मुहणौत नैणसी,राजस्थान के क्रमबद्ध इतिहास लेखन के प्रथम इतिहासकारथे । वे महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे। वे भारत के उन क्षेत्रों का अध्यन करने के लिये प्रसिद्ध हैं जो वर्तमान में राजस्थान कहलाता है। ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ तथा ‘नैणसी री ख्यात’ उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको मुहणोत नैणसी की जीवनी – Muhnot Nainsi Biography Hindi के बारे में बताएगे।
मुहणोत नैणसी की जीवनी – Muhnot Nainsi Biography Hindi
जन्म
मुहणौत नैणसी का जन्म 1610 में जोधपुर में हुआ था। वह जोधपुर के निवासी थे यह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह महाराज का समकालीन थे। इनके पिता का नाम जयमल था। जो कि राज्य में उच्च पदों पर कार्य कर चुके थे। नैंणसी ने जोधपुर राज्य के दीवान के पद पर कार्य किया और उनके युद्ध में भी भाग लिया। 1698 जोधपुर राज्य का देश दीवान बन गया दीवान के पद पर रहते हुए देश दीवान के पद पर रहते हुए नैणसी ने चारणों, बडवा भाटों आदि से विभिन्न वंशों तथा राज्यों का इतिहास संग्रहित किया। शासकीय दस्तावेज भी उसके अधिकार में थे। इन सब स्रोतों के आधार पर उसने ख्यात की रचना की। जिसकी तुलना अबुल फजल के अकबरनामा से की जाती हैं।
नैणसी की ख्यात
नैणसी ने अपनी ख्यात में मध्यकालीन राजस्थान के सभी राज्यों के अतिरिक्त गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि राज्यों का इतिहास तथा मुगल राजपूत सम्बन्धों का वर्णन दिया हैं। नैणसी ने मध्यकालीन राजस्थानी समाज और संस्कृति के साथ साथ मन्दिरों, मठों, दुर्गों आदि के निर्माण भेंट, पूजा, बलि इत्यादि प्रकार तीर्थ यात्राओं तथा उनके महत्व का विवेचन, सगाई विवाह आदि रस्मों का वर्णन, रीती रिवाज पर्व त्योहारों आदि का भी उल्लेख किया हैं।
“नैणसी की ख्यात” में नगर कस्बों तथा गाँवों के इतिहास वर्णन के साथ-साथ वहां की भौगोलिक स्थिति तथा स्थापत्य का वर्णन भी मिलता हैं। नैणसी की दूसरी रचना “मारवाड़ रा परगना री विगत” हैं, जिसमें मारवाड़ राज्य के परगनों की राजस्व व्यवस्था तथा राज्य की आय केअनेक स्रोतों का वर्णन हैं, नैणसी के ग्रंथ राजस्थानी भाषा, साहित्य, व्याकरण, खगोलशास्त्र के साथ साथ राजस्थान के इतिहास के अपूर्व संग्रह हैं।
मुंशी देवीप्रसाद ने मुहणौत नैणसी को राजपूताने का अबुल फजल कहा हैं। अबुल फजल ने अकबर की सेवा में रहते हुए अकबरनामा की रचना की, उसी प्रकार मुहणौत नैणसी ने भी जोधपुर के महाराजा की सेवा में रहते हुए ख्यात लिखी। दोनों ही विद्वानों के ग्रंथों की रचना शैली में सामान्य हैं।
दोनों ने ही बडवा भाटों के ग्रंथों के साथ प्रशासकीय दस्तावेजों का प्रयोग किया हैं। मुहणौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत अबुल फजल के ‘आइने-अकबरी’ के समान एक प्रशासनिक ग्रंथ हैं। इसलिए नैणसी को अबुल फजल की संज्ञा देना अतिशयोक्ति नहीं हैं।
मुहणौत नैणसी कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उसने परगनों की राजस्व व्यवस्था में सुधार कर उनकी आय बढ़ाने के प्रयास किये। नैणसी महाराजा जसवंतसिंह का विश्वासपात्र था। इसी कारण राजकुमार पृथ्वीसिंह की शिक्षा दीक्षा का जिम्मा भी नैणसी को सौपा गया।
मृत्यु
ऐसा मानना हैं कि नैणसी ने दीवान रहते हुए राज्य के उच्च पदों पर अपने रिश्तेदारों की नियुक्तियां कर दी थी। जिन्होंने प्रजा पर अत्याचार किये। जिससे महाराजा जसवंतसिंह नाराज होकर नैणसी को कैद कर लिया और एक लाख का जुर्माना लगाया गया। इसलिए नैणसी ने 3 अगस्त 1670 को जेल में आत्म हत्या कर ली।