लुइस ब्रेल ने नेत्रहीनों के लिये ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। पाँच साल की उम्र में आँख की रोशनी चले जाने के बाद उन्होने हार नहीं मानी। वह ऐसी चीज बनाना चाहते थे, जो उनके जैसे दृष्टिहीन की मदद कर सके। अपने नाम से एक राइटिंग स्टाइल बनाई, जिसमें सिक्स डॉट कोड्स थे। स्क्रिप्ट आगे चलकर ब्रेल लिपि से जानी गई। इसमें बिन्दुओं को जोड़कर अक्षर, अंक और शब्द बनाए जाते है। इस लिपि में पहली किताब 1829 में प्रकाशित हुई थी। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको लुइस ब्रेल की जीवनी – Louis braille Biography Hindi के बारे में बताएगे।
लुइस ब्रेल की जीवनी – Louis braille Biography Hindi
जन्म
लुइस ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में हुआ था। उनके पिता का नाम साइमन रेले ब्रेल था जोकि शाही घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे। उनके परिवार में वे चार भाई-बहन थे, जिसमें लुइस सबसे छोटे थे।
ब्रेल लिपि का विकास
पाँच साल की उम्र में आँख की रोशनी चले जाने के बाद उन्होने हार नहीं मानी। वह ऐसी चीज बनाना चाहते थे, जो उनके जैसे दृष्टिहीन की मदद कर सके। बालक लुई बहुत जल्द ही अपनी स्थिति में रम गये थे। बचपन से ही लुई ब्रेल में गजब की क्षमता थी। हर बात को सीखने के प्रति उनकी जिज्ञासा को देखते हुए, चर्च के पादरी ने लुई ब्रेल का दाखिला पेरिस के अंधविद्यालय में करवा दिया। बचपन से ही लुई ब्रेल की अद्भुत प्रतिभा के सभी कायल थे। उन्होंने विद्यालय में विभिन्न विषयों का अध्ययन किया। लुई ब्रेल की जिन्दगी से तो यही सत्य उजागर होता है कि उनके बचपन के एक्सीडेंट के पीछे ईश्वर का कुछ खास मकसद छुपा हुआ था। 1825 में लुई ब्रेल ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में एक ऐसी लिपि का आविष्कार कर दिया जिसे ब्रेल लिपि कहते हैं। इस लिपि के आविष्कार ने दृष्टिबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी। गणित, भूगोल एवं इतिहास विषयों में प्रवीण लुई की अध्ययन काल में ही फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से मुलाकात हुई थी। उन्होंने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग व सोनोग्राफ़ी के बारे में बताया। ये लिपि उभरी हुई तथा 12 बिंदुओं पर आधारित थी। यहीं से लुई ब्रेल को आइडिया मिला और उन्होने इसमें संशोधन करके 6 बिंदुओं वाली ब्रेल लिपि का इज़ाद कर दिया। प्रखर बुद्धिवान लुई ने इसमें सिर्फ अक्षरों या अंकों को ही नहीं बल्कि सभी चिन्हों को भी प्रर्दशित करने का प्रावधान किया।
ब्रेल अपनी दृष्टिहीनता की वजह से अन्धों के लिये एक ऐसे सिस्टम का निर्माण करना चाहते थे जिससे उन्हें लिखने और पढ़ने में आसानी हो और आसानी से वे एक-दूजे से बात कर सके। “बातचीत करना मतलब एक-दूजे के ज्ञान हो समझना ही है और दृष्टिहीन लोगों के लिये ये बहुत महत्वपूर्ण है और इस बात को हम नजर अंदाज़ नहीं कर सकते। उनके अनुसार विश्व में अन्धों को भी उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए जितना साधारण लोगों को दिया जाता है।” लेकिन जीते जी उनके इस आविष्कार का महत्त्व लोगों को पता नहीं चला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद केवल पेरिस ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिये उनका आविष्कार सहायक साबित हुआ। अपने नाम से एक राइटिंग स्टाइल बनाई, जिसमें सिक्स डॉट कोड्स थे। स्क्रिप्ट आगे चलकर ब्रेल लिपि से जानी गई। इसमें बिन्दुओं को जोड़कर अक्षर, अंक और शब्द बनाए जाते है। इस लिपि में पहली किताब 1829 में प्रकाशित हुई थी।
पुरस्कार
- भारत सरकार ने सन 2009 में लुई ब्रेल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया है।
- लुई ब्रेल की मृत्यु के 100 बर्ष के बाद फ्रांस ने 20 जून 1952 का दिन उनके सम्मान का दिन निर्धारित किया।
- इस दिन फ्रांस सरकार ने लुई ब्रेल के 100 वर्ष पूर्व दफनाये गए उनके शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ निकला गया। इस दिन पूरे राष्ट्र ने लुई ब्रेल के पार्थिव शरीर के सामने अपनी ग़लती के लिए माफी मांगी। लुई ब्रेल के शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर पूरे राजकीय सम्मान से दोबारा दफनाया गया।
मृत्यु
1851 में उनकी तबियत बिगड़ने लगी और 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।