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महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी – Mahadev Govind Ranade Biography

आज इस आर्टिकल में हम आपको महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी – Mahadev Govind Ranade Biography Hindi के बारे में बताएगे।

महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी – Mahadev Govind Ranade Biography Hindi

Mahadev Govind Ranade महाराष्ट्र के महान विद्वान, बॉम्बे हाईकोर्ट के जज और समाज सुधारक थे।

वे बॉम्बे यूनिवर्सिटी के पहले बैच के छात्र रहे। 1862 में बीए और 1866 में उन्होने एलएलबी की।

1871 में वे प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट बने। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में मदद की।

प्रार्थना समाज, पुना सार्वजनिक सभा, अहमदनगर एजुकेशन सोसायटी के सह संस्थापक रहे। उन्होने जाती प्रथा, छुआछूत, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह जैसे कई मुद्दों पर आवाज उठाई।

जन्म

महादेव गोविंद रानाडे का जन्म 18 जनवरी 1842 को नासिक जिले के निपाड में हुआ था।

उनके पिता का नाम ‘गोविंद अमृत रानाडे’ था।

शिक्षा – महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी

Mahadev Govind Ranade की शिक्षा मुंबई के एल्फिन्स्टोन कॉलेज में चौदह वर्ष की आयु में आरम्भ हुई थी।

वे बॉम्बे यूनिवर्सिटी के पहले बैच के छात्र रहे।

1862 में बीए और 1866 में उन्होने एलएलबी की।

धार्मिक-सामाजिक सुधारक

उन्होने मित्रों डॉ॰अत्माराम पांडुरंग, बाल मंगेश वाग्ले एवं वामन अबाजी मोदक के संग, राणाडे ने प्रार्थना-समाज की स्थापना की, जो कि ब्रह्मो समाज से प्रेरित एक हिन्दूवादी आंदोलन था। यह प्रकाशित आस्तिकता के सिद्धांतों पर था, जो प्राचीन वेदों पर आधारित था। प्रार्थना समाज महाराष्ट्र में केशव चंद्र सेन ने आरम्भ किया था, जो एक दृढ़ ब्रह्मसमाजी थे।

यह मूलतः महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार लाने हेतु निष्ठ था। राणाडे सामाजिक सम्मेलन आंदोलन के भी संस्थापक थे, जिसे उन्होंने मृत्यु पर्यन्त समर्थन दिया, जिसके द्वारा उन्होंने समाज सुधार, जैसे बाल विवाह, विधवा मुंडन, विवाह के आडम्बरों पर भारी आर्थिक व्यय, सागरपार यात्रा पर जातीय प्रतिबंध इत्यादि का विरोध किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा पर पूरा जोर दिया था।

राजनीतिक करियर

महादेव गोविंद रानाडे ने ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का समर्थन किया था और 1885 ई. के उसके प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग भी लिया। राजनीतिक सम्मेलनों के साथ सामाजिक सम्मेलनों के आयोजन का श्रेय उन्हीं को है। वे मानते थे कि मनुष्य की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक प्रगति एक दूसरे पर आश्रित है।

अत: ऐसा व्यापक सुधारवादी आंदोलन होना चाहिए, जो मनुष्य की चतुर्मुखी उन्नति में सहायक हो। वे सामाजिक सुधार के लिए केवल पुरानी रूढ़ियों को तोड़ना पर्याप्त नहीं मानते थे। उनका कहना था कि रचनात्मक कार्य से ही यह संभव हो सकता है। वे स्वदेशी के समर्थक थे और देश में निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर बल देते थे।

देश की एकता उनके लिए सर्वोपरी थी। उन्होंने कहा था कि- “प्रत्येक भारतवासी को यह समझना चाहिए कि पहले मैं भारतीय हूँ और बाद में हिन्दू, ईसाई, पारसी, मुसलमान आदि कुछ और।” वे प्रार्थना समाज, पुना सार्वजनिक सभा, अहमदनगर एजुकेशन सोसायटी के सह संस्थापक रहे। उन्होने जाती प्रथा, छुआछूत, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, विधवा विवाह जैसे कई मुद्दों पर आवाज उठाई।

रचनाएँ

रानाडे प्रकांड विद्वान् थे। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं-

मृत्यु – महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी

Mahadev Govind Ranade की मृत्यु 16 जनवरी 1901 में हुआ।

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