नरेन्द्र देव भारत के जाने – माने विद्वान, समाजवादी, विचारक, शिक्षाशास्त्री और देशभक्त थे। वे 1916 से 1948 तक ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए वे कई बार जेल गए और जवाहरलाल नेहरू के साथ अहमदनगर क़िले में भी बन्द रहे। उन्हे हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, पाली आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त है। बौद्ध दर्शन के अध्ययन आदि में उनकी विशेष रुचि थी। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको नरेन्द्र देव की जीवनी – Narendra Deva Biography Hindi के बारे में बताएगे।
नरेन्द्र देव की जीवनी – Narendra Deva Biography Hindi
जन्म
नरेन्द्र देव का जन्म 31 अक्टूबर 1889 को सीतापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका बचपन का नाम अविनाशी लाल था। उनके पिता का नाम बलदेव प्रसाद था। जोकी एक प्रसिद्ध वकील थे। उनका पूरा नाम आचार्य नरेन्द्र देव था।
शिक्षा
नरेन्द्र देव इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला कराया और यही से उन्होने बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और पुरातत्व के अध्ययन के लिए काशी के क्वींस कालेज चले गए. और सन 1913 में एम.ए. संस्कृत से किया.
करियर
नरेन्द्र देव विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति की गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। वे अपने गरम विचारों के व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। वे 1916 से 1948 तक ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी’ के सदस्य रहे थे। देश की आज़ादी के लिए वे कई बार जेल गए और जवाहरलाल नेहरू के साथ अहमदनगर क़िले में भी बन्द रहे।
जेल यात्राएँ
1930, 1932 और 1942 के आंदोलनों में आचार्य नरेन्द्र देव ने जेल यात्राएँ कीं। वे 1942 से 1945 तक जवाहरलाल नेहरु जी आदि के साथ अहमदनगर क़िले में भी बंद रहे। यहीं पर उनके पांड़ित्य से प्रभावित होकर नेहरूजी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “डिस्कवरी ऑफ़ इंड़िया” की पांडुलिपि में उनसे संशोधन करवाया।
कांग्रेस से त्यागपत्र
कांग्रेस को समाजवादी विचारों की ओर ले जाने के उद्देश्य से सन 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में ‘कांग्रेस समाजावादी पार्टी’ का गठन हुआ था। जयप्रकाश नारायण इसके सचिव थे। गांधीजी आचार्य का बड़ा सम्मान करते थे। पहली भेंट में ही उन्होंने आचार्य को ‘महान नररत्न’ बताया था। कांग्रेस द्वारा यह निश्चय करने पर कि उसके अंदर कोई अन्य दल नहीं रहेगा, समाजवादी पार्टी के अपने साथियों के साथ आचार्य नरेन्द्र देव ने भी कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के साथ ही पार्टी के टिकट पर जीती विधान सभा से त्याग-पत्र देकर इन्होंने राजनीतिक नैतिकता का एक नया आदर्श उपस्थित किया था।
भाषा विद्वान
राजनीतिक चेतना और विद्वता का नरेन्द्र देव में असाधारण सामंजस्य था। वे संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी, पाली, बंगला, फ़्रेंच और प्राकृत भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे। ‘काशी विद्यापीठ’ के बाद आचार्य नरेन्द्र देव ने ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ और ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के कुलपति के रूप में शिक्षा जगत् पर अपनी छाप छोड़ी।
रचनाएँ
कृतियाँ
- राष्ट्रीयता और समाजवाद
- समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन
- सोशलिस्ट पार्टी और मार्क्सवाद
- राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास
- युद्ध और भारत
- किसानों का सवाल
- समाजवाद और राष्ट्रीय क्रांति
- समाजवाद
- बोधिचर्चा तथा महायान
- अभीधर्म कोष
संपादन :
- विद्यापीठ – त्रैमासिक पत्रिका
- समाज – त्रैमासिक पत्रिका
- जनवाणी – मासिक पत्रिका
- संघर्ष, समाज – साप्ताहिक पत्र
मृत्यु
नरेन्द्र देव की दमे की बीमारी के कारण 19 फरवरी 1956 को मद्रास में उनकी मृत्यु हो गई।