नारायण भास्कर खरे की जीवनी – Narayan Bhaskar Khare Biography Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको नारायण भास्कर खरे की जीवनी – Narayan Bhaskar Khare Biography Hindi के बारे में बताएगे।

नारायण भास्कर खरे की जीवनी – Narayan Bhaskar Khare Biography Hindi

नारायण भास्कर खरे की जीवनी
नारायण भास्कर खरे की जीवनी

Narayan Bhaskar Khare  सार्वजनिक कार्यकर्ता, चिकित्सक और मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रह चुके थे।

वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे थे।

1937 में उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।

लेकिन 1938 में अनुशासनात्मक कारणों के चलते डॉ. खरे को काँग्रेस से निकाल दिया गया।

संक्षिप्त विवरण

 

नाम नारायण भास्कर
पूरा नाम नारायण भास्कर खरे
जन्म 19 मार्च, 1884
जन्म स्थान पनवेल,  महाराष्ट्र
पिता का नाम नारायण बल्ला खरे
माता का नाम
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
जाति खरे

जन्म

नारायण भास्कर खरे का जन्म 19 मार्च, 1884 को महाराष्ट्र के पनवेल में हुआ था।

उनके पिता का नाम नारायण बल्ला खरे था और वे वकील थे।

शिक्षा

शिक्षा नारायण भास्कर खरे लाहौर मेडिकल कॉलेज से एम. डी. की डिग्री पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे।

 

परीक्षा पास करने के बाद कुछ सालों तक वे मध्य प्रदेश और बरार की स्वास्थ्य सेवाओं में काम करते रहे, लेकिन अंग्रेज़ अधिकारियों के अपमानजनक व्यवहार के कारण उन्होंने 1916 में अपना इस्तीफ़ा दे दिया और नागपुर में निजी अभ्यास करना शुरू कर दिया।

करियर – नारायण भास्कर खरे की जीवनी

  • नारायण भास्कर खरे ने नागपुर में अपने निजी प्रैक्टिस के दौरान ही काँग्रेस में शामिल हो गये थे और उन्होने 1923 से 1929 तक मध्य प्रदेश कौंसिल के सदस्य के रूप मे काम किया।
  • उन्होंने 1935 से 1937 तक केंद्रीय असेम्बली में काँग्रेस का प्रतिनिधित्व किया।
  • 1937 में उन्हें मध्य  प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन 1938 में अनुशासनात्मक कारणों के चलते नारायण भास्कर खरे जी को काँग्रेस से निकाल दिया गया। उसके बाद से ही वे गाँधी जी और काँग्रेस के कट्टर विरोधी बन गये थे.
  • इसके बाद वाइसराय ने 1943 से 1946 तक उन्हें अपनी एक्जिक्यूटिव का सदस्य नियुक्त कर लिया।
  • 1949 में वे हिंदू महासभा में शामिल होकर उसके अध्यक्ष बन गए। सभा की ओर से ही संविधान परिषद तथा 1952 से 1957 तक लोकसभा के सदस्य रहे।
  • देश विभाजन के प्रबल विरोधी डॉ. खरे देश का नाम ‘हिन्दूराष्ट्र’ और राष्ट्रभाषा संस्कृत को बनाने के पक्षपाती थे। कई देशों में भारतवासियों के प्रति रंग-भेद के कारण जो असमानता का व्यवहार होता था उसके खिलाफ डॉ. खरे हमेशा विरोध करते रहे।

मृत्यु – नारायण भास्कर खरे की जीवनी

नारायण भास्कर खरे की 1969 में मृत्यु हो गई।

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