मंगल पांडे भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इंडिया कंपनी की ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री सिपाही थे, उस समय अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी का करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानि उन्हे आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको मंगल पांडे की जीवनी- Mangal Pande Biography Hindi के बारे में बताएंगे
मंगल पांडे की जीवनी- Mangal Pande Biography Hindi
जन्म
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को नगवा, बलिया, भारत में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका जन्म स्थान फैजाबाद के गांव सुरहुरपुर है। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था
करियर
मंगल पांडे 1849 में 22 साल की उम्र में ही ब्रिटिश इंडिया कंपनी के सेना में शामिल हो गए थे
1857 के विद्रोह में योगदान
1857 का विद्रोह एक बंदूक की वजह से शुरू हुआ था सिपाहियों का एक पैटर्न 1853 में एनफील्ड पैटर्न को 1803 में एनफील्ड बंदूक दी गई थी जो कि एनफील्ड की बंदूक थी और पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लाई जा रही ब्राउन बेसन के मुकाबले में ज्यादा शक्तिशाली और अचूक थी। नई बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली का प्रयोग किया गया था लेकिन बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी ही थी। नई बंदूक में गोली या भरने के लिए कारतूस को दांत से काटना पड़ता था और उसमें भरे हुए बारूद को बंदूक की नली में भरकर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो उसे पानी की सीलन से बचाती थी लेकिन सिपाहियों के बीच में अफवाह फैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सूअर और गाय के मांस से बनाई गई है।
19 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कोलकाता में के समीप मंगल पांडे जो दुगवा रहीमपुर के रहने वाले थे. रेजिमेंट के अवसर लेफ्टिनेंट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया गया। जनरल जोन हेयरसेये के अनुसार मंगल पांडे किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में था जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया पर जमीदार ने इस बात से मना कर दिया। एक सिपाही शेख पलटू को छोड़कर सारी रेजिमेंट ने मंगल पांडे को पकड़ गिरफ्तार करने के लिए मना कर दिया। मंगल पांडे ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिए कहा पर किसी उनका कहा ना मानने पर उन्होंने अपने बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। लेकिन वे इस प्रयास में केवल घायल हुए। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को ने फांसी दे दी गई।
विद्रोह का परिणाम
मंगल पांडे द्वारा लगाई गई विद्रोह की आग बुझी नहीं बल्कि 1 महीने बाद ही 20 मई 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत कर दी गई। यह क्रांति देखते-देखते ही पूरे भारत में फैल गई जिससे अंग्रेजो को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज करना इतना आसान नहीं होगा जितना कि वे समझते थे। इसके बाद ही हिंदुस्तान में 34735 अंग्रेजी कानून यहां की जनता पर लागू किए गए ताकि मंगल पांडे सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
मृत्यु
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
सम्मान
मंगल पांडे के भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा 1984 में उनके नाम से एक डाक टिकट जारी की गई।