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लक्ष्मी चंद्र जैन की जीवनी – Lakshmi Chandr Jain Biography Hindi

लक्ष्मी चंद्र जैन भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे। 1948 में उन्होने कमला देवी के साथ एक ‘इण्डियन को-ऑपरेटिव यूनियन’ की स्थापना की। 1968 में उन्होंने एक कंसल्टिंग फर्म भी खड़ी की, जो किसानों तथा कारीगरों की सलाह पर सरकारी तथा गैर सरकारी कामकाज में मदद करती थी। उन्हें लोक सेवा के लिए 1989 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको लक्ष्मी चंद्र जैन की जीवनी – Lakshmi Chandr Jain Biography Hindi के बारे में बताएगे।

लक्ष्मी चंद्र जैन की जीवनी – Lakshmi Chandr Jain Biography Hindi

लक्ष्मी चंद्र जैन की जीवनी - Lakshmi Chandr Jain Biography Hindi

जन्म

लक्ष्मी चंद्र जैन का जन्म 13 दिसंबर 1925 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम फूलचंद जैन तथा उनकी माता का नाम चमेली देवी था। वे अपने माता – पिता की चार संतानों में सबसे बड़े थे। लक्ष्मी चंद्र के माता पिता दोनों ही सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे तथा उन्हीं की जरिये लक्ष्मी चंद्र जैन ने भी यह संस्कार पाया था। राष्ट्रीय भावनाओं की बुनियाद को लेकर उनकी कुछ स्मृतियाँ तथा संस्मरण रोचक हैं। उनकी पत्नी का नाम देवकी था।

शिक्षा

लक्ष्मीचंद्र जैन की शिक्षा 1929 में शुरु हुई। उन्होंने जैन संस्थापित प्राइमरी तथा सेकेंडरी स्कूलों में, दिल्ली में ही पढ़ाई की। वह एक प्रतिशाली छात्र थे तथा क्लास के हेडब्वॉवॉय बनाए गए थे। 1939 में लक्षीचंद ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज में प्रवेश लिया। शुरू में उन्होंने मेडिकल विषयों से पढ़ाई शुरू की लेकिन दो साल बाद वह इतिहास तथा दर्शनशास्त्र पढ़ने लगे। व्यावहारिक अर्थशास्त्र पर इनकी जबरदस्त पकड़ थी, जिसका उन्होंने जीवन में बहुत उपयोग किया। इस विषय पर उन्होंने 1955 में हावर्ड यूनिवर्सिटी से एक ग्रीष्म कालानी पाठ्यक्रम भी लिया। इसके अलावा उनकी बहुत सी अनौपचारिक शिक्षा उनकी ऑक्सफोर्ड से पढ़ी पत्नी ‘देवकी’ के जरिये हुई। लक्ष्मीचंद्र की यूनिवर्सिटी की पढ़ाई बहुत से कारणों से अधबीच में छूट गई। उसमें मुख्य कारण दूसरे विश्वयुद्ध का छिड़ जाना था।

भारत छोड़ो आंदोलन

भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से उनको दिए इस युद्ध में सहयोग के बदले स्वाधीनता की माँग की जो ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार नहीं की। इस पर अगस्त 1942 में गाँधीजी ने अंग्रेज़ोंं पर ‘भारत छोड़ो’ का दबाव बवाया। लक्ष्मीचंद्र जैन राष्ट्रवादी छात्रों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम में कूद पड़े। वह संतोष के छद्म नाम से भूमिगत हो कर काम करने लगे। उनकी विद्रोही गतिविधियों में विचारोत्तेक साहित्य लिखना, छापना तथा उनका वितरण करना तो था ही, वह टेलीफोन के तार काटना, तथा देसी बम बनाने जैसी कार्यवाही में भी लगे हुए थे। वह अलग-अलग भूमिगत ठिकानों के बीच सन्देशवाहक का काम भी करते थे। इन्हीं कार्यवाहियों के बीच लक्ष्मीचंद्र जैन तथा उनके दूसरे साथियों के बीच यह विचार भी चल रहा था कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद भारत के समाज का स्वरूप क्या होगा? इसके लिए उन्होंने ‘परिवर्तनकारी’ ग्रुप का गठन किया था। इस ग्रुप के पास बहुत से विचार थे। उन्हें मार्क्सवाद की सफलता और खामियों दोनों का पता था। उन पर गाँधीवाद का भी प्रभाव था।

एशिया रिलेशंस कांफ्रेंस

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लक्ष्मीचंद्र जैन ने अपना ग्रेजुएशन पूरा कर लिया था और इतिहास में मास्टर्स डिग्री की तैयारी कर रहे थे। इसी साल उन्हें दिल्ली कांग्रेस पार्टी की स्टूडेंट ब्रांच का उपाध्यक्ष बना दिया गया। उसी दौरान भारत में एशिया रिलेशंस कांफ्रेंस का आयोजन हुआ जिसमें लक्ष्मीचंद्र जैन ने सक्रिय व्यवस्थात्मक भूमिका निभाई और उनको बहुत से नेताओं से मिलने तथा उनको सुनने का मौका मिला।

व्यवस्थापक के रूप में

आज़ादी के तुरन्त बाद इसके पहले कि लक्ष्मीचन्द्र किसी सार्थक योजना में जुट पाते विभाजन की त्रासदी सामने आई और वे हडसन लाइन के रिफ्यूजी कैम्प के प्रमुख व्यवस्थापक बन कर विस्थातियों की देखरेख में लग गए, लेकिन उनके दिमाग से भविष्य के काम का खाका मिटा नहीं। वे स्वतन्त्र रूप से काम कर रहे थे लेकिन कोई भी काम उठाने के पहले वे खुद से पूछते, “यहाँ गाँधी जी होते तो क्या करते…’ और उसके उत्तर में उन्हें जो स्वयं सूझता, वह उसे करने लगते। जल्दी ही उन्होंने अच्छे वेतन पर युवा सिविल इंजीनियरों को नियुक्त करके उन्हें पुनर्वास काम सौंपा और खुद लोगों को रोजगार तथा ट्रेनिंग दिलाने के काम में लग गए।

1947 के अन्तिम दिनों में लक्ष्मीचद्न जैन की भेंट एक कैम्प में कमला देवी चट्टोपाध्याय से हुई। वहाँ एक शरणार्थी के प्रश्न ने उन लोगों को चौंका दिया। उनसे उस शरणार्थी ने पूछा, ‘हमारा भविष्य क्या है…?’ लक्ष्मीचंद्र जैन ने उस पल यह एहसास किया कि यह प्रश्न तो उनके दिमाग में कभी नहीं आया था, तभी लक्ष्मीचन्द्र्र तथा कमला देवी ने मिलकर विचार-विमर्श शुरू किया कि इन शरणार्शियों को इन रिफ्यूजी कैम्पों से बाहर सामान्य जीवन जीने की राह कैसे दिखाई जा सकती है?

इण्डियन को-ऑपरेटिव यूनियन की स्थापना

1948 में जैन ने कमला देवी के साथ एक इण्डियन को-आपरेटिव यूनियन की स्थापना की और इस संख्या ने कुछ शरणार्थियों को दिल्ली से कुछ दूर छतरपुर गाँव में एक खुली जमीन पर ला बैठाया कि वह यहाँ पर खेती शुरू करें। इस प्रोजेक्ट को हाथ में लेकर जैन ने हडसन लाइन का रिफ्यूजी कैम्प दूसरों के हवाले किया और छतरपुर आ गए कि वहाँ इन लोगों को खेती के लिए, खाद, बीज तथा अन्य सहायता व सुविधा प्रदान की जा सके। इस प्रक्रिया में पण्डित नेहरू ने भी बहुत सक्रियता दिखाई। जैन तथा कमला देवी की इण्डियन को-आपरेटिव यूनियन को सरकार ने नई दिल्ली के कुटीर उद्योग संस्थान यानि कॉटेज इंडस्ट्रीज इम्पोरियम में बदल दिया। जैन तथा कमला देवी ने इस इम्पोरियम को हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करने का केन्द्र बना दिया। शरणार्थियों को हाथ के काम का कौशल दिया जाने लगा। जैन के इसके बने सामान को ‘सोशल मार्केटिंग’ के जरिये बाज़ार में रखा तथा इस बात की खबर रखते रहे कि कौन सा सामान क्यों बिक रहा है। या क्यों नहीं बिक रहा है। उनकी इस निगरानी के आधार पर इम्पोरियम की कार्यवाही नियंत्रित होने लगी। कारीगर सामान को उसी दृष्टि से बनाने, सुधारने लगे। जैन के पुराने सहयोगी राजकृष्ण ने 1953-1954 में एक सर्वे में पता लगाया कि भारत के हस्तशिल्प के सामान का निर्यात करीब-करीब साठ लाख अमरीकी डॉलर सालाना का है। बाद में तो यह निर्यात उत्तरोत्तर बढ़ता चला गया।

लक्ष्मीचन्द्र जैन तथा कमला देवी चट्टोपाध्याय के सहयोग से चलने वाले इस कॉटेज इम्पोरियम ने बीच में एक नाटकीय घटनाक्रम भी देखा। उन दिनों जयप्रकाश नारायण और विनोबा भावे भूदान यज्ञ में लगे हुए थे। यह वर्ष 1954 की बात है। तभी इनकी मुलाक़ात लक्ष्मीचन्द्र जैन से हुई और वहाँ यह सवाल इनके सामने आया कि इस भूदान यज्ञ में जुटाई गई जमीन का भूमिहीनों के बीच वितरण किस तरह किया जाएगा। लक्ष्मीचन्द्र को यह प्रश्न चुनौती पूर्ण लगा और वह इसी में उलझ गए। लम्बे समय तक वह इस पर काम करते रहे और उसके बाद इन्होंने कमला देवी को यह सूचना भी दे कि वह अब विनोबा के साथ काम करने जाना चाहते हैं। कमला देवी ने चुपचाप इम्पोरियम की चाबियाँ लेकर एक सहयोगी को पकड़ा दी और कहा:

“इम्पोरियम में ताला लगा दो। आज से इम्पोरियम बंद। लक्ष्मीचंद्र जाना चाहते हैं और इनके बिना इम्पोरियम नहीं चलाया जाएगा”

कुछ पल लक्ष्मीचंद्र जैन हतप्रभ खड़े रहे और फिर उनका निर्णय बदल गया। वह वहीं बने रहे और इम्पोरियम चलता रहा।

1968 में लक्ष्मीचंद्र जैन ने एक कंसल्टिंग फर्म भी खड़ी की, जो किसानों तथा कारीगरों की सलाह पर सरकारी तथा गैर सरकारी काम काज में मदद करने लगी। इस तरह से लक्ष्मीचंद्र जैन ने किसानों, कारीगरों, तथा स्त्रियों के समूह तथा सरकारी कमेटियों और बोर्ड के बीच एक सेतु की भूमिका अदा की और इसका लाभ दोनों को मिला।

विवाद


दक्षिण अफ्रीका में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। जैन परमाणु परीक्षणों के विरोधी थे। यह सच है कि नियंत्रण रेखा जैन, जिन्हें इंद्रकुमार गुजराल सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, को 1998 में पीएम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा वापस बुला लिया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा ने कथित तौर पर यह माना था कि लक्ष्मी चंद्र जैन ने भारत के फैसले का प्रभावी ढंग से बचाव नहीं किया था। पोखरण II परीक्षणों का संचालन करते हुए, केपी नायर जैसे पत्रकारों ने तर्क दिया कि जैन इस विचार के खिलाफ थे और उन्होंने दक्षिण भारत सरकार से इसका संवाद किया था। जैन के संस्मरण, हालांकि, एक अलग कहानी बताते हैं। उनके अनुसार, उन्होंने दक्षिण अफ्रीकियों के परीक्षणों का कोई विरोध नहीं जताया था, और यह धारणा दक्षिण अफ्रीका के टीवी नेटवर्क पर उनके द्वारा दिखाई देने के तुरंत बाद गलत तरीके से सामने आई। पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने दावा किया कि परीक्षण के बाद पाकिस्तान के लिए एक बड़ा खतरा था, जैन से पूछा गया कि गांधीवादी के रूप में वह कैसे थे, (उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष किया था और गांधीजी के आदर्शों का पालन किया था, साथ ही साथ 1989 में मैगसेसे पुरस्कार भी जीता था। ), परीक्षणों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।

जैन ने उत्तर दिया कि गांधीवादी या नहीं, “दुनिया में कोई भी एक परमाणु उपकरण के साथ सहज नहीं हो सकता है।” उनके अनुसार, यह यह कथन था जिसने मिश्रा की इच्छा अर्जित की, जिन्होंने महसूस किया कि उन्हें यह नहीं कहना चाहिए था और इसलिए उनके लिए कहा। याद किया जाना। यह तब भी हुआ जब जैन एक ही साक्षात्कार में बहस करने के लिए चले गए कि भारत के लिए परमाणु हथियार होना क्यों आवश्यक था – भारतीय नागरिकों को यह विश्वास दिलाने के लिए कि सरकार उन्हें सुरक्षित रख सकती है।

दिसंबर 2017 में, राजीव मन्त्री ने जैन के खिलाफ आरोप लगाया कि उन्हें उस वर्ष के अंत में एनएएम शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा परमाणु परीक्षणों के दक्षिण अफ्रीका के विरोध के समर्थन में अपने एक लेख में एक प्रमाणित देशद्रोही कहा गया। जैन के बेटे के जवाब में, रिपोर्टर श्रीनिवासन जैन ने मन्त्री को मानहानि का नोटिस भेजा।

पुरस्कार

  • उन्हें लोक सेवा के लिए 1989 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण के लिए चुना गया था, लेकिन परिवार ने पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया क्योंकि वह राजकीय सम्मान की अवधारणा के खिलाफ थे।

निधन

लक्ष्मीचंद्र जैन  का निधन 14 नवंबर 2010 को दिल्ली में हुआ था।

 

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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