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मोहम्मद उस्मान की जीवनी – Mohammad Usman Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको मोहम्मद उस्मान की जीवनी – Mohammad Usman Biography Hindi के बारे में बताएगे।

मोहम्मद उस्मान की जीवनी – Mohammad Usman Biography Hindi

Mohammad Usman भारतीय सेना के एक उच्च अधिकारी थे, जो भारत और पाकिस्तान के प्रथम युद्ध (1947-48) में शहीद हुए।

पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 25 दिसंबर 1947 को जम्मू – कश्मीर के झंगड़ नामक इलाके को कब्जे में ले लिया था।

लेकिन उनकी बाहुदारी की वजह से मार्च 1948 को नौशेरा और झंगड़ फिर भारत के कब्जे में आ गए।

अपने नेतृत्व क्षमता की वजह से ही उन्हे नौशेरा का शेर कहा जाता है।

इस घटना के बाद पाकिस्तानी सरकार ने उन पर पचास हजार का इनाम रखा था।

3 जुलाई 1948 को झंगड़ में ही मोर्चे पर देश की सेवा कराते हुए शहीद हो गए।

जन्म

Mohammad Usman का जन्म 15 जुलाई 1912 को उतर प्रदेश के आजमगढ़ में हुआ था।

उनका पूरा नाम उस्मान मोहम्मद मसऊदी था।

उनके पिता का नाम खान बहादुर मुहम्मद फारूख तथा उनकी माता का नाम जमीरून्निसां जोकि एक घरेलू महिला थी।

उस्मान के पिता पुलिस में आला अधिकारी थे।

शिक्षा

Mohammad Usman की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई उन्होने हरश्चिंद्र स्कूल वाराणसी तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। यह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि प्रखर वक्ता भी थे। अउस्मान ने बचपन में ही सेना में शामिल होने के लिए अपना मन बना लिया था और भारतीयों के लिए कमीशन रैंक पाने के लिए सीमित अवसरों तथा कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद वह प्रतिष्ठित रॉयल मिलिटरी एकेडमी (आरएमएएस) में प्रवेश प्राप्त करने में सफल रहे।

सैन्य जीवन – मोहम्मद उस्मान की जीवनी

भारत से चुने गये 10 कैडेटों में वे एक थे। ब्रिटेन से पढ़ कर आये मोहम्मद उस्मान 23 साल के थे। बलूच रेजीमेंट में नौकरी मिली। इधर भारत-पाक का बंटवारा हो रहा था। पाकिस्तानी नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने इस्लाम और मुसलमान होने की दुहाई दी।

पाकिस्तानी सेना में शामिल हो जाओ, लालच दिया- नियम तोड़ कर (आउट ऑफ टर्न) पाकिस्तानी सेना का चीफ बना दिया जायेगा। पर, वतनपरस्त उस्मान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बलूच रेजीमेंट बंटवारे में पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गयी। उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गये।

जब दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू तक अशांत था। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे. उनकी झंगड़ में तैनाती थी। झंगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झंगड़ को कब्जे में ले लिया।

लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झंगड़ और पुंछ पर कब्जा करना और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झंगड़ भारत के कब्जे में आ गया। उन्हें नौशेरा का शेर भी कहा जाता है। तब पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे।

पाकिस्तानी सेना झंगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। इस घटना के बाद पाकिस्तानी सरकार ने उन पर पचास हजार का इनाम रखा था। इधर, पाक लगातार झंगड़ पर हमले करता रहा। अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे

पुरस्कार और सम्मान

मृत्यु – मोहम्मद उस्मान की जीवनी

मोहम्मद उस्मान 3 जुलाई 1948 को झंगड़ में ही मोर्चे पर देश की सेवा कराते हुए शहीद हो गए।

अंतिम शब्द

उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाये।

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