आज इस आर्टिकल में हम आपको महाश्वेता देवी की जीवनी – Mahashweta Devi Biography Hindi के बारे में बताएगे।
महाश्वेता देवी की जीवनी – Mahashweta Devi Biography Hindi
महाश्वेता देवी सुप्रसिद्ध लेखिका थी। उनका पहली रचना ‘झाँसी की रानी’ 1956 में प्रकाशित हुआ।
उन्होने 100 से भी ज्यादा उपन्यास और लघु कथाएँ लिखी।
माओवादी विद्रोह, गरीबों और आदिवासियों के बारे में लिखा। एक हजार चौरासी की माँ उनकी चर्चित कृति है।
उन्हे पद्मविभूषण, पद्मश्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ और रमन मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बंगाली में लिखी उनकी किताबों का अंग्रेजी, जापानी , फ्रेंच और कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ।
जन्म
महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1926 को ब्रिटिश भारत के ढाका मे हुआ था।
उनके पिता का नाम मनीष घटक तथा उनकी माता का नाम धरित्री देवी था।
उनके पिता मनीष घटक ख्याति प्राप्त कवि और साहित्यकार थे।
माँ धरित्री देवी भी साहित्य की गंभीर अध्येता थीं। वे समाज सेवा में भी संलग्नप रहती थीं।
शिक्षा
उन्होंने ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’, शांतिनिकेतन से बी. ए. अंग्रेज़ी विषय के साथ किया। फिर ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ से एम. ए. भी अंग्रेज़ी में किया। महाश्वेता देवी ने अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त की थी।
इसके बाद एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में उन्होंने अपना जीवन प्रारम्भ किया। इसके तुरंत बाद ही कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी व्याख्याता के रूप में आपने नौकरी प्राप्त कर ली। 1984 में उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली।
करियर – महाश्वेता देवी की जीवनी
उनका पहली रचना ‘झाँसी की रानी’ 1956 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उनका उपन्यास ‘नाती’ 1957 में छपा। वह कविता से शुरू कर कहानी और उपन्यास जगत में आईं और छा गईं।
उन्होंने सौ के करीब उपन्यास और दर्जनों कहानी संग्रह लिखे। उनकी प्रमुख कृतियों में अग्निगर्भ, मातृछवि, नटी, जंगल के दावेदार, मीलू के लिए, मास्टर साहब शामिल है। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उनका उपन्यास ‘अरण्येर अधिकार’ आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की गाथा है। उपन्यास ‘अग्निगर्भ’ में नक्सलबाड़ी आदिवासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में लिखी गई चार लंबी कहानियां शामिल हैं।
महाश्वेता देवी की कई रचनाओं भारत की अधिसूचित जनजातियों, आदिवासी, दलित, शोषित, वंचित समुदाय के स्वर बहुत प्रभावी ढंग से उभरे हैं।
उनकी कई रचनाओं पर फ़िल्म भी बनी, जिनमें उपन्यास ‘रुदाली’ पर कल्पना लाज़मी ने ‘रुदाली’ तथा ‘हजार चौरासी की मां’ पर इसी नाम से फिल्मकार गोविंद निहलानी ने फ़िल्म बनाई। उन्होने 100 से भी ज्यादा उपन्यास और लघु कथाएँ लिखी। माओवादी विद्रोह, गरीबों और आदिवासियों के बारे में लिखा। हजार चौरासी की माँ उनकी चर्चित कृति है।
रचनाएँ
महाश्वेता देवी ने विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं आदि का योगदान दिया। उनका प्रथम उपन्यास ‘नाती’ 1957 में प्रकाशित किया गया था। ‘झाँसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है, जो 1956 में प्रकाशित हुई।
उन्होंने स्वयं ही अपने शब्दों में कहा था कि- “इसको लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।” इस पुस्तक को महाश्वेता जी ने कोलकाता में बैठकर नहीं, बल्कि सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर और ललितपुर के जंगलों; साथ ही झाँसी, ग्वालियर और कालपी में घटित तमाम घटनाएँ यानी 1857-1858 में इतिहास के मंच पर जो कुछ भी हुआ, सबको साथ लेकर लिखा।
अपनी नायिका के अलावा लेखिका ने क्रांति के तमाम अग्रदूतों और यहाँ तक कि अंग्रेज़ अफ़सर तक के साथ न्याय करने का प्रयास किया है। महाश्वेता जी कहती थीं- “पहले मेरी मूल विधा कविता थी, अब कहानी और उपन्यास हैं।” उनकी कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियों में ‘अग्निगर्भ’, ‘जंगल के दावेदार’ और ‘1084 की माँ’, ‘माहेश्वर’ और ‘ग्राम बांग्ला’ आदि हैं।
पिछले चालीस वर्षों में उनकी छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह प्रकाशित किये जा चुके हैं और सौ उपन्यासों के क़रीब प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कृतियों पर फिल्में भी बनीं। 1968 में ‘संघर्ष’, 1993 में ‘रूदाली’, 1998 में ‘एक हजार चौरासी की माँ’, 2006 में ‘माटी माई’। महाश्वेता देवी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
लघुकथाएँ
- मीलू के लिए
- मास्टर साब
कहानियाँ – महाश्वेता देवी की जीवनी
- स्वाहा
- रिपोर्टर
- वान्टेड
उपन्यास
नटी | अग्निगर्भ | झाँसी की रानी |
मर्डरर की माँ | 1084 की माँ | मातृछवि |
जली थी अग्निशिखा | जकड़न | आत्मकथा |
उम्रकैद | अक्लांत कौरव |
आलेख
कृष्ण द्वादशी | अमृत संचय | घहराती घटाएँ | भारत में बंधुआ मज़दूर |
उन्तीसवीं धारा का आरोपी | ग्राम बांग्ला | जंगल के दावेदार | आदिवासी कथा |
यात्रा संस्मरण
- श्री श्री गणेश महिमा
- ईंट के ऊपर ईंट
नाटक
- टेरोडैक्टिल
- दौलति
पुरस्कार – महाश्वेता देवी की जीवनी
महाश्वेता देवी को 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री और 1997 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 2006 में पद्म विभूषण और 2011 में बंग बिभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
वह ऐसी पहली लेखिका थीं, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीकी अश्वेत आंदोलन के महान नेता नेल्सन मंडेला के हाथों
ज्ञानपीठ पुरस्कार ग्रहण किया।
इस पुरस्कार में मिले 5 लाख रुपए उन्होंने बंगाल की पुरुलिया आदिवासी समिति को दे दिया था।
मृत्यु
महाश्वेता देवी की मृत्यु 28 जुलाई 2016 को हुई थी।
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