मिर्जा गालिब मुगल काल के उर्दू भाषा और फारसी भाषा के कवि थे। वो उर्दू भाषा के महान शायर थे। वे उर्दू भाषा के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली कवियों में से एक हैं। तो आइए आज इस मिर्जा गालिब की जीवनी – Mirza Ghalib Biography Hindi के बारे में बताएगे।
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मिर्जा गालिब की जीवनी – Mirza Ghalib Biography Hindi
जन्म
मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 में आगरा के काला महल में हुआ थे। उनके पिता का नाम मिर्जा अब्दुल्ला बेग खान था और उन्होने लखनऊ के नवाब के यहाँ लाहौर, दिल्ली और जयपुर काम किया। उनके दादाजी का नाम उनके दादाजी, मिर्जा कूकन बेग खान था। उनके पिता मिर्ज़ा अब्दुल्ला बेग खान की 1803 में अलवर में हुई लड़ाई में मृत्यु हो गई। 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकी तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले में उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।
शिक्षा
ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मेंस्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने 11 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी में गद्य तथा पद्य लिखना आरम्भ कर दिया था। उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू में पारम्परिक भक्ति और सौन्दर्य रस पर रचनाये लिखी जो गजल में लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में पारंपरिक गीत काव्य की रहस्यमय-रोमांटिक शैली में सबसे व्यापक रूप से लिखा और यह गजल के रूप में जाना जाता है।
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खिताब
1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने मिर्ज़ा गालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के खिताब से नवाज़ा। इसके बाद में उन्हे मिर्ज़ा नोशा का खिताब भी मिला। वे शहंशाह के दरबार में एक महत्वपूर्ण दरबारी थे। उन्हे बहादुर शाह ज़फर द्वितीय के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार फ़क्र-उद-दिन मिर्ज़ा का शिक्षक भी नियुक्त किया गया। वे एक समय में मुगल दरबार के शाही इतिहासविद भी थे।
रचनाएँ
- अज़ मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
- अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ
- कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
- कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए
- कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
- कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये
- क्या तंग हम सितमज़दगां का जहान है
- ख़ुश हो ऐ बख़्त कि है आज तेरे सर सेहरा
- गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
- गरम-ए-फ़रयाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
- अफ़सोस कि दनदां का किया रिज़क़ फ़लक ने
- ‘असद’ हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
- आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
- आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़न-ए सदाए आब है
- आमों की तारीफ़ में
- उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब
- क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
- गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
- घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
- चशम-ए-ख़ूबां ख़ामुशी में भी नवा-परदाज़ है
- जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
- ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
- ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
- ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम
- जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआ
- ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री ‘ग़ालिब’
- जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
- तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
- ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
- तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
- तुम न आए तो क्या सहर न हुई
- तेरे वादे पर जिये हम
- दिल लगा कर लग गया उन को भी तनहा बैठना
- देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे
- न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सबज़-ए-ख़त से
- नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
- नवेदे-अम्न है बेदादे दोस्त जाँ के लिए
- नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
- नुक्तह-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बने
- पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
- फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
- फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
- फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब
- फुटकर शेर
- ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
- बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
- बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला
- बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या
- बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
- मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
- मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें ‘ग़ालिब’
- मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
- ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
- रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
- रहा गर कोई ता क़यामत सलामत
- लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी
- लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
- लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं
- वह शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहां
- वह हर एक बात पर कहना कि यों होता तो क्या होता
- वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार
- वुसअत-स-ईए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
- शुमार-ए सुबह मरग़ूब-ए बुत-ए-मुश्किल पसंद आया
- सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
- सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
- सियाहि जैसे गिर जावे दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
- हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
- हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझसे
- हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुशकिल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
- हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
- हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
- हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
- हुश्न-ए-बेपरवा ख़रीदार-ए-मता-ए-जलवा है
- है बज़्म-ए-बुतां में सुख़न आज़ुर्दा लबों से
पुस्तकें
- Diwan-e-Ghalib
- Ghazals of Ghalib
- Love sonnets of Ghalib
- Selected Lyrics and Letters Mirza Ghalib
- Ghalib: Selected Poems and Letters
- Ghalib 1797-1869: Life and Letters Mirza Ghalib
- Selected Poetry of Ghalib
- The famous Ghalib
- Digital Version of Mirza Asadullah Khan Ghalib’s Original Manuscript Divan Nuskha-E-Hamidiya: Penned by Mufti Hafeezuddin In 1821
- Ghālib in Translation Mirza Ghalib
- The lightning should have fallen on Ghalib Mirza Ghalib -1998
- Ghalib, his life and poetry
- Persian poetry of Mirza Ghalib
- The Seeing Eye: Selections from the Urdu and Persian Ghazals of Ghalib Mirza Ghalib
- Selections from Diwane-e-Ghalib: selected poetry of Mirza Asadullah Khan Ghalib
मृत्यु
15 फरवरी 1869 को उनकी मृत्यु हो गई।