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मेजर ध्यानचंद की जीवनी – Major Dhyanchand Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको मेजर ध्यानचंद की जीवनी – Major Dhyanchand Biography Hindi के बारे में बताएगे।

मेजर ध्यानचंद की जीवनी – Major Dhyanchand Biography Hindi

मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी और कप्तान थे।
उन्हें दुनिया के महान हॉकी प्लेयरों में से एक माना जाता है।

मेजर ध्यानचंद को उनके अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है।
मेजर ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था।

उनकी जन्म तिथि को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ भी कहा जाता है।
उन्होंने अपने खेल जीवन में एक हजार से ज्यादा गोल दागे हैं।

कहा जाता है कि जब वे हॉकी के मैदान में खेलने के लिए उतरते थे, तो गेंद मानो उनकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें भारतीय सम्मान पदमभूषण से सम्मानित किया गया था।

इसके अलावा कई प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हें ‘भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की । लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया।

जन्म

ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को  इलाहाबाद में हुआ था

इनके पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम शारदा सिंह था इनका जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था।

इनके पिता सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे और वे आर्मी के लिए ही हो के खेलते थे।

मेजर ध्यानचंद के दो भाई और थे जिनका नाम मूल सिंह और रूप सिंह था।

इनका कद 5 फीट 7 इंच था।

शिक्षा – मेजर ध्यानचंद की जीवनी

महारानी लक्ष्मी बाई गवर्नमेंट कॉलेज से साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में वे 1922 में दिल्ली के ‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हुए।

‘प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट’ में भर्ती हुए उस समय तक उनकी  हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी।

ध्यानचंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी को जाता है। मेजर तिवारी हॉकी प्रेमी और एक खिलाड़ी थे।

उनकी देखरेख में ही ध्यान चंद ने हॉकी खेलना शुरू किया और देखते ही देखते हैं दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए। 1927 मे लांस नायक बना दिए गए।

1932 में लॉस ऐनज्ल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। 1937 में जब भारतीय हॉकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। द्वितीय युद्ध आरंभ हुआ था तो 1943  लेफ़्टिनेट नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर 1948 में कप्तान बना दिए गए।

केवल हॉकी खेल के कारण उनकी सेना में पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हे ‘ वायसराय का कमीशन’ मिला और वे सूबेदार बना दिए गए। इसके बाद में वे एक के बाद दूसरे पदों पर उन्नति करते चले गए और बाद में उन्हे मेजर बना दिया गया ।

ध्यानचंद का करियर

ध्यानचंद के खेल से जुड़े कई ऐसे पहलू है जहां पर उनकी प्रतिभा को देखा गया  था। एक मैच में ध्यान ध्यानचंद की टीम दो गोल से हार रही थी तो उन्होंने आखिरी 4 मिनट में 3 गोल मार कर टीम को जिताया था।

यह पंजाब टूर्नामेंट झेलम में हुआ था। इसके बाद में ही ध्यानचंद को हॉकी विजार्ड कहा जाने लगा।

1935 में ध्यान चंद ने पहला नेशनल हॉकी टूर्नामेंट गेम खेला।

इस मैच में विज , उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल, राजपूताना, और मध्य भारत ने भी भाग लिया था।

इस टूर्नामेंट में उनकी प्रतिभा को देखते हुए ही उनका सिलेक्शन भारत के इंटरनेशनल हॉकी टीम में किया गया था।

1926 में न्यूजीलैंड में होने वाले टूर्नामेंट के लिए ध्यान चंद को चुना गया।

यहां एक मैच के दौरान भारतीय टीम ने 20 गोल किए थे जिनमें से 10 गोल ध्यानचंद ने किए थे।

इस टूर्नामेंट में भारत ने 21 मैच खेले थे जिनमें से 18 में भारत को जीत मिल 1 एक में हार गए थे तथा 2 मैच ड्रा हो गए थे।

भारतीय टीम ने इस पूरी टूर्नामेंट के दौरान 192 गोल किए थे जिसमें से 100 गोल ध्यानचंद ने मारे थे।

न्यूजीलैंड से लौटने के बाद ध्यान चंद को आर्मी मे लांस नायक बना दिया गया था।

1927 में लंदन फोल्कस्टोन फेस्टिवल में भारत ने 10 मैचों में से 72 गोल किए थे जिसमें 36 गोल ध्यानचंद ने किए थे।

स्वर्ण पदक

जर्मनी के महान हिटलर ने ध्यानचंद के प्रतिभा को देखते हुए ध्यानचंद को जर्मन आर्मी में हाई पोस्ट पर आने का ऑफर दिया,

लेकिन ध्यानचंद को भारत के प्रति बहुत प्रेम था और उन्होंने इस ऑफर को बड़े ही आदर के साथ मना कर दिया।

1948 तक ध्यानचंद अंतरराष्ट्रीय हॉकी में खेलते रहे। इसके बाद 42 साल की उम्र में रिटायरमेंट ले ली।

रिटायरमेंट लेने के बाद भी आर्मी में होने वाली हॉकी मैच में खेलते रहे 1956 तक उन्होंने हॉकी स्टिक को अपने हाथों में थामे रखा था।

अवॉर्ड – मेजर ध्यानचंद की जीवनी

मृत्यु

उन्हें लीवर का कैंसर हो गया था, मेजर ध्यानचंद को दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया

3 दिसंबर 1979 को उनका देहांत हो गया था।

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