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मोहम्मद रफी की जीवनी – Mohammad Rafi Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको मोहम्मद रफी की जीवनी – Mohammad Rafi Biography Hindi के बारे में बताएंगे।

मोहम्मद रफी की जीवनी – Mohammad Rafi Biography Hindi

मोहम्मद रफी की जीवनी
मोहम्मद रफी की जीवनी

Mohammad Rafi महान पार्श्व गायकार थे। उन्होने 13 साल की उम्र में लाहौर में अपनी पहली प्रस्तुति दी।

1945 में फिल्म गाँव की गौरी से बॉलीवुड में पदार्पण किया।

एक सर्वे में उन्हे हिन्दी सिनेमा की महानतम आवाज चुना  गया।

40 साल के संगीत जीवन में कव्वाली, गजल, भजन, शास्त्रीय के साथ रोमांटिक और दुख भरे गीतों को अपनी पूरकशिश आवाज से सजाया।

इसके साथ ही उन्होने 25 हज़ार से अधिक गाने रिकॉर्ड करवाए।

1967 में उन्हे पद्मश्री, छ्ह फिल्मफेयर और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हुए।

जन्म

मुहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर ज़िला, पंजाब में हुआ था।

रफ़ी ने कम उम्र से ही संगीत में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी।

बचपन में ही उनका परिवार ग्राम से लाहौर आ गया था।

रफ़ी के बड़े भाई उनके लिए प्रेरणा के प्रमुख स्रोत थे।

रफ़ी के बड़े भाई की अमृतसर में नाई की दुकान थी और रफ़ी बचपन में इसी दुकान पर आकर बैठते थे।

उनकी दुकान पर एक फ़कीर रोज आकर सूफ़ी गाने सुनाता था।

जब वे 7 साल के थे तो उन्हे उस फकीर की आवाज इतनी भाने लगी कि वे दिन भर उस फकीर का पीछा कर उसके गाए गीत सुना करते थे। जब फकीर अपना गाना बंद कर खाना खाने या आराम करने चला जाता तो रफ़ी उसकी नकल कर गाने की कोशिश किया करते थे।

वे उस फकीर के गाए गीत उसी की आवाज़ में गाने में इतने मशगूल हो जाते थे कि उनको पता ही नहीं चलता था कि उनके आसपास लोगों की भीड़ खड़ी हो गई है। कोई जब उनकी दुकान में बाल कटाने आता तो सात साल के मुहम्मद रफ़ी से एक गाने की फरमाईश जरुर करता।

मुहम्मद रफ़ी ने बेगम विक़लिस से विवाह किया था, और उनकी सात संताने हुईं, जिनमें चार बेटे तथा तीन बेटियाँ हैं।

करियर – मोहम्मद रफी की जीवनी

उन्होने 13 साल की उम्र में लाहौर में अपनी पहली प्रस्तुति दी जो उनके जीवन में महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। श्रोताओं में प्रसिद्ध संगीतकार श्याम सुन्दर भी थे, जिन्होंने रफ़ी की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें फ़िल्मों में गाने के लिए बंबई (वर्तमान मुंबई) बुलाया।

मोहम्मद रफ़ी ने अपना पहला गाना पंजाबी फ़िल्म ‘गुल बलोच’ के लिए गाया। 1945 में फिल्म गाँव की गौरी से बॉलीवुड में पदार्पण किया। इसके बाद उन्होने ‘समाज को बदल डालो’ (1947) और ‘जुगनू’ (1947) जैसी फ़िल्मों के लिए गाए।

संगीतकार नौशाद ने होनहार गायक की क्षमता को पहचाना और फ़िल्म ‘अनमोल घड़ी’ (1946) में रफ़ी से पहली बार एकल गाना ‘तेरा खिलौना टूटा बालक’ और फिर फ़िल्म ‘दिल्लगी’ (1949) में ‘इस दुनिया में आए दिलवालों’ गाना गवाया, जो बहुत सफल सिद्ध हुए।

इसके बाद के वर्षों में रफ़ी की माँग बेहद बढ़ गई। वह तत्कालीन शीर्ष सितारों की सुनहारी आवाज़ थे। उनका महानतम गुण पर्दे पर उनके गाने पर होंठ हिलाने वाले अभिनेता के व्यक्तित्व के अनुरूप अपनी आवाज़ को ढ़ालने की क्षमता थी।

इस प्रकार ‘लीडर’ (1964) में ‘तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करू’ गाते समय वह रूमानी दिलीप कुमार थे, ‘प्यासा’ (1957) में ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए, तो क्या है’ जैसे गानों में गुरुदत्त की आत्मा थे, फ़िल्म ‘जंगली’ (1961) में ‘या हू’ गाते हुए अदम्य शम्मी कपूर थे और यहाँ तक कि ‘प्यासा’ में तेल मालिश की पेशकश करने वाले शरारती जॉनी वॉकर भी थे।

गीतों के ख़ज़ाने

हिन्दी फ़िल्म के प्रमुख समकालीन पार्श्व गायकों के साथ उनके युगल गीत भी उतने ही यादगार और लोकप्रिय हैं। रफ़ी की शानदार गायकी ने कई गीतों को अमर बना दिया, जिनमें विभिन्न मनोभावों और शैलियों की झलक है।

उनके गीतों के ख़ज़ाने में फ़िल्म ‘कोहिनूर’ (1907) का ‘मधुबन में राधिका नाचे रे’ और ‘बैजू बावरा’ (1952) का ‘ओ दुनिया के रखवाले’ जैसे शास्त्रीय गीत; फ़िल्म ‘दुलारी’ (1949) की ‘सुहानी रात ढल चुकी’ तथा ‘चौदहवीं का चाँद’ (1960) जैसी ग़ज़लें; 1965 की फ़िल्म ‘सिकंदर-ए-आज़म’ से ‘जहाँ डाल-डाल पर’, ‘हक़ीक़त’ (1964) से ‘कर चले हम फ़िदा’ तथा ‘लीडर’ (1964) से ‘अपनी आज़ादी को हम जैसे आत्मा को झकझोरने वाले’ देशभक्ति गीत; और ‘तीसरी मंज़िल’ (1964) का ‘रॉक ऐंड रोल’ से प्रभावित ‘आजा-आजा मैं हूँ प्यार तेरा’ जैसे हल्के-फुल्के गाने शामिल हैं।

उन्होंने अंतिम गाना 1980 की फ़िल्म ‘आसपास’ के लिए ‘तू कहीं आसपास है ऐ दोस्त’ गाया था।

मुहम्मद रफ़ी मोहर्रम की दस तारीख़ तक गाना नहीं गाते थे।

रमज़ान में भी गाना तो बंद नहीं करते थे, लेकिन रिकॉर्डिंग दोपहर से पहले कर लिया करते थे।

मुहम्मद रफ़ी पक्के मज़हबी थे। नमाज़ के साथ दूसरे अरकान के लिए वो वक़्त निकाल लेते थे।

गाने

विवाद – मोहम्मद रफी की जीवनी

पुरस्कार और सम्मान

मृत्यु – मोहम्मद रफी की जीवनी

मोहम्मद रफी की 31 जुलाई 1980 को उनकी मृत्यु हो गई।

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