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किशोरी लाल वैध की जीवनी – Kishori Lal Vaidh Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको किशोरी लाल वैध की जीवनी – Kishori Lal Vaidh Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

किशोरी लाल वैध की जीवनी – Kishori Lal Vaidh Biography Hindi

किशोरी लाल वैध की जीवनी
किशोरी लाल वैध की जीवनी

Kishori Lal Vaidh हिमाचल की जाने-माने साहित्यिकारों में से एक है।

साहित्य जगत में उन्हें ‘वैद्य जी’ के नाम से जाना जाता है।

छह दशकों से लेखन कार्य में साधनारत वैद्य जी राज्य में लेखकों की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं,

जिन्होंने प्रदेश के गठन के बाद हिमालय क्षेत्र की लोक कला, संस्कृति, जीवन, धर्म, साहित्य, स्थापत्य कला की अमूल्य धरोहर को पहाड़ों से बाहर निकाल कर देश दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत किया।

जन्म

किशोरी लाल वैद्य का जन्म 2 मार्च, 1937 को छोटी काशी यानी मंडी, हिमाचल प्रदेश में हुआ।

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करियर – किशोरी लाल वैध की जीवनी

जून 1960 में राजकीय उच्च विद्यालय हटगढ़, जिला मंडी में उन्होने अध्यापक के रूप में कार्य किया।

उन्हे लेखन का शौक़ था,जिसके कारण अध्यापन कार्य में मन ज्यादा समय तक नहीं लग पाया।

वे बचपन से ही पढ़ाई के दौरान ही स्कूली पत्रिका पत्रों में लिखने लगे थे।

जालंधर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘मिलाप’ ‘वीर प्रताप’ में रचनाओं के छपने से मनोबल बढ़ा।

जिसके कारण उन्होंने अध्यापन छोड़ कर लेखक बनने की ठानी।

वे सबसे पहले मार्च, 1962 को 25 वर्ष की उम्र में हिमाचल सरकार के लोक संपर्क विभाग की पत्रिका ‘हिमप्रस्थ’ से जुड़े। नई नौकरी मिलने पर उन्हे ऐसा आभास हुआ, जैसे नदी का समुद्र से मिलन हुआ हो। इससे उन्हे लेखकीय कार्य के लिए एक मंच मिल गया। यहाँ पर उन्होने रामदयाल नीरज, सत्येंद्र शर्मा, जिया सिद्दीकी से साहित्य की बारीकियों सीखीं और देश में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी मिली।

तुलसी रमण की लिखी पुस्तक ‘लाहुल-हिमालय का अंतरंग लोक’ का प्राक्कथन वैद्य जी ने ही लिखा है।

वैद्य जी ने उस समय में लेखन को अपनाया जब चित्र और चल चित्र का ज़माना नहीं था।

उनके लेखन में  सरदार शोभा सिंह के चित्र, मंदिर का स्वरूप, प्रदेश की संस्कृति, परंपराएं स्वयं बोलती हैं।

1963 के बाद

जन्मभूमि मंडी जनपद पर ‘हिमालय की लोक कथाएं’ (1971) में जनपद की मौखिक धरोहर को संरक्षित करने का अनूठा प्रयास रहा। वैद्य का उपन्यास ‘तट के बंधन’ (1963) उस समय में पारिवारिक परिवेश, संबंधों (लिव-इन-रिलेशन), परिवार के विरुद्ध अंतरजातीय विवाह करने का जो सचित्र चित्रण है। वह उनकी दूरगामी सोच को दर्शाता है।

1995 में सूचना एवं जन संपर्क विभाग से संयुक्त निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के उपरांत वे गर्मियों में शिमला और सर्द ऋतु में मंडी उनकी कर्मस्थली होती है। उनके लेखकीय साधना में उनकी पार्टी का सहयोग और हमेशा साथ रहा है। आज भी वह उनसे भूले हुए किस्सों को याद करवा देती हैं। हास्य लेखन युग में लेखक के पास आज भी कब लिखा, कहां लिखा, कहां छपा का संपूर्ण रिकाॅर्ड कलमबद्ध है।

आकाशवाणी से भी उनका घनिष्ठ संबंध रहा है। नई दिल्ली केंद्र से विशेष रूपकों के अखिल भारतीय कार्यक्रम के तहत ‘साधना पीठ ताबो’ रूपक का प्रसारण हुआ। शिमला केंद्र से भी उनकी कई रचनाओं का प्रसारण हो चुका है। वे सूचना एवं जन संपर्क विभाग से संयुक्त निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए वे लेकिनलगभग 50 वर्षों से अधिक समय से लेखन कार्य से जुड़े रहे।

वैद्यजी ने कोई साहित्य खे़मा नहीं बनाया और न ही किसी गुट से जुड़े।

बस अपने विचारों को लिखा, बार-बार लिखा और जब संतुष्ट हुए तो प्रकाशनार्थ को भेजा।

इसी खूबी ने उन्हें साहित्य जगत में एक मुकाम दिलाया है।

साहित्य जगत की इस शख्सि़यत को लेखकीय धड़कन का वैद्य कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

प्रसिद्ध पुस्तक

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