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कुमार गंधर्व की जीवनी – Kumar Gandharva Biography Hindi

कुमार गंधर्व भारत के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे। लोकसंगीत को शास्त्रीय से भी ऊपर ले जाने वाले कुमार गंधर्व जी ने कबीर को जैसा गाया वैसा कोई और नहीं गा सकेगा। कुमार गंधर्व एक भारतीय शास्त्रीय गायक थे, जो अपनी विशिष्ट गायन शैली और किसी भी घराने की परंपरा से बंधे रहने के लिए जाने जाते थे। कुमार गंधर्व नाम एक उपाधि है जो उन्हें उस समय दी गई थी जब वे एक बालक थे; गंधर्व हिंदू पौराणिक कथाओं में एक संगीत की भावना है। हिंदुस्तानी संगीत के ख्यातनाम कुमार गंधर्व शुरू-शुरू में दूसरों की ऐसी नकल करते थे कि बड़े-बड़े भी उनके गले से अपनी आवाज सुनकर चक्कर में पड़ जाते थे। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको कुमार गंधर्व की जीवनी – Kumar Gandharva Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

कुमार गंधर्व की जीवनी – Kumar Gandharva Biography Hindi

कुमार गंधर्व की जीवनी

जन्म

कुमार गंधर्व का जन्म 8 अप्रैल 1924 को कर्नाटक के धारवाड़ में हुआ था। उनका पूरा नाम शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकाली था। कुमार गंधर्व ने 1947 में भानुमती से विवाह किया जो की स्वयं भी एक अच्छी गायिका थी, और इसके बाद वे देवास, मध्य प्रदेश आ गए। भानुमती ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम मुकुल गंधर्व रखा गया\ और दूसरे बेटे के जन्म के समय 1961 में भानुमती जी का निधन हो गया। जिसके बाद में उन्होंने वसुंधरा से दूसरा विवाह किया। और वसुंधरा ने कालपिनी को जन्म दिया। मुकुल गंधर्व और कालपिनी दोनों ही गायक और गायिका है।

शिक्षा

पुणे में प्रोफेसर देवधर और अंजनी बाई मालपेकर संगीत की शिक्षा प्राप्त हुई। शिवपुत्र जन्मजात गायक थे। 10 वर्ष की आयु से ही संगीत संगीत समारोह में गाने लगे थे। और वे ऐसा चमत्कारी गायन किया करते थे कि उनका नाम कुमार गंधर्व पड़ गया।

कुमार गंधर्व की बीमारी

कुमार गंधर्व टी.बी. के मरीज थे।  देवास, मध्य प्रदेश में आज आने के बाद उन्होंने वहां से बाद में इंदौर ,मालवा के समशीतोष्ण जलवायु में स्वास्थ्य लाभ करने आए थे। उन दिनों में टीबी का कोई पक्का इलाज नहीं था लेकिन जिस दिन वे इंदौर उतरे उस समय भारत आजाद हुआ ही था और वह दिन भारत के लिए सबसे काला दिन था, क्योंकि 30 जनवरी 1948 में दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। जिसके कारण मालवा में स्वास्थ्य लाभ के जीवन की शुरुआत शुभ मुहूर्त में नहीं हो पाई

भानुमती खुद एक अच्छी गायिका थी लेकिन देवास में बीमारी के इलाज के लिए और घर चलाने के लिए उन्होंने देवास के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। भानुमती जितनी सुंदर थी उतनी ही कुशल गृहणी नर्स भी थी। भानुमती की सेवा करने के बाद कुमार गंधर्व स्वस्थ होकर फिर से नई तरह से गायन करना शुरू किया। इसका श्रेय भानुताई को ही जाता है।

बीमारी से छुटकारा

बीमारी से छुटकारा पाने के बाद कुमार गंधर्व जिस घर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे वह लगभग देवास से बाहर था, और वहां हाट लगा करता था। कोमकाली जी ने वही बिस्तर पर पड़े-पड़े मालवी के खाँटी स्वर महिलाओं से सुने। वहीं पग -पग पर गीतों से चलने वाले मालवी लोक जीवन का उन्हें ज्ञान हुआ। अपनी बीमारी से ठीक होने के बाद और नया जीवन पाने के बाद में एक गायक का भी जन्म हुआ। 1952 में जब वे ठीक होकर गाना गाने लगे तो पुराने गंधर्व नहीं रह गए थे और उन्होंने एक नया रूप धारण कर लिया था।

संगीत की सुगंध

एक दिन मामा मजूमदार के घर छोटे से महफिल में गाते हुए उन्होंने अचानक कहा “अब मुझे गाना आ गया”। वह दिन हमारे लिए मालवा के सर्वश्रेष्ठ गायक कुमार गंधर्व का जन्म था। उन्हें बचपन से सुनने वाले वामन हरी देशपांडे ने उन दिनों के बारे में लिखा है-

“न जाने देवास की जमीन में कैसा जादू है। मुझे वहां की मिट्टी में संगीत की सुगंध प्रतीत होती हुई “।

मालवा के लोक जीवन से कुमार जी के साक्षात्कार प्रदेश पांडे जी ने लिखा था “बिस्तर पर पड़े-पड़े हुए ध्यान से आसपास से उठने वाले ग्रामवासियों के लोकगीतों के स्वरों को सुना करते थे। इसमें से एक नए विश्व का दर्शन उन्हें प्राप्त हुआ।”

कालिदास के बाद कुमार गंधर्व मालवा के सबसे दिव्य सांस्कृतिक विभूति है

रचनाएं

कुमार द्वारा लिखी गई कई रचनाएं

  • उड़ जायेगा हंस अकेला…… ,
  • बोर चैता…..
  • झीनी झीनी चदरिया…..,
  • सुनता है गुरु ज्ञानी……, आदि है.

पुरस्कार

कुमार गंधर्व जी को पदम विभूषण पुरस्कार से नवाजा गया

मृत्यु

12 जनवरी 1992 में 62 वर्ष की उम्र में देवास में कुमार गंधर्व का निधन हो गया.

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