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नलिनी जयवंत की जीवनी – Nalini Jaywant Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको नलिनी जयवंत की जीवनी – Nalini Jaywant Biography Hindi के बारे में बताएगे।

नलिनी जयवंत की जीवनी – Nalini Jaywant Biography Hindi

नलिनी जयवंत की जीवनी
नलिनी जयवंत की जीवनी

 (English – Nalini Jaywant)नलिनी जयवंत भारतीय सिनेमा की उन सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं,

जिन्होंने पचास और साठ के दशक में सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया।

नलिनी जयवंत ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत वर्ष 1941 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘राधिका’ से की थी।

उपाधि फ़िल्म ‘काली पानी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार से नवाजा गया।

संक्षिप्त विवरण

नामनलिनी जयवंत
पूरा नाम, अन्य नाम
नलिनी जयवंत
जन्म18 फरवरी 1926
जन्म स्थानबम्बई, ब्रिटिश भारत
पिता का नाम
माता  का नाम रतन बाई
राष्ट्रीयता भारतीय
मृत्यु
20 दिसंबर, 2010
मृत्यु स्थान
 मुम्बई, भारत

जन्म

नलिनी जयवंत का जन्म 18 फरवरी, 1926 में ब्रिटिश भारत के बम्बई शहर (वर्तमान मुम्बई) में हुआ था। उनकी माता का नाम रतन बाई था। 1940 में नलिनी जयवंत ने निर्देशक वीरेन्द्र देसाई से विवाह किया। इस दौरान प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार के साथ नलिनी के प्यार की अफवाहें भी उड़ीं। इसके बाद के समय में नलिनी जयवंत ने अभिनेता प्रभु दयाल के साथ दूसरा विवाह कर लिया। प्रभु दयाल के साथ उन्होंने कई फ़िल्मों में भी काम किया।

फ़िल्मी शुरुआत – नलिनी जयवंत की जीवनी

Nalini Jaywant के हिन्दी सिनेमा में प्रवेश की कहानी भी काफ़ी रोचक है।

किस्सा यूँ है कि हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के निर्माता-निदेशकों में से एक थे- चमनलाल देसाई।

वीरेन्द्र देसाई इन्हीं चमनलाल देसाई के पुत्र थे।

उनकी एक कंपनी थी ‘नेशनल स्टूडियोज़’। एक दिन दोनों पिता-पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुँचे।

शो के दौरान दोनों की नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थीं, जिनकी आयु उस समय बमुश्किल 13-14 बरस की ही थी। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फ़िल्म की हिरोइन चुन लिया और ख़्यालों में खो गए। फ़िल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की अपने परिवार के साथ ग़ायब हो गई, इसकी ख़बर तक दोनों को न हुई।

एक दिन वीरेन्द्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुँचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थीं। नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई और बाछें खिल गईं। असल में शोभना समर्थ, जिन्हें बाद में अभिनेत्री नूतन और तनूजा की माँ और काजोल की नानी के रूप में अधिक जाना गया, नलिनी जयवंत के मामा की बेटी थीं।

इस बार वीरेन्द्र देसाई ने बिना देर किए नलिनी के सामने फ़िल्म का प्रस्ताव रख दिया।

नलिनी के लिए तो यह मन माँगी मुराद पूरी होने जैसा था।

डर था तो सिर्फ पिता का, जो फ़िल्मों के सख्त विरोधी थे। लेकिन वीरेन्द्र देसाई ने उन्हें मना लिया।

इस मानने के पीछे एक बड़ा कारण था पैसा।

उस समय जयवंत परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी।

रहने के लिए भी उन्हें अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था।

 

सफलता – नलिनी जयवंत की जीवनी

फ़िल्म ‘राधिका’ के बाद इसी वर्ष महबूब ख़ान के निर्देशन में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई ‘बहन’।

इस फ़िल्म में नलिनी के साथ प्रमुख भूमिका में थे शेख मुख्तार।

साथ में थीं नन्हीं-सी मीना कुमारी, जो ‘बेबी मीना’ के नाम से इस फ़िल्म में एक बाल कलाकार थीं।

इस फ़िल्म में संगीतकार अनिल बिस्वास ने नलिनी जयवंत से चार गीत गवाए थे।

इन चार गीतों में से वजाहत मिर्ज़ा का लिखा हुआ एक गीत था- ‘नहीं खाते हैं भैया मेरे पान’, जो बहुत लोकप्रिय हुआ। 1941 में ही फिर से वीरेन्द्र देसाई के ही निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘निर्दोष’ आई, जिसमें मुकेश नायक की भूमिका में थे। फ़िल्म में मुकेश की आवाज़ में कुल तीन गीत थे, जिनमें एक सोलो गीत ‘दिल ही बुझा हुआ हो तो फस्ले बहार क्या’ था और बाकी दो नलिनी जयवंत के साथ युगल गीत थे, जबकि नलिनी के तीन सोलो गीत थे।

अपने एक संस्मरण में नलिनी जयवंत ने कहा था कि- “मैं जब बमुश्किल छह-सात साल की थी, तभी ऑल इंडिया रेडियो पर नए-नए शुरू हुए बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेने लगी थी।

Nalini Jaywant अपनी पहली ही फ़िल्म से सितारा घोषित कर दी गई थीं।

उस समय नलिनी फ्रॉक और दो चोटी के साथ स्कूल में पढ़ रही थीं। उम्र थी पन्द्रह साल।

फ़िल्म ‘आंख मिचौली’ (1942) की सफलता ने उन्हें आसमान पर बिठा दिया।

नलिनी को फ़िल्मों में सफलता तो मिल गई, लेकिन उसी के साथ नलिनी पर फिदा वीरेन्द्र देसाई को उनसे प्यार भी हो गया। शादी भी हो गई। इस मामले को उस दौर के लेखक ने इस तरह बयान किया है- “जब ये हंसती हैं तो मालूम होता है कि जंगल की ताज़गी में जान पड़ गई और नौ-शगुफ्ता कलियाँ फूल बनकर रुखसारों की सूरत में तब्दील हो गई हैं।

दूसरा विवाह

नलिनी जयवंत ने ‘आंख मिचौली’ खेलते-खेलते मिस्टर वीरेन्द्र देसाई से ‘दिल मिचौली’ खेलना शुरू कर दिया और यह खेल अब बाकायदा शादी की कंपनी से फ़िल्माया जाकर ज़िंदगी के पर्दे पर दिखलाया जा रहा है।” लेकिन नलिनी जयवंत का यह वैवाहिक जीवन अधिक दिन तक नहीं चल सका और वीरेन्द्र देसाई से उनका तलाक हो गया।

नलिनी ने दूसरा विवाह अपने एक साथी कलाकार प्रभू दयाल से किया।

1950 के दशक में नलिनी जयवंत ने एक बार फिर धमाके के साथ अशोक कुमार के साथ फ़िल्म ‘समाधि’ और ‘संग्राम’ से नई ऊँचाई हासिल की। हालांकि 1948 की फ़िल्म ‘अनोखा प्यार’ में दिलीप कुमार और नर्गिस के मुकाबले जिस अंदाज़ में उन्होंने काम किया, उसकी ज़बर्दस्त तारीफ हो चुकी थी, लेकिन इन दो फ़िल्मों ने उनके स्टारडम में चार चाँद लगा दिए। फ़िल्म ‘समाधि’ में “गोरे-गोरे ओ बांके छोरे, कभी मेरी गली आया करो” गीत पर कुलदीप कौर के साथ उनका नाच अब तक याद किया जाता है।

सबसे बड़ी अदाकारा का दर्जा – नलिनी जयवंत की जीवनी

अशोक कुमार के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी कामयाब तो हुई, वहीं दोनों के रोमांस की चर्चा भी शुरू हो गई। अशोक कुमार ने अपने परिवार से अलग चैम्बूर के यूनियन पार्क इलाके में नलिनी जयवंत के सामने एक बंगला भी ले लिया, जहाँ वे ज़िंदगी के आखि़री दिनों में भी बने रहे और वहीं प्राण त्यागे।

इस जोड़ी ने 1952 में ‘काफिला’, ‘नौबहार’ और ‘सलोनी’ फिर 1957 में ‘मिस्टर एक्स’ और ‘शेरू’ जैसी फ़िल्में कीं। दिलीप कुमार के साथ, जिन्होंने नलिनी जयवंत को ‘सबसे बड़ी अदाकारा’ का दर्जा दिया, उन्होंने ‘अनोखा प्यार’ के अलावा ‘शिकस्त’ (1953) और देव आनंद के साथ ‘राही’ (1952), ‘मुनीमजी’ (1955) और ‘काला पानी’ (1958) जैसी कामयाब फ़िल्में कीं।

फिल्में

निर्दोष 1941बहन 1941गुंजन 1948आँख मिचोली 1942
राधिका 1941अनोखा प्यार 1948समाधि 1950आँखें 1950
संग्राम 1950एक नज़र 1951नन्दकिशोरी 1951नौजवान 1951
नौबहार 1952दो राह 1952सलोनी 1952काफ़िला 1952
राही 1953शिकस्त 1953लकीरें 1954महबूब 1954
बाप बेटी 1954नाज़ 1954राजकन्या 1955 रेलवे प्लेटफ़ार्म 1955
मुनीमजी 1955आन बान 1956देर्गेश नन्दिनी 1956आवाज़ 1956
इंसाफ़ 1956हम सब चोर हैं 1956मिस बॉम्बे 1957कितना बदल गया इंसान 1957
 शेरू 1957नीलमणि 1957मिलन 1958काला पानी 1958
 माँ के आँसु 1959मुक्ति 1960अमर रहे ये प्यार 1961जिन्दगी और हम 1962
तूफ़ान में प्यार कहाँ 1963गर्ल्स हॉस्टल 1963बोम्बे रेसकोर्स 1965नास्तिक 1983

पुरस्कार

फ़िल्म ‘काला पानी’ में किशोरी बाई वाली भूमिका के लिए तो नलिनी जयवंत को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार भी मिला। निदेशक रमेश सहगल की दो फ़िल्मों ‘शिकस्त’ और ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ (1955) की भूमिकाओं के लिए भी नलिनी जयवंत को याद किया जाता है।

‘काला पानी’ के बाद उन्होंने फ़िल्मों में काम लगभग बंद कर दिया।

दो फ़िल्में ‘बॉम्बे रेसकोर्स’ (1965) और ‘नास्तिक’ (1983) इसका अपवाद हैं।

ये दोनों फ़िल्में भी रिश्तों के दबाव में ही कीं।

‘नास्तिक’ में उन्होंने अमिताभ बच्चन की माँ की भूमिका निभाई थी।

निधन – नलिनी जयवंत की जीवनी

नलिनी जयवंत का निधन 20 दिसंबर, 2010 को मुम्बई, भारत में हुआ।

इसे भी पढ़े – 18 फरवरी का इतिहास – 18 February History Hindi

Sonu Siwach

नमस्कार दोस्तों, मैं Sonu Siwach, Jivani Hindi की Biography और History Writer हूँ. Education की बात करूँ तो मैं एक Graduate हूँ. मुझे History content में बहुत दिलचस्पी है और सभी पुराने content जो Biography और History से जुड़े हो मैं आपके साथ शेयर करती रहूंगी.

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