माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी – Madhav Sadashiv Golwalkar Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी – Madhav Sadashiv Golwalkar Biography Hindi के बारे में बताएगे।

माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी – Madhav Sadashiv Golwalkar Biography Hindi

माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी
माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी

(English – Madhav Sadashiv Golwalkar)माधव सदाशिव गोलवलकर   एक राष्ट्रीय स्वयंसेव संघ के द्वितीय सरसंघचालक  तथा विचारक थे।

1927 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एमएससी की।

1932 में उनकी मुलाक़ात संघ संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार से हुई।

रामकृष्ण मिशन के स्वामी अखंडानंद की सेवा में दो साल बिताए।

1966 में बंच ऑफ थोट्स पुस्तक आई।

1940 से 1973 तक संघ के सरसंघचालक रहे और इसे संस्थागत शक्ति बनाने में बड़ा योगदान रहा।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम माधव सदाशिव गोलवलकर, गुरूजी
पूरा नाम माधवराव सदाशिव गोलवलकर
जन्म 19 फरवरी 190
जन्म स्थान रामटेक, महाराष्ट्र, भारत
पिता का नाम सदाशिव राव
माता का नाम लक्ष्मीबाई
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू

जन्म

Madhav Sadashiv Golwalkar का जन्म 19 फरवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था।

उनके पिता का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य ‘भाऊ जी’ तथा माता का श्रीमती लक्ष्मीबाई उपाख्य ‘ताई’ था।

उनका बचपन में नाम माधव रखा गया पर परिवार में वे मधु के नाम से ही पुकारे जाते थे।

पिता सदाशिव राव प्रारम्भ में डाक-तार विभाग में कार्यरत थे परन्तु बाद में 1908 में उनकी नियुक्ति शिक्षा
विभाग में अध्यापक पद पर हो गयी।

शिक्षा – माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी

सिर्फ 2 वर्ष की उम्र में ही गुरूजी की शिक्षा प्रारंभ उनके पिताजी द्वारा प्रारंभ हो गयी थी।

वे उन्हें जो भी पढ़ाते थे उसे वे कंठस्थ कर लेते थे।

उन्होने 1919 में हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा में विशेष योग्यता के साथ छात्रवृत्ति प्राप्त की।

1922 में गुरूजी ने मैट्रिक की परीक्षा जुबली हाई स्कूल से पास की।

उसके बाद 1924 में नागपुर के ‘हिस्लाप कॉलेज‘ से विज्ञान विषय में इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास की।

बचपन से ही उनमें कुशाग्र बुद्धि, ज्ञान की लालसा, असामान्य स्मरण शक्ति जैसे गुण थे।

इसके साथ ही वे विद्यार्थी जीवन में उन्होंने बांसुरी और सितार वादन में भी अच्छी प्रवीणता हासिल कर ली थी।

1926 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने बी. एस. सी और 1928 में उन्होने एम. एस. सी की परीक्षा
प्राणी शास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की।

करियर

प्राणी शास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण करने के बाद वे प्राणी शास्त्र विषय में “मत्स्य जीवन” पर शोध कार्य के लिए मद्रास के मत्स्यालय से जुड गए।लेकिन एक वर्ष बाद ही आर्थिक तंगी के कारण गुरूजी को अपना शोध कार्य अधुरा छोड़कर अप्रैल 1929 में नागपुर वापस लौटना पड़ा।इसी बीच दो वर्ष बाद 1931 नागपुर में उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से निर्देशक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव मिला।

उन्होंने यह पद स्वीकार कर लिया। यह एक अस्थाई नियुक्ति थी।

गुरूजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रथम बार बनारस में संपर्क में आये।

अपने अध्यापन के कारण वे शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए और छात्र उन्हें गुरूजी कहने लगे।उनके इन्ही गुणों के कारण भैयाजी दाणी ने संघ-कार्य तथा संगठन के लिए उनसे अधिकाधिक लाभ उठाने का प्रयास भी किया।

जिसके बाद गुरूजी भी शाखा जाने लगे और शाखा के संघचालक भी बने।

गुरुजी के जीवन में एक नए मोड़ का आरम्भ हो गया।

डॉ. हेडगेवार के सानिध्य में उन्होंने एक अत्यंत प्रेरणादायक राष्ट्र समर्पित व्यक्तित्व को देखा।

उन्होने 1938 के बाद संघ कार्य को ही अपना जीवन कार्य मान लिया.

1939 में गुरूजी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का सरकार्यवाह बनाया गया था।

1940 में डॉ. हेडगेवार का ज्वर बढता ही चला गया और अपने जीवन का अंत समय जानकर उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने गुरूजी को पास बुलाया और कहा “अब आप ही संघ कार्य संभाले”. और 21 जून 1940 को डॉ हेडगेवार का स्वर्गवास हो गया.

इस तरह गुरूजी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसंघचालक का दायित्व मिला।

विचार – माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी

  • अनुशासन पर विचार – मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महान कार्य होने जा रहा है।
  • निर्भयता/निडरता पर विचार – मनुष्य के लिए यह कदाचित अशोभनीय है कि वह मनुष्य- निर्मित संकटों से भयभीत रहे।
  • आत्मविश्वास पर विचार – मनुष्य के आत्मविश्वास में और अहंकार में अंतर करना कई बार कठिन होता है।
  • घृणा पर विचार – मानव के हृदय में यदि यह भाव आ जाय कि विश्व में सब-कुछ भगवत्स्वरूप है तो घृणा का भाव स्वयमेव ही लुप्त हो जाता है।
  • जीवन पर विचार – हमारी मुख्य समस्या है – जीवन के शुद्ध दृष्टिकोण का अभाव और इसी के कारण शेष समस्याएँ प्रयास करने पर भी नहीं सुलझ पातीं।
  • स्वतन्त्रता/स्वाधीनता पर विचार – स्वतन्त्रता तो उसी को कहेंगे जिसके अस्तित्व में आने पर हम अपनी आत्मा का, राष्ट्रीय आत्मा का दर्शन करने में तथा स्वयं को व्यक्त करने में सामर्थ्यवान हों।
  • सेवा पर विचार – सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति।
  • प्रगति पर विचार – इस बात से कभी वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती कि हम वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त किये बिना अंधों की भांति इधर-उधर भटकते फिरें।
  • भारत/देश पर विचार – भारत – भूमि इतनी पावन है कि अखिल विश्व में दिखाई देनेवाला सत तत्व यहीं अनुभूत किया जाता है, अन्यत्र नहीं।
  • शक्ति पर विचार – सच्ची शक्ति उसे कहते हैं जिसमें अच्छे गुण, शील, विनम्रता, पवित्रता, परोपकार की प्रेरणा तथा जन –जन के प्रति प्रेम भरा हो. मात्र शारीरिक शक्ति ही शक्ति नहीं कहलाती।
  • समाज पर विचार – सेवाएँ अपने चारों ओर परिवेष्टित समाज के प्रति भी अर्पित करनी चाहिए.
  • सेवा पर विचार – सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति।

योगदान

30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के गलत आरोप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तत्कालीन सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया।यह प्रतिबंध 4 फरवरी को लगाया गया था। तब गोलवलकर ने इस घटना की निंदा की थी लेकिन फिर भी गुरूजी और देशभर के स्वयंसेवकों की गिरफ़्तारी हुई। गुरूजी ने पत्रिकाओं के मध्यम से आह्वान किया कि संघ पर आरोप सिद्ध करो या तो फिर प्रतिबंध हटाओ।

26 फरवरी 1948 को देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने अपने पत्र में लिखा था “गांधी हत्या के काण्ड में मैंने स्वयं अपना ध्यान लगाकर पूरी जानकारी प्राप्त की है।उससे जुड़े हुए सभी अपराधी लोग पकड़ में आ गए हैं। उनमें एक भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नहीं है.”

9 दिसम्बर 1948 को सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत हुई. जिसमे 5 हजार बाल स्वयंसेवको ने भाग लिया और
77090 स्वयंसेवकों ने विभिन्न जेलों को भर दिया।इसके बाद संघ को लिखित संविधान बनाने का आदेश दे कर प्रतिबन्ध हटा
लिया गया और अब गांधी हत्या का इसमें जिक्र तक नहीं हुआ।

गुरुजी के सरसंघचालक[ रहते संघ को अत्यधिक विस्तार मिला।

मृत्यु – माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी

Madhav Sadashiv Golwalkar की मृत्यु 5 जून 1973 में नागपुर, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था।

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