मुलायम सिंह यादव ( Mulayam Singh Yadav ) एक भारतीय राजनेता हैं जो उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और केंन्द्र सरकार में एक बार रक्षा मन्त्री के पद पर रह चुके है।
वे एक किसान नेता और जनता के बीच ‘नेताजी‘ और ‘धरतीपुत्र‘ के नाम से भी जाने जाते हैं। मुलायम सिंह का अपने कार्यकाल में कई विवादों का भी सामना करना पड़ा।
मुख्यमंत्री रहते मुलायम पर कारसेवकों पर गोली चलाकर उनके नरसंहार करने और उत्तराखंड आंदोलन के दौरान रामपुर चौराहा कांड में आंदोलकारियों को गोलियों से भूनकर तथा महिला आंदोलनकारियों का ब्लात्कार होने के मामले मुलायम सिंह को मुख्य साजिशकर्ता और आरोपी बताया गया था।
कभी हार ना मानने वाले मुलायम सिंह को अपने पारिवारिक कलह के चलते उन्हे हार माननी पडी। इस बार उनकी लड़ाई किसी पार्टी से नही अपने खुद के बेटे से थी। जिसमें उन्हें झुकना पड़ा।
जनवरी 2017 में मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव ने एक नाटकीय अंदाज में अपने गुट के नेताओं की बैठक में अपने पिता मुलायम को सपा प्रमुख से अपदस्त कर स्वयं को सपा प्रमुख घोषित कर दिया था।
मुलायम सिंह वर्तमान में समाजवादी पार्टी के मार्गदर्शक भी हैं। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको Mulayam Singh Yadav Biography Hindi के बारे में बताएगे।
मुलायम सिंह यादव की जीवनी – Mulayam Singh Yadav Biography Hindi
जन्म
Mulayam Singh Yadav का जन्म 22 नवम्बर, 1939 को सैफई गाँव, इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
उनके पिता का नाम सुधर सिंह था और उनकी माता का नाम मूर्ति देवी था।
मुलायम सिंह के चार भाई-बहन है उनका नाम इस प्रकार है – रतन सिंह, अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी हैं।
मुलायम सिंह के पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे।
मुलायम सिंह जी का पहला विवाह मालती देवी के साथ हुआ था।
उनके पुत्र अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई, 1973 को हुआ लेकिन अखिलेश यादव के बाल्यकाल में ही मालती देवी का स्वर्गवास हो गया।
उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने दूसरा विवाह साधना गुप्ता के साथ किया , जिनसे उन्हे प्रतीक यादव के रूप में दूसरे बेटे की प्राप्ति हुई।
शिक्षा
मुलायम सिंह यादव ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. और जैन इन्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) से बी. टी. की डिग्री प्राप्त की थी।
इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक इन्टर कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया।
करियर
‘समाजवादी पार्टी’ के नेता मुलायम सिंह यादव पिछले तीस सालों से राजनीति में सक्रिय हैं। अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के बाद मुलायम सिंह ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।
Mulayam Singh Yadav जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशकनियुक्त किए गए थे। विधायक का चुनाव भी ‘सोशलिस्ट पार्टी’ और इसके बाद फिर ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ से लड़ा था।
इसमें उन्होंने जीत भी हासिल की। उन्होंने स्कूल के शिक्षक पद से इस्तीफा दे दिया था। 1977 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मंत्री बने।
उस समय कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी।
1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और इसके बाद फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल में अध्यक्ष चुने गए और विधान सभा चुनाव हार गए।
चौधरी जी ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया, जहाँ पर वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे।
1967 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश, विधान सभा के लिए चुने गए थे। शुरुआत से ही मुलायम सिंह यादव दलितों और पिछड़े वर्गों से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे और आज भी यह वर्ग उनका बहुत आधार हैं, जहाँ उन्हें काफी लोकप्रियता भी मिली ।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर हिन्दू कट्टपंथी संगठनो के उनके मुखर विरोध ने मुलायम सिंह को मुस्लिम समुदाय में भी लोकप्रिय बना दिया।
1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति सांप्रदायिक आधार पर बँट गई और मुलायम सिंह को राज्य के मुस्लिमों का समर्थन हासिल हुआ।
अल्पसंख्यकों के प्रति उनके रुझान को देखते हुए कहीं-कहीं उन पर “मौलाना मुलायम” का ठप्पा भी लगाया गया।
1989 में जब उत्तर प्रदेश सरकार का गठन होने वाला था, तो उस समय मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवार थे – मुलायम सिंह और अजित सिंह। मुलायम सिंह जनाधार वाले नेता थे, जबकि अजित सिंह अमेरिका से लौटे थे।
विश्वनाथ प्रताप सिंह हर हाल में अजित सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। लेकिन मुलायम सिंह को ये मंजूर नहीं था।
मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए गुजरात के समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को लखनऊ भेजा दिया गया। वे उस समय उत्तर प्रदेश के जनता दल प्रभारी थे।
वी. पी. सिंह का दबाव उनके ऊपर था कि अजित को फाइनल करें। यहाँ मुलायम सिंह यादव ने जबरदस्त राजनीतिक चातुर्य का प्रदर्शन किया। चिमनभाई पटेल ने लखनऊ से लौटते ही मुलायम सिंह के नाम पर ठप्पा लगा दिया।
1993 में मुलायम सिंह यादव ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि यह मोर्चा जीता नहीं, लेकिन ‘भारतीय जनता पार्टी’ भी सरकार बनाने से चूक गई।
मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और फिर मुख्यमंत्री बन गए। जून 1995 तक वे मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया।
मुलायम सिंह यादव तीसरी बार 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004 की जनवरी में गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा था, जहाँ उन्होंने रिकॉर्ड बहुमत से विजय प्राप्त की थी।
कुल डाले गए मतों में से 92 प्रतिशत मत उन्हें प्राप्त हुए थे, जो आज तक विधानसभा चुनाव का एक शानदार रिकॉर्ड है।
1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षामंत्री बने थे।
यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन उनके सजातियों ने उनका साथ नहीं दिया।
लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, लेकिन वहाँ से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया था ।
केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ था जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई।
एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वे रक्षामंत्री बने लेकिन यह सरकार भी ज़्यादा दिनों तक नहीं चल पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई।
‘भारतीय जनता पार्टी‘ के साथ उनकी विमुखता से लगता था कि वे काँग्रेस के नज़दीक होंगे, लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने के कारण काँग्रेस सरकार बनाने में सफल नहीं हुई और दोनों पार्टियों के संबंधों में कड़वाहट आ गई।
2002 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 391 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए लेकिन 1996 के चुनाव में उसने केवल 281 सीटों पर ही चुनाव लड़ा।
मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था रही है। भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के लिए उनका निरंतर संघर्ष जारी रहा है।
उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की हैं।
लोकसभा से मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे।
सदस्यता
- विधान परिषद 1982-1985
- विधान सभा 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 (आठ बार)
- विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान परिषद 1982-1985
- विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान सभा 1985-1987
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री
- 1977 में सहकारिता और पशुपालन मंत्री के रूप में कार्य किया।
- 1996-1998 में रक्षा मंत्री के पद
भाजपा से साथ नजदीकी
मुलायम सिंह यादव मीडिया को कोई भी ऐसा मौका नहीं देते, जिससे कि उनके ऊपर ‘भाजपा’ के क़रीबी होने का आरोप लगया जाए। लेकिन राजनीतिक हलकों में यह बात मशहूर है कि अटल बिहारी वाजपेयी से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बहुत अच्छे थे।
2003 में उन्होंने भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोग से ही प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी और 2012 में उनका यह आकलन सच भी साबित हुआ। उत्तर प्रदेश में ‘समाजवादी पार्टी’ को अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई है।
इस समय 45 मुस्लिम विधायक उनके दल में शामिल हैं।
पुरस्कार
मुलायम सिंह यादव को 28 मई, 2012 को लंदन में ‘अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ़ लंदन के सेवानिवृत्त न्यायाधीश सर गाविन लाइटमैन ने बताया कि श्री यादवजी का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है।
उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि और न्याय क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है।
ज्ञातव्य है कि मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। समाज में भाईचारे की भावना को पैदाकर मुलायम सिंह यादव का लोगों को न्याय दिलाने में भी विशेष योगदान रहा है।
उन्होंने कई विधि विश्वविद्यालयों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
पुस्तकें
मुलायम सिंह पर कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं। इनमें पहली पुस्तक का नाम ‘मुलायम सिंह यादव- चिन्तन और विचार’ है, जिसे अशोक कुमार शर्मा ने सम्पादित किया था।
इसके अलावा राम सिंह और अंशुमान यादव द्वारा लिखी गयी ‘मुलायम सिंह: ए पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी’ में उनकी प्रमाणिक जीवनी है।
लखनऊ की पत्रकार डॉ. नूतन ठाकुर ने भी मुलायम सिंह यादव के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक लिखने का काम किया है।