 ई. में मदीना से भारत आए थे।
इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन अजमेर में ही लोगों के दु:ख-दर्द दूर करते हुए गुजार दिया।
वे हमेशा ईश्वर से यही दुआ किया करते थे कि वह सभी भक्तों का दुख-दर्द उन्हें दे और उनके जीवन को खुशियों से भर दे।
जन्म
ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती 1 फरबरी 1143 ई. में ख़ुरासान प्रांत के ‘सन्जर’ नामक गाँव में हुआ था ।
‘सन्जर’ कन्धार से उत्तर में स्थित है। आज भी वह गाँव मौजूद है।
कई लोग इसको ‘सजिस्तान’ भी कहते है।
उनका पूरा नाम ‘ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह’ था।
ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती ने ही भारत में ‘चिश्ती सम्प्रदाय’ का प्रचार-प्रसार अपने गुरु ख़्वाजा उस्मान हारुनी के दिशा-निर्देशों पर किया किया।
शिक्षा – ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी
उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अपने पिता के संरक्षण में हुई।
जिस समय ख़्वाजा मुइनूद्दीन मात्र ग्यारह वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहांत हो गया।
उत्तराधिकार में उन्हें मात्र एक बाग़ की प्राप्ति हुई थी। इसी की आय से वे अपना जीवन निर्वाह करते थे ।
संयोग या दैवयोग से उनके बाग़ में एक बार हज़रत इब्राहिम कंदोजी का आगमन हुआ।
उनकी आवभगत सेवे अत्यंत प्रभावित हुए।
उन्होंने ख्वाजा मोइनूद्दीन चिशती के सिर पर अपना पवित्र हाथ फेरा और शुभाशीष दी।
इसके बाद उनके हृदय में नवचेतना का संचार हुआ।
सबसे पहले वे एक वृक्ष के नीचे समाधिस्थ हुए,लेकिन राज कर्मचारियों द्वारा यह कहने पर कि यहाँ तो राजा की ऊँटनियाँ बैठती हैं, तो वे वहाँ से नम्रतापूर्वक उठ गए। राजा के ऊँट-ऊँटनियाँ वहाँ से उठ ही न पाए तो कर्मचारियों ने क्षमा-याचना की।
इसके बाद उनका निवास एक तालाब के किनारे पर बना दिया गया, जहाँ पर ख़्वाजा मुइनूद्दीन दिन-रात निरंतर साधना में लीन रहते थे। वे अक्सर दुआ माँगते कि “ए अल्लाह त आला/परब्रह्म स्वामी जहाँ कहीं भी दु:ख दर्द और मेहनत हो, वह मुझ नाचीज को फरमा दे।” ख़्वाजा मुइनूद्दीन ने कई हज पैदल ही किए।
भारत में आगमन – ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी
यह माना जाता है कि ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती1195 ई में मदीना से भारत आए थे।
वे ऐसे समय में भारत आए, जब मुहम्मद ग़ोरी की फौज अजमेर के राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान से पराजित होकर वापस ग़ज़नी की ओर भाग रही थी।
भागती हुई सेना के सिपाहियों ने ख़्वाजा मुइनूद्दीन से कहा कि आप आगे न जाएँ।
आगे जाने पर आपके लिए ख़तरा हो सकता है, क्योकि मुहम्मद ग़ोरी की पराजय हुई है।
लेकिन ख़्वाजा मुइनूद्दीन नहीं माने।
वह कहने लगे- “चूंकि तुम लोग तलवार के सहारे दिल्ली गए थे, इसलिए वापस आ रहे हो।
मगर मैं अल्लाह की ओर से मोहब्बत का संदेश लेकर जा रहा हूँ।
” थोड़ा समय दिल्ली में रुककर वह अजमेर चले गए और वहीं रहने लगे।
सन्देश
मुइनूद्दीन चिश्ती हमेशा ईश्वर से दुआ करते थे कि वह उनके सभी भक्तों का दुख-दर्द उन्हें दे तथा उनके जीवन को खुशियों से भर दे। उन्होंने कभी भी अपने उपदेश किसी किताब में नहीं लिखे और न ही उनके किसी शिष्य ने उन शिक्षाओं को संकलित किया।
ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती ने हमेशा राजशाही, लोभ और मोह आदि का विरोध किया। उन्होंने कहा कि- “अपने आचरण को नदी की तरह पावन व पवित्र बनाओ तथा किसी भी तरह से इसे दूषित न होने देना चाहिए। सभी धर्मों को एक-दूसरे का आदर करना चाहिए और धार्मिक सहिष्णुता रखनी चाहिए। ग़रीब पर हमेशा अपनी करुणा दिखानी चाहिए तथा जितना संभव हो उसकी मदद करनी चाहिए। संसार में ऐसे लोग हमेशा पूजे जाते हैं और मानवता की मिसाल क़ायम करते हैं।”
मृत्यु
ख़्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती जब 89 वर्ष के हुए तो उन्होंने ख़ुद को घर के अंदर बंद कर लिया।
जो भी मिलने आता, वह मिलने से इंकार कर देते। नमाज अता करते हुए वे 15 मार्च 1236 को अल्लाह को प्यारे हो गए , उस स्थान पर उनके चाहने वालों ने उन्हें दफ़ना दिया और क़ब्र बना दी। बाद में उस स्थान पर उनके प्रिय भक्तों ने एक भव्य मक़बरे का निर्माण कराया, जिसे आजकल “ख़्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का मक़बरा” कहा जाता है।
फिल्म – ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी
उनकी करामात पर कई हिन्दीऔर अथवा उर्दू फिल्में बनीं। औरउनके जीवन पर कई गीत भी लिखे गये और गाये भी गये। भारत उपमहाद्वीप में जहां कहीं भी क़व्वाली होती है, तो उन क़व्वालियों में उनके बारे में “मनक़बत” गाना एक आम परंपरा है।
- उर्दू फ़िल्म – मेरे गरीब नवाज़
- उर्दू फ़िल्म – सुल्तान-ए-हिन्द
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